मान्यता और नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा ~ आचार्य कृष्णानंद स्वामी पौराणिक कथाएं अनुभवजन्य ज्ञान की अनंत स्रोत हैं। एक ही पौराणिक कथा भिन्न-भिन्न पुराणों में किंचित भिन्न रूप में भी आई है। बौद्ध और जैन धर्म आदि धर्मों में भी ऐसी कथाओं के किंचित भिन्न रूप प्राप्त हुए हैं। जन-सामान्य में ये कथाएँ मिथक और दन्त कथाओं का रूप भी धारण कर ली हैं। कुछ लोग इन कथाओं को 'इतिहास' की तरह कहते और मानते हैं। आप क्या कर-कह सकते हैं?...'हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहि बहुविधि बहु संता।।' (रामचरित मानस, बालकाण्ड, 3/140) भारतीय जीवन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बनीं इन कथाओं से प्रेरणा भी मिलती है, मनोरंजन भी होता है और अगर इन्हें 'सत्य'कथा मान लें तो जीवन इन्हीं में रच-बस जाता है। चाहे-अनचाहे हम इनके अनुसार जीते-मरते हैं! अस्तु!.. दीपावली के एक दिन पहले नरक-चतुर्दशी आती है। नरक जाने या उससे उद्धार होने की नहीं, नरकासुर का वध होने की। इसे यम-चतुर्दशी भी कहा जाता है, यमराज से भयभीत होने के लिए नहीं, उनकी पूजा
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.