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कबीर इतने महत्त्वपूर्ण क्यों?..

  online_classes                 कबिरा खड़ा बजार में...           अच्छा नहीं लगता, पर सवाल तो है! सारे लोगों के दिमाग में यह सवाल उठना चाहिए कि जिस व्यक्ति के माँ-बाप का भी ठीक से पता नहीं, जो स्वयं 'मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ'...का उद्घोष करता हो, वह भी उस मध्यकाल में जब राजाओं-सामन्तों का हुक्म ही कानून माना जाता था, ऐसे समय में एक व्यक्ति समाज की रूढ़ियों पर ही नहीं धर्म-मजहब पर भी ऐसा कठोर प्रहार कैसे कर लेता है?             तब मानवतावाद का न तो कोई ढिंढोरा पीटा जाता था और न ऐसा कोई नाम कमाने के लिए करता था, तब की उस अंधेरी दुनिया में जब जाति और धर्म आज की तरह राजनीति के दुमछल्ले न होकर समाज के अपने नियमों से चलने वाले थे...कैसे एक व्यक्ति इतना आदरणीय हो सकता है जो दोनों को उल्टा खड़ा कर दे? या यह सब इसीलिए कि आज मानवतावादी सोच विकसित हुई है, इसीलिए कबीर की रचनाओं को भी महत्त्व मिलने लगा है? लेकिन, अगर इतना ही मानवतावादी मूल्यों की समाज में मान्यता है तो फिर ये 'मॉब-लिंचिंग', जातिवादी-साम्प्रदायिक दंगे कैसे? क्या मानवतावाद का ढिंढोरा पीटना और किसी धर्म-सम्प्

कम से कम इतना तो जाने भक्तिकाल के बारे में...

परीक्षा की तैयारी हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि           भक्तिकाल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण                कवि और  उनका साहित्य कालक्रम की दृष्टि से  हिंदी साहित्य के भक्तिकाल का प्रारम्भ  निर्गुण काव्य धारा  से होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में इस काव्य धारा को ‘निर्गुण ज्ञानाश्रयी धारा’ नाम दिया। डा. रामकुमार वर्मा ने इसे ‘सन्त काव्य परम्परा’ कहा तो आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी ने इसे ‘निर्गुण भक्ति साहित्य’ का नाम दिया। इसे ज्ञानाश्रयी काव्यधारा भी कहा गया। इस काव्यधारा के सबसे चर्चित कवि के रूप में कबीर विख्यात हैं। भक्तों-संतों के नाम के आगे 'दास' लगाने की परम्परा के चलते वे 'कबीरदास' नाम से भी जाने जाते हैं। ★★ शब्द 'सन्त':             सामान्यतः सदाचार के लक्षणों से युक्त मन की शांति का पाठ पढ़ाने वाले व्यक्ति को 'सन्त' कहा जाता है। ऐसा संत व्यक्ति स्वयं की जगह सामाजिक कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयासरत माना जाता है। आत्मोन्नति द्वारा मनुष्य सदाचारी हो सकता है, ऐसा संतों का मानना था। डा. पीताम्बरदत्त ब