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खेती पर कम्पनियों के नियंत्रण के खिलाफ संसद मार्च

                                नये दौर में पहुँचा                     किसान आंदोलन संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन कॉर्पोरेट अधिग्रहण की चपेट में जाने की संभावनाएं दिख रही है - हम भारत में इसी के खिलाफ संघर्ष कर रहे है:                                -- संयुक्त किसान मोर्चा जैसा कि पहले ही घोषित किया जा चुका है, संयुक्त किसान मोर्चा मानसून सत्र के सभी कार्य दिवसों पर संसद के पास विरोध प्रदर्शन की अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। हर दिन 200 प्रदर्शनकारियों द्वारा इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया जाएगा और किसान यह प्रदर्शित करेंगे कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को किस तरह से चलाया जाना चाहिए। एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की। योजनाओं को व्यवस्थित, अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। 200 चयनित प्रदर्शनकारी सिंघू बॉर्डर से प्रतिदिन पहचान पत्र लेकर रवाना होंगे। एसकेएम ने यह भी कहा कि अनुशासन का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वर्तमान किसान आं

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और कोई सहारा नहीं!.. जी, छतरपुर के बक्सवाहा जंगलों में कुछ ऐस

शहीद महावीर सिंह को आप जानते हैं क्या?

                     शहीद भगतसिंह के साथी:                         अमर शहीद महावीर सिंह            देश की माटी अमर शहीदों की यादगार है। इस देश की खेती-बाड़ी, इस देश के किसानों-मजदूरों की खुशहाली के लिए अनगिनत शहीदों का कर्ज हम सब पर है। जैसे अंग्रेजों के समय रायबहादुर, रायसाहब, सर आदि उपाधियां लेने वालों और जनता से गद्दारी कर अंग्रेजी राज और उनकी कम्पनियों को लूट में सहयोग करने वालों की कमी नहीं  थी, वैसे ही आज भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दलाली करने, उनसे सांठगांठ करने, तथाकथित 'समझौता' कर देश के प्राकृतिक संसाधनों-जल, जंगल, जमीन..बाज़ार और मानवश्रम का कारोबार करने और उनके बल पर सत्ता-सुख हासिल करने, अरबों-खरबों का वारा-न्यारा करने वालों की कमी नहीं है। जनता की बदहाली और इन जनद्रोहियों के ऐशो-आराम से आज की हालात को समझा जा सकता है।  लेकिन देखें, शहीद भगतसिंह के साथी अमर शहीद महावीर सिंह ने क्या किया था और इन देश के सच्चे नेताओं से आज जे नेताओं की तुलना करें!...  17 मई 1933 की शाम थी, जब अंडमान (कालापानी) की जेल के बैरक संख्या 66 में आधे घण्टे की कुश्ती के बाद दस -बारह व्यक्तियों

क्यों चलता रहेगा किसान आंदोलन?..

           किसानों की तकलीफों से निकला है                        किसान आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सिंघु बॉर्डर पर एक सभा में कहा कि किसानों के दर्द से निकला है यह किसान आंदोलन और जब तक किसानों की किसानों की माँगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक चलेगा! सिंघु बॉर्डर पर किसानों को संबोधित करते हुए नेताओ ने कहा कि इस आंदोलन में किसानों को किसान न कहकर उन्हें अन्य पहचान से जोड़ा गया व उनकी शिक्षा पर भी सवाल किया गया। किसान नेताओं ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि यहां आंदोलन कर रहे किसान को किसान की ही पहचान से जाना जाए और किसानों को यह कानून पूरी तरह समझ आ गए है, इसीलिए यह आंदोलन इतना मजबूत है। मोर्चा ने बताया कि 10 मई को सिंघु व टिकरी बॉर्डर पर किसानों के बड़े काफिले आये। कई जगह पर किसानों का स्वागत किया गया। ट्रेक्टर, कारों व अन्य वाहनों में आये इन किसानों ने मोर्चे को बड़ा करते हुए पहले की तरह टेंट और ट्रॉली में रहने का इंतज़ाम कर लिया है। किसानों का धरना लंबा होता जा रहा है। दिल्ली मोर्चो पर लंबी कतारों में किसानों के टेंट, ट्रॉली व अन्य वाहन पिछले 5 महीने से खड़े है। किसानों के क

