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Showing posts with the label किसान आंदोलन

एक विद्रोही सन्यासी

          स्वामी सहजानंद सरस्वती और                    किसान आंदोलन               बहुतों को सुनकर अच्छा नहीं लगेगा और उन्हें सही ही अच्छा नहीं लगेगा। आज निठल्ले लोगों का पहला समूह साधुओं-संतों के रूप में पहचाना जाता है। इसलिए नहीं कि वे साधु-संत होते हैं, बल्कि इसलिए कि बिना कोई काम-धाम किए वे दुनिया का हर सुख भोगते हैं। वैसे तो जमाना ऐसा ही है कि बिना काम-धाम किए सुख भोगने वाले ही आज राजकाज के सर्वेसर्वा होते हैं। ऊपर से 18-18 घंटे रोज काम करने वाले माने जाते हैं। ऐशोआराम की तो पूछिए मत! दुनिया का सबसे महंगा कपड़ा, सबसे कीमती जहाज, सबसे बड़ा बंगला ऐसे ही निठल्ले लोगों से सुशोभित होता है पर मजाल क्या कि ऐसे लोगों के असली चरित्र पर टीका-टिप्पणी कीजिए! वो तो 'महान संत' आसाराम बापू जैसे एकाध की पोलपट्टी खुल गई वरना हर पढ़ा-लिखा और अनपढ़ वैसी ही दाढ़ी और वैसी ही गाड़ी के साथ-साथ वैसी ही भक्तमंडली के लिए आहें भरता है। किंतु, आज इन सबसे अलग एक ऐसे शख़्स की बात की जा रही है जिसका जन्मदिन महाशिवरात्रि को पड़ता है। जी, महाशिवरात्रि के दिन (22 फरवरी सन् 1899 ई.) में हुआ था। वे हुए तो थे एक धर्मव

किसान आंदोलन के आइने में चौधरी चरणसिंह

चौधरी चरण सिंह जन्म-दिवस             उन्हें याद करने का मतलब!..                              - अशोक प्रकाश   28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक मात्र कुछ महीने भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री के रूप में देश की संसदीय व्यवस्था की कमान संभालने वाले चौधरी चरण सिंह को 'किसानों का मसीहा' के रूप में याद किया जाता है। सर छोटूराम के बाद किसानों के प्रबल हितैषी के रूप में पहचान बनाने वाले वे सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेता माने जाते हैं। किसान समर्थक कानूनी सुधारकों में उन्हें विशेष स्थान प्राप्त है। पिछले साल जब से संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा चलाए गए जुझारू किसान संघर्षों के फलस्वरूप मोदी सरकार को कॉरपोरेट हितैषी तीन कृषि संबन्धी कानूनों को वापस लेना पड़ा है, चौधरी चरण सिंह को याद करना विशेष महत्त्व रखता है। चौधरी चरण सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत में आज के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जनपद के नूरपुर गाँव में 23 दिसम्बर, 1902 को हुआ था। किसानी संघर्षों में अग्रणी जाटों के वंश में पैदा हुए चौधरी चरण सिंह को किसानों की दशा-दुर्दशा की समझ विरासत में मिली थी। उनका जन्म जिस तरह 'काली मिट्टी के अनगढ़

किसान आंदोलन भी राजनीति है क्या?

  किसान आंदोलन भी राजनीति का शिकार                      हो रहा है क्या?..      सवाल लाज़िमी है!..सवाल उठ रहा है, सवाल उठेगा भी! जब जीवन के हर पहलू को राजनीति संचालित कर रही है तो किसान आंदोलन राजनीति से अछूता कैसे रह सकता है? तो क्या किसान आंदोलन राजनीति का शिकार होगा? या यूँ कहें क्या किसान आंदोलन भी अन्ततः एक राजनीतिक स्वरूप लेगा? ऐसे सवाल आमजनता के मन में उठना स्वाभाविक है। न तो अपने किसान संगठन के आगे 'अराजनीतिक' लगाने वाले इस सवाल से बच सकते हैं और न ही किसान आंदोलन के सहारे राजनीति करने वाले ही। वे भी इससे नहीं बच सकते जो 'किसान राजनीति' कहकर किसान आंदोलन को संसदीय राजनीति से अलग कहते हैं। तो यह विचार करना जरूरी है कि आख़िर 'राजनीति' है क्या? क्या विधायक-सांसद बनना-बनाना ही राजनीति है या जनता से उगाहे जाते पैसों को वारा-न्यारा करने की नीति है 'राजनीति'?... पंजाब का चुनावी सबक:         वैसे तो किसान आंदोलन से जुड़े कई नेता पहले चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा या एसकेएम ने पंजाब चुनाव से पहले तक संसदीय राजनीति से दूर रहने के ही संकेत द

आज का होरी कैसे बचेगा?..

