एक सामयिक बोध-कथा ●
उसके पास एक बडी जालीदार टोकरी में बहुत सारे तीतर थे!..
लेकिन एक छोटी जालीदार टोकरी में सिर्फ एक ही तीतर था!..
एक ग्राहक ने पूछा-
"एक तीतर कितने का है?.."
"40 रुपये का!.."
ग्राहक ने छोटी टोकरी के तीतर की कीमत पूछी तो वह बोला,
"मैं इसे बेचना ही नहीं चाहता!.."
"लेकिन आप इसे ही लेने की जिद करोगे,
तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी!.."
ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा,
"इसकी कीमत इतनी ज़्यादा क्यों है?.."
चिड़ीमार ने जवाब दिया-
"दरअसल यह मेरा अपना पालतू तीतर है और
यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है!..
जब ये चीख पुकार कर दूसरे तीतरों को बुलाता है
और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे ही एक जगह जमा हो जाते हैं...
तो मैं आसानी से सभी का शिकार कर लेता हूँ!
बाद में,
मैं इस तीतर को उसकी मनपसंद की 'खुराक" दे देता हूँ जिससे ये खुश हो जाता है!..
बस, इसीलिए इसकी कीमत भी ज्यादा है!.."
उस समझदार आदमी ने तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की सरे आम बाजार में गर्दन मरोड़ दी!..
किसी ने पूछा,
"अरे, ज़नाब आपने ऐसा क्यों किया?.."
उसका जवाब था-
"ऐसे दगाबाज को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं है
जो अपने मुनाफे के लिए अपने ही समाज को फंसाने का काम करे और
अपने लोगों को धोखा दे!.."
नैतिक शिक्षा (Moral):
हमारी व्यवस्था में 500 रू की क़ीमत वाले बहुत से तीतर हैं!..
आप सावधान रहिएगा! ...
और 500 रुपये वाले तीतर भी सावधान हो जाएं! मुनाफालोभी तीतरों को जनता देख रही है!..
चिड़ीमार के साथ 500 रुपए वाले तीतरों की भी खैर नहीं!
- एक व्हाट्सएप वाइरल पोस्ट●
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