पण्डित जसराज: स्वामी हरिदास और तानसेन की परंपरा के आधुनिक साधक अंग्रेज़ों का जमाना था। पूरे देश पर उनका क़ब्ज़ा था। सब जगह उन्हीं की तूती बोलती थी, लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां अंग्रेजों की एक न चलती थी। वह जगह थी शास्त्रीय संगीत!...संस्कृत भाषा और साहित्य पर भी यूरोपीय उपनिवेशवादियों के समय में उनके कुछ विद्वानों ने अपनी धाक जमाने की कोशिश की, उसे मनोयोग से सीखा और उसमें निहित ज्ञान-विज्ञान का सदुपयोग किया किन्तु भारतीयों में उसके मिथकों, अंधविश्वासों और पाखण्डों को स्थापित किया। किन्तु शास्त्रीय संगीत पर उनका जोर ज़्यादा न चल सका, खासतौर पर गायकी पर! पण्डित जसराज उस दौर की उपज थे जो राजनीतिक और सामाजिक तौर पर देश में आंदोलनों और विश्वयुद्ध की विभीषिकाओं का दौर था। उनकी उम्र केवल तीन-चार साल की थी जब उनके पिता पण्डित मोतीराम का निधन ही गया। 28 जनवरी 1930 को जन्मे पण्डित जसराज को यद्यपि अपने पिता के मेवाती संगीत घराने का वरदहस्त प्राप्त था, किन्तु एक पितृहीन बालक को वास्तव में तो अपना भविष्
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.