                  आज का किसान                और 'गोदान'            'गोदान' उपन्यास को लिखे लगभग एक सदी बीत रही है। इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि गोदान उपन्यास में किसानों की दशा पर उठाए गए सवाल आज भी जीवन्त हैं। 1936 में इसके प्रकाशन के बाद से आज तक गंगा-यमुना में न जाने कितना पानी बह चुका है पर अधिकांश किसानों की दशा स्थिर जैसी है। कुछ बदला है तो खेती के नए साधनों का प्रयोग जो आधुनिक तो है पर वह किसानों की अपेक्षा लुटेरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधीन होने के कारण किसानों के नुकसान और कम्पनियों के मुनाफ़े का माध्यम बना हुआ है। खेती के इन नए साधनों या उपकरणों के अधीन किसान आज भी कर्ज़ में डूबी हुई खेती के सहारे जीवन यापन कर रहा है। हल की जगह ट्रैक्टर आ गए लेकिन किसान की आत्मनिर्भरता खत्म हो गई। वह ऐसी खेती की नई-नई मशीनों और उनके मालिकों का गुलाम हो गया।  आज खेतों में ट्रैक्टर, ट्यूबवेल और थ्रेशर तो चलते दिखते हैं पर इनके नाम ही बता रहे हैं कि ये किसानों के नहीं हैं, विदेशी कम्पनियों के हैं। क्या व्यवस्था का जिम्मा लेने वाले हुक्मरानों की इतनी भी कूबत नहीं रही कि वे देश

संयुक्त किसान मोर्चा (पंजाब) नहीं लड़ेगा चुनाव!

                        चुनावों से नहीं, आंदोलन से ही                     बदलेगी किसानों की तक़दीर ★ संयुक्त किसान मोर्चा नहीं लड़ेगा पंजाब विधानसभा चुनाव, एक दर्जन के लगभग बड़े संगठनों ने जनसंघर्ष जारी रखने का किया ऐलान। ★ चुनावो के लिए कोई भी व्यक्ति या संगठन SKM या 32 संगठनों का नाम प्रयोग न करें।       संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने स्पष्ट किया है कि वे पंजाब विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे है।  यह जानकारी मोर्चा की 9 सदस्यीय समन्वय समिति के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल व डॉ.दर्शनपाल ने दी। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा जो देश भर में 400 से अधिक विभिन्न वैचारिक संगठनों का एक मंच है जो केवल किसानों के मुद्दों पर बना है। न तो चुनाव के बहिष्कार का कोई आह्वान नहीं है और न ही चुनाव लड़ने की कोई समझ बनी है।  उन्होंने कहा कि इसे लोगों ने सरकार से अपना अधिकार दिलाने के लिए बनाया है और तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के बाद संघर्ष को स्थगित कर दिया गया है, शेष मांगों पर 15 जनवरी को होने वाली बैठक में निर्णय लिया जाएगा.          पंजाब में 32 संगठनों के बारे में उन्होंने कहा कि इस विधानसभा चु

एक कविता खेतों की

               ★ खेतों के क़ातिल ★ पूरी मिठास पूरे स्वाद के साथ आएगा सच, यह जहर आपकी ज़िंदगी निगल जाएगा। आप? आप खुद को भी पहचान नहीं पाएँगे वे आपको आप नहीं हैं कोई और हैं बता जाएँगे। वे क़ातिल हैं खेतों के, फसलों के खलिहानों के उन्हें पता हैं सारे राज निकल ते  गेहूँ के  दानों के। वे तुम्हारी ताकत न सिर्फ़ गेहूं से निचोड़ेंगे वे तुम्हें रोटी खाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे। वे ला रहे हैं ऐसे कानून जो अंग्रेज भी न ला पाए थे लूटा था अंग्रेजों ने जरूर पर खेत न कब्ज़ा पाए थे।  अब जो हुक्मरान हैं वे अंग्रेजों से भी भले आगे हैं इन्हें नहीं पता किसान मजदूर बेरोजगार अब जागे हैं। ये कम्पनीराज जो देशी भी है विदेशी भी, खदेड़ा जाएगा इनका दलाल कोई भी किसी चोले में हो, न बच पाएगा।                    ★★★★★★

वे कहीं नहीं जा रहे, शासको!...