किसान आंदोलन और 1857 की क्रान्ति

                 और तेज होगा किसान आंदोलन   दिनांक 10 मई,  2021 को गाजीपुर बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा ने 1857 के शहीदों को याद करते हुए शहीद मंगल पाण्डेय के तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर किसान आंदोलन के नेताओं ने 1857 की क्रांति और आज के किसान आंदोलन पर अपने उद्गार व्यक्त किए! वक्ताओं ने बताया कि अंग्रेज  भारत के जमींदारों से मिलकर किसानों से अत्यधिक लगान वसूली कर रहे थे और उन्हें जमीन से बेदखल कर रहे थे। यही इस क्रांति की मूल जड़ में था।  खेती की बर्बादी और बढ़ती भूख बेरोजगारी में अंग्रेजों के शासन की बड़ी भूमिका थी। वे अपने माल को बेचने के लिए यहां के बुनकरों, लोहारों, बढ़ाई, चर्मकार- सब को बर्बाद कर रहे थे ताकि उनका माल यहां बिक सके। देश के तमाम किसान, कारीगर, व्यापारी अंग्रेजों के राज के खिलाफ उठ खड़े हुए और कई देशभक्त रजवाड़ों ने भी उनका साथ दिया।  आज के हालात से इसकी तुलना करते हुए वक्ताओं ने बताया कि जो तीन कानून सरकार लाई है और जो एमएसपी की गारंटी सरकार नहीं देना चाहती, इससे पूरी खेती बर्बाद हो जाएगी और बड़े कारपोरेट तथा विदेशी कंपनियों के हाथों में चली

What is the biggest threat to peasants?..

        Farmers are facing multi-fold problems:                              Corona is just one! Indian people are facing many fold problems these days. Corona is one of them. Although it seems the biggest threat to people, yet they are facing other problems which threaten their life even more . One of these problems is anti-peasant new laws. Farmers are protesting against these three laws for more than four months on the borders of India's capital Delhi and are demanding to withdraw these farm bills. Under these circumstances five Indian States witnessed elections along with local body or Panchayat elections in its most populous state Uttar Pradesh. Ruling BJP at Centre had taken these elections very seriously, particularly West Bengal province was taken as its prestige. BJP lost WB, Tamilanadu and Kerala which is considered its big loss. Sanyukt Kisan Morcha or Joint Peasants' Front terms it defeat against anti-peasants policies of Central Government and demand immediate with

अखिल गोगोई- किसान आंदोलन की एक नई परिभाषा

                       कौन हैं अखिल गोगोई?...     ★ अखिल गोगोई की जीत से असम में नई राजनीति का दौर शुरू हो, ★अखिल गोगोई की जीत से देश के किसान आंदोलन को बल मिलेगा।                             ~~~ डॉ. सुनीलम     असम के शिवसागर विधानसभा क्षेत्र से अखिल गोगोई चुनाव जीत गए। 5 राज्यों में जहां भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां कोई ना कोई उम्मीदवार जीता है। लेकिन अखिल गोगोई की जीत विशेष महत्व रखती है। जीत का महत्व केवल इसलिए नहीं है कि असम की भाजपा सरकार और  कॉर्पोरेट  की पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी वे चुनाव जीते हैं, यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि वह डेढ़ वर्षो से जेल में बन्द होने और चौतरफा हमले के  बावजूद भी चुनाव जीते हैं।  असम सरकार ने उन पर यूएपीए लगाया है, एनआईए ने राष्ट्र द्रोह के प्रकरण तैयार किये हैं। तमाम मुकदमों में उन्हें हाईकोर्ट से राहत मिल चुकी है लेकिन एनआईए कोर्ट उन्हें जमानत देने को तैयार नहीं है। परन्तु शिवसागर की जनता की अदालत में उनकी जीत हो गई है। अखिल गोगाई की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जब दो पार्टियों या मोर्चों के बीच ध्रुवीकरण होता है तब तीसरे का जितना लगभग

प्रवासी मजदूर और किसान आंदोलन:

