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Showing posts with the label peasants movement

आज का होरी कैसे बचेगा?..

                  आज का किसान                और 'गोदान'            'गोदान' उपन्यास को लिखे लगभग एक सदी बीत रही है। इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि गोदान उपन्यास में किसानों की दशा पर उठाए गए सवाल आज भी जीवन्त हैं। 1936 में इसके प्रकाशन के बाद से आज तक गंगा-यमुना में न जाने कितना पानी बह चुका है पर अधिकांश किसानों की दशा स्थिर जैसी है। कुछ बदला है तो खेती के नए साधनों का प्रयोग जो आधुनिक तो है पर वह किसानों की अपेक्षा लुटेरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधीन होने के कारण किसानों के नुकसान और कम्पनियों के मुनाफ़े का माध्यम बना हुआ है। खेती के इन नए साधनों या उपकरणों के अधीन किसान आज भी कर्ज़ में डूबी हुई खेती के सहारे जीवन यापन कर रहा है। हल की जगह ट्रैक्टर आ गए लेकिन किसान की आत्मनिर्भरता खत्म हो गई। वह ऐसी खेती की नई-नई मशीनों और उनके मालिकों का गुलाम हो गया।  आज खेतों में ट्रैक्टर, ट्यूबवेल और थ्रेशर तो चलते दिखते हैं पर इनके नाम ही बता रहे हैं कि ये किसानों के नहीं हैं, विदेशी कम्पनियों के हैं। क्या व्यवस्था का जिम्मा लेने वाले हुक्मरानों की इतनी भी कूबत नहीं रही कि वे देश

The vote politics of the rulers and Farmers' Movement

         continue the Farmers' struggle & D on't waste time on Vote Politics                     Photo courtesy: www.groundxero.in Bharti Kisan Union ( BKU  EKTA UGRAHAN ) issues  a clarion call to continue the struggle on the burning issues of Farmers. Reacting to the issue of some farmers unions of Punjab on their decision to contest the coming elections, Bharti Kisan Union ( BKU  EKTA UGRAHAN ) stated that struggling farmer unions instead of getting entangled in the vote politics of the rulers the farmer unions should concentrate on the farmers issues.  State President Joginder Singh Ugrahan and the General Secretary Sukhdev Singh Kokri Kala of the organisation said that the farmers ‘ struggle against the farm laws has also proved that the rights and interests of farmers cannot be saved and ensured by sitting in the Parliament or Assemblies rather the same can be achieved only by struggle in the open at mass and community level. The leaders said that still only three fa

एक कविता खेतों की

               ★ खेतों के क़ातिल ★ पूरी मिठास पूरे स्वाद के साथ आएगा सच, यह जहर आपकी ज़िंदगी निगल जाएगा। आप? आप खुद को भी पहचान नहीं पाएँगे वे आपको आप नहीं हैं कोई और हैं बता जाएँगे। वे क़ातिल हैं खेतों के, फसलों के खलिहानों के उन्हें पता हैं सारे राज निकल ते  गेहूँ के  दानों के। वे तुम्हारी ताकत न सिर्फ़ गेहूं से निचोड़ेंगे वे तुम्हें रोटी खाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे। वे ला रहे हैं ऐसे कानून जो अंग्रेज भी न ला पाए थे लूटा था अंग्रेजों ने जरूर पर खेत न कब्ज़ा पाए थे।  अब जो हुक्मरान हैं वे अंग्रेजों से भी भले आगे हैं इन्हें नहीं पता किसान मजदूर बेरोजगार अब जागे हैं। ये कम्पनीराज जो देशी भी है विदेशी भी, खदेड़ा जाएगा इनका दलाल कोई भी किसी चोले में हो, न बच पाएगा।                    ★★★★★★

अनदेखी पड़ेगी महँगी

                  किसान आंदोलन की अनदेखी                                  पड़ेगी महँगी   कोई समझे या न समझे! कोई माने या न माने! देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दुनिया की जनता की दुश्मन नम्बर एक सिद्ध हो रही हैं। पूँजी के बल पर ज्ञान-विज्ञान पर कब्ज़ा कर अपने मुनाफ़े के लिए वे मानव-जीवन के साथ लगातार खिलवाड़ कर रही हैं। #भोपाल_गैस_त्रासदी उनके इसी मानवद्रोही खेल का नतीज़ा थी। अपने देश में ही लाखों पेड़ों का काटा जाना, बक्सवाहा जैसे प्राकृतिक वातावरण को अक्षुण्ण रखने वाले जंगलों को नष्ट किया जाना, शहरों से लेकर गाँवों तक तक रासायनिक तत्त्वों और खतरनाक विकिरण के माध्यम से जन-जीवन को दाँव पर लगाना- सब पूंजीपतियों और उनकी सर्वग्रासी कम्पनियों की करतूतों के चलते हो रहा है। भोपाल गैस काण्ड के हत्याओं के दोषियों को सरकारों ने बचा लिया। अपनी कुर्सी के लिए नेताओं की ऐसी करतूतें देशद्रोह क्यों नहीं कही जानी चाहिए?             संयुक्त किसान मोर्चा ने भोपाल गैस काण्ड को याद करते हुए कम्पनीराज के पक्ष में खड़ी वर्तमान भाजपा सरकार को यह याद दिलाया है कि किसान आंदोलन को मिल रहे व्यापक जन समर्थन की अनदे

