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क्या है छायावाद और उसकी कविता?

                छायावाद, प्रमुख कवि           और काव्य-रचनाएँ ★ 'छायावाद' शब्द का पहली बार प्रयोग सन 1920 में मुकुटधर पांडेय द्वारा जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'श्री शारदा' में प्रकाशित उनके लेख 'हिन्दी में छायावाद' में किया गया। ★ रामचन्द्र शुक्ल छायावाद का प्रवर्तक कवि मुकुटधर पांडेय और मैथिलीशरण गुप्त को मानते हैं। ★ आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी ने  छायावाद का प्रवर्तन सुमित्रानंदन पंत की कृति 'उच्छ्वास' (1920) से माना है। ★ इलाचंद्र जोशी ने जयशंकर प्रसाद को छायावाद का प्रवर्तक माना है। ★ प्रभाकर माचवे व विनय मोहन शर्मा माखनलाल चतुर्वेदी को छायावाद का प्रवर्तक मानते हैं। ★ रामचन्द्र शुक्ल: " छायावाद का चलन द्विवेदी-काल की रूखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।.." ★ सुमित्रानंदन पंत ने छायावाद को 'अलंकृत संगीत' कहा है। ★ महादेवी वर्मा छायावाद को 'केवल सूक्ष्मगत सौंदर्य सत्ता का राग' कहा है। ★ डॉ. राम कुमार वर्मा के अनुसार- 'परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की परमात्मा म

कबीर इतने महत्त्वपूर्ण क्यों?..

  online_classes                 कबिरा खड़ा बजार में...           अच्छा नहीं लगता, पर सवाल तो है! सारे लोगों के दिमाग में यह सवाल उठना चाहिए कि जिस व्यक्ति के माँ-बाप का भी ठीक से पता नहीं, जो स्वयं 'मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ'...का उद्घोष करता हो, वह भी उस मध्यकाल में जब राजाओं-सामन्तों का हुक्म ही कानून माना जाता था, ऐसे समय में एक व्यक्ति समाज की रूढ़ियों पर ही नहीं धर्म-मजहब पर भी ऐसा कठोर प्रहार कैसे कर लेता है?             तब मानवतावाद का न तो कोई ढिंढोरा पीटा जाता था और न ऐसा कोई नाम कमाने के लिए करता था, तब की उस अंधेरी दुनिया में जब जाति और धर्म आज की तरह राजनीति के दुमछल्ले न होकर समाज के अपने नियमों से चलने वाले थे...कैसे एक व्यक्ति इतना आदरणीय हो सकता है जो दोनों को उल्टा खड़ा कर दे? या यह सब इसीलिए कि आज मानवतावादी सोच विकसित हुई है, इसीलिए कबीर की रचनाओं को भी महत्त्व मिलने लगा है? लेकिन, अगर इतना ही मानवतावादी मूल्यों की समाज में मान्यता है तो फिर ये 'मॉब-लिंचिंग', जातिवादी-साम्प्रदायिक दंगे कैसे? क्या मानवतावाद का ढिंढोरा पीटना और किसी धर्म-सम्प्

परीक्षा की तैयारी के कुछ जरूरी टिप्स: हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए!

परीक्षा की तैयारी     online_classes                              कम समय में              कैसे करें परीक्षा की बेहतर तैयारी? कम समय में परीक्षा की तैयारी कैसे करें  ?   इस वर्ष से उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रथम वर्ष का पाठ्यक्रम 'सेमेस्टर-सिस्टम' के हिसाब से तैयार किया गया है। एक वर्ष में दो सेमेस्टर या सत्र होने हैं। इन दोनों ही सत्रों का पाठ्यक्रम पूरी तरह अलग होगा। ऐसे में कोरोना-काल में विश्वविद्यालय/महाविद्यालय प्रायः अध्ययन-अध्यापन के लिए 'भौतिक रूप से बन्द' होने के चलते पाठ्यक्रम की तैयारी में विद्यार्थियों को परेशानी होना स्वाभाविक है। विद्यार्थियों के लिए #ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था का प्रचार किया जा रहा है, किन्तु इसके लिए  आधारभूत व्यवस्था न होने के चलते यह सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। सारे विद्यार्थियों के पास न तो उपयुक्त मोबाइल की व्यवस्था होती है, न ही इंटरनेट की। सभी अध्यापक भी ऑनलाइन तरीके से पढ़ाने में पारंगत नहीं होते। इसके बावजूद विद्यार्थियों की मजबूरी है कि वे 'ऑनलाइन' पढ़ाई करें। इसके अलावा अभी प्रवेश के बाद पढाई की व्यवस्