            किसानों की घर-वापसी                                                        -- अशोक प्रकाश वे कहीं नहीं जा रहे शासको, तुम्हारी परीक्षा ले रहे हैं तुम्हें लोकतांत्रिक होने का एक और मौका दे रहे हैं... मुग़ालते में मत रहना जुमलेबाजी और मत करना! ये देश असल में किसानों का है मजदूरों मेहनतकशों नौजवानों का है देश में जुमलेबाज नहीं रहेंगे काम चलेगा किसान मजदूर नौजवान बिना आखिर देश क्या रहेगा? जनद्रोही होने से डरना फिर विश्वासघात मत करना! तुम्हें पता है वे झूठ नहीं बोलते नमकहराम पूंजीपतियों की तरह मनुष्य को मुनाफ़े के तराजू पर नहीं तौलते... किसान आंदोलन के मोर्चों पर शहीद हुए किसानों को याद रखना किसानों के दिलों में- 'तुम्हीं सचमुच देशद्रोही हो' पैदा करने से बचना! हाँ, वे कहीं नहीं जा रहे शासको, हजारों साल से इस धरती को शस्य-श्यामला उन्होंने ही बनाया है देश की सारी प्रगति उनके ही खून-पसीने की माया है... तुम्हारे मित्र और तुम्हारे मित्रों के मित्र मुनाफ़ाखोर हैं, धूर्त हैं, लुटेरे हैं हो सके तो समझना किसान मजदूर नौजवान ही देश के पहले हक़दार हैं, उ

खत्म नहीं हो रहा किसान आंदोलन: बड़े बदलाव के लिए तैयार हो रहा है!

            समझौता, स्थगन और                 आगे की रणनीति फ़िलहाल, संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली सीमाओं पर एक साल से अधिक समय से चल रहा धरना समाप्त कर घर वापसी का निर्णय ले लिया है। लेकिन इसे किसान आंदोलन की समाप्ति के रूप में न कहकर 'वर्तमान आंदोलन को फिलहाल स्थगित कर दिया गया' रूप में विज्ञापित किया गया है। वैसे भी संयुक्त किसान मोर्चा नाम से न सही, किसान आंदोलन तो चलते ही रहेंगे! ज़्यादा सम्भावना है कि स्थानीय स्तर पर लोगों को इस साल भर चले सफल धरने से मिली ऊर्जा से किसान आन्दोलनों को और गतिशील बनाने में मदद  मिलेगी। ऐतिहासिक   और सफल आंदोलन की गूंज भविष्य में भी सुनाई देती रहेगी तथा इससे जनांदोलनों और जनतंत्र को मजबूती मिलती रहेगी। संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस-विज्ञप्ति पढ़ें: भारत सरकार ने, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव के माध्यम से, संयुक्त किसान मोर्चा को एक औपचारिक पत्र भेजा, जिसमें विरोध कर रहे किसानों की कई लंबित मांगों पर सहमति व्यक्त की गई - इसके जवाब में संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली सीमाओं पर राष्ट्रीय राजमार्गों और अन्य स्थानों पर चल रहे विभिन्न मोर्चों को

ये किसकी जीत ये किसकी हार?..

              तंत्रलोक के किस्से यार                           --  अशोक प्रकाश तंत्रलोक के किस्से यार ये किसकी जीत ये किसकी हार! इक हौली में चार पियक्कड़ अक्कड़ बक्कड़ लाल बुझक्कड़ तय है वादा तय है रोना तय है खोना तय है सोना तय है किस पर पड़नी मार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! रामसिंह के रमरजवा नौकर किसके पेट पे किसकी ठोकर चार हजार में कर मज़दूरी रामसिंह कहें ये मजबूरी किसके सइकिल किसके कार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! खेती-बाड़ी मुश्किल काम न दिन आराम न रात आराम खाद-बीज-पानी के चक्कर राधा-कृष्ण बने घनचक्कर उमर हो गई सत्तर पार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! बड़का लड़का पड़ा बीमार नौकरी-चाकरी कुछ न यार छोटकी की पहले परवाह कैसे होगा इसका ब्याह? क्षीण पड़ रही जीवन-धार... ये किसकी जीत ये किसकी हार!               ★★★★★

