सर मत पीटिये!.. क्यों नहीं फले-फूलेगा ये बागेश्वर धाम, मारे-मारे जब फिरते हैं नौजवान बे-काम!.. बागेश्वर धाम के नाम से मशहूर हो रहे 26 वर्षीय 'बाबा' धीरेन्द्र शास्त्री की बड़ी चर्चा है इन दिनों! बाबा चमत्कार पे चमत्कार किए जा रहे हैं और जनता सौ से हजार, हजार से लाख और लाख से करोड़ की संख्या में उनकी दीवानी ही रही है। कभी सोचा, ऐसा क्यों? .. और क्यों नहीं? क्या यह पहली बार है? क्या धीरेन्द्र शास्त्री अकेले हैं इस कारोबार में? राजनीतिक बाबा क्या ज़्यादा अच्छे हैं कि आप वे जो कहते हैं, उसे मान लिया करते हैं? और जो लोग इन धार्मिक-राजनीतिक बाबाओं को नहीं मानते वे क्या कर रहे हैं? क्या आपको पता या याद है कि ये चमत्कार आदिवासी, अशिक्षित, अर्द्ध-शिक्षित इलाकों में ही ज़्यादा क्यों होता है? क्या वहाँ यह जीने का एक तरीका या मनोरंजन का एक साधन है? और यह नौकरिया-ज्ञान भी वास्तव में जीवन की कितनी और कैसी शिक्षा/सीख दे पाने में समर्थ है! चाहे राजों-महाराजों के जमाने में रहा हो, अंग्रेजों के जमाने में रहा हो या आज, नौकर-सेवक-सर्वेंट तो आज्ञा का गुलाम ही रहा है,
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.