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Showing posts from November, 2021

आज का किसान और गोदान

हिन्दी साहित्य आज का होरी https://youtu.be/16Ci1hB5o4k उसकी दशा बहुत खराब है! होरी की पहुंच अब राय साहब की चौखट तक भी नहीं रही। हाँ, गोबर का लड़का जरूर रामनामी गमछा माथे पर बांध ' भारतमाता की जय' इतने जोर से चिल्लाता है कि विधायकी का टिकट पाये राय साहब के भतीजे लट्ठन सिंह भी उसकी तरफ देखे बिना नहीं रहते!...अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने कार्यकर्ता-सम्मान में उसे भी 'जै माता दी' वाला पट्टा पहनाया था। पूड़ी-सब्ज़ी भी खिलाई थी और कहा था कि जब कहा जाय बंगले पर आ जाया करे!...            होरी को वह फूटी आंख भी नहीं सुहाता। पर होरी की सुनता कौन है?... अब थोड़ा सब्र के साथ आज के होरी की खेती-बाड़ी की हाल आगे पढ़िए-                                 आज का होरी                                                 प्रस्तुति  :  अशोक प्रकाश             खेती-किसानी राजनीति से ही नहीं, बुद्धिजीवियों-लेखकों के दिल-दिमाग से भी जैसे गायब होती जा रही है। यह अनायास नहीं है। यह एक ऐसा सायास फ़रेब है जिसकी कीमत सदियों को चुकानी पड़ सकती है। क्योंकि विकास की रफ्तार की जितनी और जैसी गति किसानों की रगों तक पहु

An Open Letter to 'Dear Prime Minister'

       An Open Letter to PM Mr Narendra Modi,                       from Samyukt Kisan Morcha 21 November 2021: Mr. Narendra Modi, Prime minister, Government of India, New Delhi. Subject: Your message to the nation and farmers' message to you Dear Prime Minister, Crores of farmers of the country heard your address to the nation on the morning of 19th November 2021. We noted that after 11 rounds of talks, you chose the path of unilateral declaration rather than a bilateral solution; nonetheless, we are glad that you have announced the decision to withdraw all three farm laws. We welcome this announcement and hope that your government will fulfill this promise at the earliest and in full. Prime Minister, you are well aware that repeal of the three black laws is not the only demand of this movement. From the very beginning of the talks with the government, the Samyukt Kisan Morcha had raised three additional demands: 1. Minimum Support Price based on the comprehensive cost of produc

मानव-सभ्यता के संघर्ष की एक कड़ी है किसान आंदोलन

                       किसान आंदोलन:              और आगे बढ़ेगा    अभी और जीतें हासिल होंगी किसान आंदोलन को। लेकिन इससे आंदोलन खत्म करने के शासकों के मंसूबे पूरे नहीं होंगे। कारण, पूरे देश के प्राकृतिक सांसधनों, विशेषकर जीवन के आधार खेती पर गिद्धदृष्टि लगाए कॉरपोरेट घरानों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंपने की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रक्रिया चला रखी है उससे देश की बहुसंख्यक आबादी की दुर्दशा होनी ही है। किसान आंदोलन धीरे-धीरे कॉरपोरेट-गुलामी के खिलाफ उभर रहे जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है। और यह स्वाभाविक है। मानव-जीवन को दाँव पर लगाकर अधिकाधिक मुनाफ़ा कमाने की पूंजीपतियों की होड़ कॉरपोरेट-राज के खात्मे पर ही खत्म हो सकती है। इसलिए यह संघर्ष अवश्यंभावी है।          किसान आंदोलन का हर कदम इस मानवोचित संघर्ष की अगली कड़ी है। शासक सुधर जाएं तो अलग बात है। पढ़ें संयुक्त किसान मोर्चा की हालिया प्रेस-विज्ञप्ति: ★ 26 नवंबर 2021 को भारत के लाखों किसानों के लगातार संघर्ष के 12 महीने पूरे होने पर देशभर में बड़े कार्यक्रमों की तैयारी जारी - 25 नवंबर को हैदराबाद में एक महाधरना होगा - सर छोटू राम की जयंती क

कविता की भाषा में किसान आंदोलन

             क्या है किसान आंदोलन ?                               - अशोक प्रकाश 1. हम पर न दया करो, न तरस खाओ हमारा हक़ छीना जा रहा है, हमारे साथ आओ!.. 2. खाद-बीज-बिजली-डीज़ल-कीटनाशक सब पर जिनका अधिकार है, किसान की मेहनत के लुटेरे हैं वे, इन मुनाफाखोरों का किसान शिकार है!... 3. सबको अपनी उत्पादन-लागत-मेहनत के अनुसार मुनाफ़ा तय करने का अधिकार है, ये कौन सी नीति है, किसान की लागत, कीमत, मुनाफ़ा पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधिकार है?...  4. जब किसान को मिलेगी सुनिश्चित आय कर्जा-मुक्त होंगे जब सभी किसान फसल का मिलेगा पूरा दाम जब देश में होगा  किसान का तब असली सम्मान!..  5.   विकास का सारा मतलब उलटा समझाया गया है चंद लोगों के विकास को किसानों का, जनता का विकास बताया गया है... ऐसा कब तक और क्यूँ चलेगा? किसी का एंटिला देखकर बेरोजगार नौजवान कब तक बहलेगा??...                           ★★★★★★★ हिन्दी साहित्य

राजनीति के मायने बदल रहा है किसान आंदोलन

                          राजनीतिक दल क्या              राजनीति की मर्यादाएं छोड़ चुके हैं?       भले ही संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाया जा रहा किसान आंदोलन संसदीय राजनीति से दूरी बनाए हुए है लेकिन सच यही है कि यह राजनीति की एक नई इबारत लिख रहा है। ज़्यादा सही कहना यह होगा कि किसान आंदोलन राजनीतिक दलों को राजनीति की मर्यादाएँ दिखा और सिखा रहा है। यही काम आज़ादी के पहले के विविध जनांदोलनों ने किया था। तब के राजनीतिज्ञों ने इसे समझा और अहमियत दी थी। आज राजनीति पैसा और ऐश्वर्य का महल खड़ा करने की एक चाल सिद्ध हो रही है। देखा यही जा रहा है कि इसी कोशिश में तमाम राजनीतिक दलों के नेता लगे हुए रहते हैं। आम जनता की ज़िंदगी की बेहतरी की उनकी बातें वास्तव में एक 'जुमला' ही सिद्ध होती हैं। चुनावों के बाद फिर चुनावों में नज़र आने वाले नेता मंदिरों, देवताओं, धर्म-मज़हब-जाति के सहारे इसीलिए रहते हैं क्योंकि असली मुद्दों से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता।        हाल में किसान आंदोलन ने जिस तरह किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों के मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाने की कोशिश की है उस पर गौर कर