अनदेखी पड़ेगी महँगी

                  किसान आंदोलन की अनदेखी                                  पड़ेगी महँगी   कोई समझे या न समझे! कोई माने या न माने! देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दुनिया की जनता की दुश्मन नम्बर एक सिद्ध हो रही हैं। पूँजी के बल पर ज्ञान-विज्ञान पर कब्ज़ा कर अपने मुनाफ़े के लिए वे मानव-जीवन के साथ लगातार खिलवाड़ कर रही हैं। #भोपाल_गैस_त्रासदी उनके इसी मानवद्रोही खेल का नतीज़ा थी। अपने देश में ही लाखों पेड़ों का काटा जाना, बक्सवाहा जैसे प्राकृतिक वातावरण को अक्षुण्ण रखने वाले जंगलों को नष्ट किया जाना, शहरों से लेकर गाँवों तक तक रासायनिक तत्त्वों और खतरनाक विकिरण के माध्यम से जन-जीवन को दाँव पर लगाना- सब पूंजीपतियों और उनकी सर्वग्रासी कम्पनियों की करतूतों के चलते हो रहा है। भोपाल गैस काण्ड के हत्याओं के दोषियों को सरकारों ने बचा लिया। अपनी कुर्सी के लिए नेताओं की ऐसी करतूतें देशद्रोह क्यों नहीं कही जानी चाहिए?             संयुक्त किसान मोर्चा ने भोपाल गैस काण्ड को याद करते हुए कम्पनीराज के पक्ष में खड़ी वर्तमान भाजपा सरकार को यह याद दिलाया है कि किसान आंदोलन को मिल रहे व्यापक जन समर्थन की अनदे

बहाना न बनाए सरकार...

                जारी है किसान आंदोलन,                      जारी रहेगा! ★ विरोध कर रहे किसानों की लंबित मांगों के संबंध में स्वीकृति के किसी भी औपचारिक वार्ता के बिना भारत सरकार उन्हें मोर्चों पर बने रहने के लिए मजबूर कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि उनके पास विरोध कर रहे किसानों की मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं है - किसान सकारात्मक कार्रवाई और उनकी जायज़ मांगों को पूरा किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ★ भाजपा-जजपा नेताओं का बहिष्कार जारी है - उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला गांव में प्रवेश न कर सके, इसके लिए जींद (हरियाणा) के उचाना के धरौली खेड़ा गांव में बड़ी संख्या में किसान जमा हुए ★ जहाँ सरकार कह रही है कि उसके पास प्रदर्शनकारी किसानों की मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है, एसकेएम याद दिलाता है कि पिछले साल औपचारिक वार्ता के दौरान शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकार के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर मौन धारण किया था - आंदोलन के पास सभी आंदोलन के वीर शहीदों का रिकॉर्ड हैं और शहीदों के परिजनों के पुनर्वास की मांग पूरी करने के लिए सरकार का इंतजार रहा है:संयुक्त किसान मोर्चा

मानव-सभ्यता के संघर्ष की एक कड़ी है किसान आंदोलन

                       किसान आंदोलन:              और आगे बढ़ेगा    अभी और जीतें हासिल होंगी किसान आंदोलन को। लेकिन इससे आंदोलन खत्म करने के शासकों के मंसूबे पूरे नहीं होंगे। कारण, पूरे देश के प्राकृतिक सांसधनों, विशेषकर जीवन के आधार खेती पर गिद्धदृष्टि लगाए कॉरपोरेट घरानों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंपने की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रक्रिया चला रखी है उससे देश की बहुसंख्यक आबादी की दुर्दशा होनी ही है। किसान आंदोलन धीरे-धीरे कॉरपोरेट-गुलामी के खिलाफ उभर रहे जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है। और यह स्वाभाविक है। मानव-जीवन को दाँव पर लगाकर अधिकाधिक मुनाफ़ा कमाने की पूंजीपतियों की होड़ कॉरपोरेट-राज के खात्मे पर ही खत्म हो सकती है। इसलिए यह संघर्ष अवश्यंभावी है।          किसान आंदोलन का हर कदम इस मानवोचित संघर्ष की अगली कड़ी है। शासक सुधर जाएं तो अलग बात है। पढ़ें संयुक्त किसान मोर्चा की हालिया प्रेस-विज्ञप्ति: ★ 26 नवंबर 2021 को भारत के लाखों किसानों के लगातार संघर्ष के 12 महीने पूरे होने पर देशभर में बड़े कार्यक्रमों की तैयारी जारी - 25 नवंबर को हैदराबाद में एक महाधरना होगा - सर छोटू राम की जयंती क

