ऐसे बस गया रसगुल्ला-नगर! रोज़गार की तलाश में लोग क्या-क्या नहीं कर जाते हैं?... जब से #पकौड़ा_रोजगार का जुमला उछला है, लोग मान गए हैं कि उनके सामने #आत्मनिर्भर होने के अलावा आजीविका का और कोई सहारा नहीं! अब इस हाई-वे के किनारे बसे रसगुल्ला नगर को ही देखिए! इसका इससे बेहतर नाम कुछ और नहीं सूझता। कोई और मिठाई नहीं, बस रसगुल्ले ही रसगुल्ले!..इन सभी दुकानों में! हाई-वे के दोनों तरफ। हाई-वे पर आते जाते लोगों/ ग्राहकों को बरबस अपनी ओर खींच लेती ये रसगुल्लों की दुकानें आजीविका चलाने का एक और नज़रिया हैं! सब के सब अपनी तरफ़ से बेहतर से बेहतर रसगुल्ले बनाने की कोशिश करते हैं ताकि आने-जाने वाले ग्राहक पक्के हो जाएं। इलाहाबाद के दक्षिण में चित्रकूट हाई-वे पर एक छोटे से कस्बे घूरपुर के पास बसे-बसते इस रसगुल्ला नगर की कहानी पुरानी नहीं है। पहले जब यहाँ हाई-वे नहीं एक साधारण सी सड़क हुआ करती थी। रेलवे क्रॉसिंग के पास एक छोटी सी गुमटी में एक सज्जन रसगुल्ले सजाते और आने जाने वालों को दोने में रखकर रसगुल्ले बेचते थे। क्रॉसिंग पर कोई
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.