किसान आंदोलन             क्या प्रवासी मजदूरों के साथ आने से        और तेज होगा  किसान आंदोलन?           हालांकि पिछले साल की अभूतपूर्व और निर्मम प्रवासी मजदूर पलायन की घटना की पुनरावृत्ति शायद ही इस साल हो!...क्योंकि शासकवर्ग भी यह जानता है और प्रवासी मजदूर भी कि ऐसा होना किसी भी प्रकार की अनहोनी घटना को आमंत्रण दे सकता है। यद्यपि पूंजीवाद अपने मुनाफे के लिए किसी भी हद तक क्रूर हो सकता है, पिछली सदी के दो विश्वयुद्ध इसीलिए लड़े गए थे, किन्तु इनके संचालक यह भी समझते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि सिक्के का पहलू हमेशा उनकी तरफ ही बना रहे। दो विश्वयुद्धों का परिणाम भी उन्हें अच्छी तरह पता होगा। इन युध्दों के बाद एक समय ऐसा लगने लगा था कि जैसे दुनिया से पूंजीवाद का हमेशा के लिए खात्मा हो जाएगा। इन युध्दों के खिलाफ उठ खड़ी हुई जनता की वैश्विक गोलबंदी का ही परिणाम था लंबे समय से बनाए रखे गए उपनिवेश आज़ाद होने लगे। भले ही औपनिवेशिक शासकों ने स्थानीय शासकों से मिलकर मुनाफे को बनाए रखने के समझौते किए और इसी का परिणाम है कि वैश्विक पूँजीवाद या साम्राज्यवाद आज भी जिंदा है। दुनिया भर की जनता को इन समझौतों

दांडी से दिल्ली: एक नया प्रयोग

काले कानून मिट्टी सत्याग्रह        किसान आंदोलन का एक अभिनव प्रयोग:                         मिट्टी सत्याग्रह                  https://youtu.be/Ml2fxGNdLv8 सत्ता के मद में चूर बड़बोले घमंडोले देश के शासकों को आज लगता है कि किसानों के आंदोलन से उनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला! कम से कम किसानों के आंदोलन और अंग्रेज़ी कानूनों से भी खतरनाक लाए गए किसानी सम्बन्धी कानूनों पर अडिग रहने की उनकी हठधर्मिता से यही प्रतीत होता है। पर देश की मिट्टी से जुड़ें करोड़ों सचेत किसानों, मजदूरों, नौजवानों,  बुद्धिजीवियों को पता है कि देश की मिट्टी के असली वारिस किसानों को नज़रंदाज़ करने से बड़े से बड़े राजाओं-महाराजाओं, नवाबों-बादशाहों की स्मृतियाँ भी मिट्टी में मिल गई हैं। आज उन्हें नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से ही देखा जाता है। देश-दुनिया के किसानों-मजदूरों द्वारा निर्मित की जाने वाली मानव सभ्यता के विकास के वे रोड़े और खलनायक ही माने जाते हैं। कुछ ऐसी ही सोच आज के किसान आंदोलन और दांडी से दिल्ली की मिट्टी सत्याग्रह यात्रा की पड़ताल करने से भी बनती है। तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ़ चार महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा

व्यापक हो रहा है किसान आंदोलन

काले कानून                       रोज़-रोज़ और तेज... और व्यापक हो रहा है  किसान आंदोलन                     दिल्ली बॉर्डर से शुरू हुआ किसान आंदोलन रोज़-रोज़ और तेज, और व्यापक होता जा रहा है। एक तरफ़ जहाँ केंद्र सरकार किसान आंदोलन के प्रति ऐसा व्यवहार प्रकट कर रही है जैसे इस आंदोलन से उस पर कोई फर्क़ नहीं पड़ने वाला, वहीं दूसरी तरफ़ किसान आंदोलन के चार महीने पूरे होने पर 26 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति से यह पता चलता है कि किसान आंदोलन अब और व्यापक होते हुए कस्बों-गाँवों तक फैलने तथा और सुदृढ़ होने लगा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता/प्रवक्ता डॉ. दर्शनपाल द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पूरी पढ़ने पर इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है: बढ़ता जा रहा किसान आंदोलन     "सयुंक्त किसान मोर्चा सभी किसानों-मजदूरों व आम जनता को आज के भारत बंद की सफलता की बधाई देता है। गुजरात के किसानों के साथ संघर्ष में पहुंचे किसान नेता युद्धवीर सिंह को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया जिसकी हम कड़ी निंदा व विरोध करते है। आज देश के अनेक भागों में भारत बंद का प्रभाव रहा। बिहार में 20 से ज्यादा जि