कविता की भाषा में किसान आंदोलन

             क्या है किसान आंदोलन ?                               - अशोक प्रकाश 1. हम पर न दया करो, न तरस खाओ हमारा हक़ छीना जा रहा है, हमारे साथ आओ!.. 2. खाद-बीज-बिजली-डीज़ल-कीटनाशक सब पर जिनका अधिकार है, किसान की मेहनत के लुटेरे हैं वे, इन मुनाफाखोरों का किसान शिकार है!... 3. सबको अपनी उत्पादन-लागत-मेहनत के अनुसार मुनाफ़ा तय करने का अधिकार है, ये कौन सी नीति है, किसान की लागत, कीमत, मुनाफ़ा पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधिकार है?...  4. जब किसान को मिलेगी सुनिश्चित आय कर्जा-मुक्त होंगे जब सभी किसान फसल का मिलेगा पूरा दाम जब देश में होगा  किसान का तब असली सम्मान!..  5.   विकास का सारा मतलब उलटा समझाया गया है चंद लोगों के विकास को किसानों का, जनता का विकास बताया गया है... ऐसा कब तक और क्यूँ चलेगा? किसी का एंटिला देखकर बेरोजगार नौजवान कब तक बहलेगा??...                           ★★★★★★★ हिन्दी साहित्य

राजनीति के मायने बदल रहा है किसान आंदोलन

                          राजनीतिक दल क्या              राजनीति की मर्यादाएं छोड़ चुके हैं?       भले ही संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाया जा रहा किसान आंदोलन संसदीय राजनीति से दूरी बनाए हुए है लेकिन सच यही है कि यह राजनीति की एक नई इबारत लिख रहा है। ज़्यादा सही कहना यह होगा कि किसान आंदोलन राजनीतिक दलों को राजनीति की मर्यादाएँ दिखा और सिखा रहा है। यही काम आज़ादी के पहले के विविध जनांदोलनों ने किया था। तब के राजनीतिज्ञों ने इसे समझा और अहमियत दी थी। आज राजनीति पैसा और ऐश्वर्य का महल खड़ा करने की एक चाल सिद्ध हो रही है। देखा यही जा रहा है कि इसी कोशिश में तमाम राजनीतिक दलों के नेता लगे हुए रहते हैं। आम जनता की ज़िंदगी की बेहतरी की उनकी बातें वास्तव में एक 'जुमला' ही सिद्ध होती हैं। चुनावों के बाद फिर चुनावों में नज़र आने वाले नेता मंदिरों, देवताओं, धर्म-मज़हब-जाति के सहारे इसीलिए रहते हैं क्योंकि असली मुद्दों से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता।        हाल में किसान आंदोलन ने जिस तरह किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों के मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाने की कोशिश की है उस पर गौर कर

'शर्म उनको मगर नहीं आती...'

                    झूठ का राज कब तक चलेगा? क्या गाजीपुर बॉर्डर गए हैं आप?.. टिकरी और सिंघु बॉर्डर? सवाल किसानों, किसान आंदोलनकारियों से नहीं- किसान आंदोलन के उन समर्थकों और विरोधियों से है जो पूरी हकीकत से नहीं वाकिफ़! नहीं गए लेकिन इस बात में उत्सुकता है कि सरकार किसानों से कितना भयभीत है या भयभीत होने के बहाने उन्हें डराने-धमकाने की नाकाम कोशिश किस तरह कर रही है तो बिना समय गंवाए एक-दो दिन में वहां पहुंच जाइए और देखिए कि हुक्मरानों का लोकतंत्र और देश की जनता पर कितना विश्वास है!..और तब जब सच और झूठ के अंतर्विरोधों से घिरी सरकार को किसान आंदोलन ने बखूबी बेनकाब कर दिया है, आपको किसान आंदोलन की अहमियत का पता लग जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा की यह प्रेस-विज्ञप्ति आपकी मदद करेगी!..  ★ संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर मांग करता है कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड की जांच सीधे सर्वोच्च न्यायालय के मातहत की जानी चाहिए ★ कृषि आत्महत्याओं पर भारत सरकार का एनसीआरबी डेटा पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि दर्शाता है - संयुक्त किसान मोर्चा की मांग है कि किसानों के संकट को दूर

क्या हिंसा से दबा दिया जाएगा किसान आंदोलन?

