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Showing posts from August, 2020

पण्डित जसराज: ख़्याल गायकी के सरताज़

                                      पण्डित जसराज:                   स्वामी हरिदास और तानसेन की परंपरा के                                      आधुनिक साधक अंग्रेज़ों का जमाना था। पूरे देश पर उनका क़ब्ज़ा था। सब जगह उन्हीं की तूती बोलती थी, लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां अंग्रेजों की एक न चलती थी। वह जगह थी शास्त्रीय संगीत!...संस्कृत भाषा और साहित्य पर भी यूरोपीय उपनिवेशवादियों के समय में उनके कुछ विद्वानों ने अपनी धाक जमाने की कोशिश की, उसे मनोयोग से सीखा और उसमें निहित ज्ञान-विज्ञान का सदुपयोग किया किन्तु भारतीयों में उसके मिथकों, अंधविश्वासों और पाखण्डों को स्थापित किया। किन्तु शास्त्रीय संगीत पर उनका जोर ज़्यादा न चल सका, खासतौर पर गायकी पर!  पण्डित जसराज उस दौर की उपज थे जो राजनीतिक और सामाजिक तौर पर देश में आंदोलनों और विश्वयुद्ध की विभीषिकाओं का दौर था। उनकी उम्र केवल तीन-चार साल की थी जब उनके पिता पण्डित मोतीराम का निधन ही गया। 28 जनवरी 1930 को जन्मे पण्डित जसराज को यद्यपि अपने पिता के मेवाती संगीत घराने का वरदहस्त प्राप्त था, किन्तु एक पितृहीन बालक को वास्तव में तो अपना भविष्

आप ईमानदार हैं...

एक कविता और:                             आप ईमानदार हैं.. अच्छी बात है  आप ईमानदार हैं... इसीलिए आपके ज़ुकाम में अस्पताल में आपके इक्कीस तीमारदार हैं!... आपका धर्म ईमानदार है आपकी जाति ईमानदार है आपका गोत्र ईमानदार है आपकी पाँति ईमानदार है! ईमानदारी आपकी रगों में दौड़ती है जैसे खून के साथ दौड़ता है हीमोग्लोबिन- आपकी ईमानदारी कभी भ्रष्ट नहीं होती है!... हुज़ूर! आप हत्याएँ भी ईमानदारी से करवाते हैं, हत्याओं को विरोधियों का वध बताते हैं!...                             ★★■★★

प्राकृतिक देव: मूल खोजो, सत्य मिलेगा!

प्रकृति के देवता:                     महामृत्युञ्जय मंत्र   वैदिक मंत्र प्रायः प्राकृतिक देवताओं की स्तुतियों के मंत्र हैं। ऋषि जगत से प्राप्त ज्ञानार्जन द्वारा प्राकृतिक तत्त्वों से अपनी रक्षा की कामना करते हैं। इन प्राकृतिक तत्त्वों या देवताओं में वे अलौकिकता यानी दिव्यत्व का भी आभास करते हैं। वे इन भौतिक से आधिभौतिक, अलौकिक अपरंच आध्यात्मिक तत्त्वों को आत्मसात कर उनसे प्रेरणा लेने की कामना करते हैं। ऋषियों की इसी विशेषता के चलते उन्हें 'ऋषयः मन्त्र दृष्टारः' अर्थात् मन्त्रों की केवल रचना करने वाले नहीं, उन्हें देखने वाले, समझने या अनुभव करने वाले कहा गया है। ऋषियों द्वारा रचे गए ऐसे मन्त्रों में 'महामृत्युंजय' मन्त्र का बड़ा आदर है। इतना कि उनका 'जाप' करने से मृत्युभय से जीत जाने की कामना की गई है। मृत्युभय से इसी मुक्ति की कामना, जो कि एक प्राकृतिक कामना या इच्छा है, इस मंत्र को हिंदुओं का एक प्रमुख मंत्र माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इसके जाप से मृत्युभय नहीं सताता, नहीं रह जाता! इसे 'त्रयम्बक मंत्र' (तीसरी आंख  अर्थात दिमाग खोलने वाला मंत्र)