                            हिंसा और बदले की कार्रवाई से                     किसान आंदोलन को             खत्म करने की कोशिश यह कोई नई बात नहीं है, न ही अजूबी है। शासकवर्ग जनता के आंदोलनों को ख़त्म करने, बदनाम करने, लाठियाँ-गोलियाँ  बरसाने की कोशिशें अंग्रेजों के जमाने से और उससे भी पहले से करता रहा है। सुई की नोक बराबर भी जमीन की मांग न स्वीकार करने, महाभारत रचने, प्रतिभाशाली धनुर्धरों का अंगूठा काट लेने, विरोधियों के सिर हाथियों से कुचलवा देने अथवा जिंदा ही दीवार में चिनवा देने आदि-आदि बर्बर काण्डों की कहानियों से हम परिचित हैं। बहादुर शाह जफर के बेटों के सिर काटकर तस्तरी में पेश करने, जलियांवाला बाग काण्ड से लेकर न जाने कितने क्रूरतम कारनामे इतिहास में दर्ज़ हैं। अपनी सत्ताओं को बनाने और बचाने के लिए शासकों ने कितनी तरह की यातनाएं विरोधियों को दी है, मानव सभ्यता के विकास का रक्तरंजित इतिहास उसका गवाह है।...         लेकिन परिणाम क्या रहा?.. बर्तोल्त ब्रेख्त याद आते हैं:  'जिन्होंने नफ़रत फैलाई, क़त्ल किए और खुद खत्म हो गए नफ़रत से याद किए जाते हैं... जिन्होंने मुहब्बत का सबक पढ़ाया और

बचने की कोशिश में वे और बेनकाब हो रहे हैं!..

                          जन गोलबन्दी              और बढ़ रही है! ठीक है, तुम्हारा राज है! तुम शेरअली बन रहे हो। पर तुम ऐसा सोचने वाले पहले लोग नहीं हो। तुमसे पहले जिन्होंने भी हिटलरी ख़्वाब पाले, मिट्टी में मिल गए ! सुधर जाओ, नहीं तो जनता सुधार देगी। कानून और संविधान से ऊपर मत समझो अपने गिरोह को!...       जी, राजसत्ता के मद में चूर हुक्मरानों के लिए जनता की यही चेतावनी उनके, बढ़ते किसान आंदोलन के इरादों से प्रकट हो रही है।   पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस-विज्ञप्ति! ★ पूरे भारत में शहीद किसान दिवस मनाया जाएगा - लखीमपुर खीरी के शहीदों की अंतिम अरदास कल (12 अक्टूबर) तिकोनिया में होगी - एसकेएम ने पूरे देश में  प्रार्थना और श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित करने की अपील की - दिन को यादगार बनाने के  लिए कल शाम मोमबत्ती मार्च निकाला जाएगा ★ एसकेएम ने अजय मिश्रा टेनी के केंद्रीय मंत्रिपरिषद में बने रहने और उनकी गिरफ्तारी न होने पर निराशा व्यक्त की - एसकेएम ने कहा। लखीमपुर खीरी किसान नरसंहार में उनकी भूमिका स्पष्ट है और पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा अब तक की कार्रवाई नहीं किया जाना शर्मनाक है - यह तथ्य क

क्या घिर गई है सरकार?..

  तुम नहीं,    जनता ही अपराजेय है!                   इलाहाबाद संयुक्त किसान मोर्चा पंचायत जी हाँ, किसान आंदोलन के प्रति दिनो-दिन बढ़ता समर्थन यही कह रहा।कोई भी सत्ता कभी अपराजेय नहीं रही, चाहे खुद को जितना भी ताकतवर समझती रही हो। मंत्रीपुत्र ने तो यही सोचा रहा होगा कि सब कुछ दुर्घटना बनाकर साफ बच निकलेगा। मंत्रीजी तो अभी भी यही जुगत भिड़ा रहे होंगे। लेकिन आज नहीं तो कल 'सत्यमेव जयते!' होगा ही। पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा का नया बयान-  ★ एसकेएम ने भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि 11 अक्टूबर की समय सीमा समाप्त हो रही है - लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड में सभी दोषियों की गिरफ्तारी के अलावा अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी अभी भी लंबित है - अजय मिश्रा टेनी के केंद्र सरकार में मंत्री पद पर बने रहने के कारण न्याय के साथ स्पष्ट रूप से समझौता हो रहा है: एसकेएम ★ हरियाणा और चंडीगढ़ पुलिस किसानों के खिलाफ मामले दर्ज करने के लिए तत्पर है - हालांकि, जहां किसान न्याय मांग रहे हैं, विभिन्न राज्यों में पुलिस विभाग धीमी गति से चल रही है - ऐसे दोहरे मानदंड स्वीकार्य नहीं