बहाना न बनाए सरकार...

                जारी है किसान आंदोलन,                      जारी रहेगा! ★ विरोध कर रहे किसानों की लंबित मांगों के संबंध में स्वीकृति के किसी भी औपचारिक वार्ता के बिना भारत सरकार उन्हें मोर्चों पर बने रहने के लिए मजबूर कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि उनके पास विरोध कर रहे किसानों की मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं है - किसान सकारात्मक कार्रवाई और उनकी जायज़ मांगों को पूरा किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ★ भाजपा-जजपा नेताओं का बहिष्कार जारी है - उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला गांव में प्रवेश न कर सके, इसके लिए जींद (हरियाणा) के उचाना के धरौली खेड़ा गांव में बड़ी संख्या में किसान जमा हुए ★ जहाँ सरकार कह रही है कि उसके पास प्रदर्शनकारी किसानों की मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है, एसकेएम याद दिलाता है कि पिछले साल औपचारिक वार्ता के दौरान शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकार के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर मौन धारण किया था - आंदोलन के पास सभी आंदोलन के वीर शहीदों का रिकॉर्ड हैं और शहीदों के परिजनों के पुनर्वास की मांग पूरी करने के लिए सरकार का इंतजार रहा है:संयुक्त किसान मोर्चा

मानव-सभ्यता के संघर्ष की एक कड़ी है किसान आंदोलन

                       किसान आंदोलन:              और आगे बढ़ेगा    अभी और जीतें हासिल होंगी किसान आंदोलन को। लेकिन इससे आंदोलन खत्म करने के शासकों के मंसूबे पूरे नहीं होंगे। कारण, पूरे देश के प्राकृतिक सांसधनों, विशेषकर जीवन के आधार खेती पर गिद्धदृष्टि लगाए कॉरपोरेट घरानों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंपने की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रक्रिया चला रखी है उससे देश की बहुसंख्यक आबादी की दुर्दशा होनी ही है। किसान आंदोलन धीरे-धीरे कॉरपोरेट-गुलामी के खिलाफ उभर रहे जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है। और यह स्वाभाविक है। मानव-जीवन को दाँव पर लगाकर अधिकाधिक मुनाफ़ा कमाने की पूंजीपतियों की होड़ कॉरपोरेट-राज के खात्मे पर ही खत्म हो सकती है। इसलिए यह संघर्ष अवश्यंभावी है।          किसान आंदोलन का हर कदम इस मानवोचित संघर्ष की अगली कड़ी है। शासक सुधर जाएं तो अलग बात है। पढ़ें संयुक्त किसान मोर्चा की हालिया प्रेस-विज्ञप्ति: ★ 26 नवंबर 2021 को भारत के लाखों किसानों के लगातार संघर्ष के 12 महीने पूरे होने पर देशभर में बड़े कार्यक्रमों की तैयारी जारी - 25 नवंबर को हैदराबाद में एक महाधरना होगा - सर छोटू राम की जयंती क

क्या हिंसा से दबा दिया जाएगा किसान आंदोलन?

                            हिंसा और बदले की कार्रवाई से                     किसान आंदोलन को             खत्म करने की कोशिश यह कोई नई बात नहीं है, न ही अजूबी है। शासकवर्ग जनता के आंदोलनों को ख़त्म करने, बदनाम करने, लाठियाँ-गोलियाँ  बरसाने की कोशिशें अंग्रेजों के जमाने से और उससे भी पहले से करता रहा है। सुई की नोक बराबर भी जमीन की मांग न स्वीकार करने, महाभारत रचने, प्रतिभाशाली धनुर्धरों का अंगूठा काट लेने, विरोधियों के सिर हाथियों से कुचलवा देने अथवा जिंदा ही दीवार में चिनवा देने आदि-आदि बर्बर काण्डों की कहानियों से हम परिचित हैं। बहादुर शाह जफर के बेटों के सिर काटकर तस्तरी में पेश करने, जलियांवाला बाग काण्ड से लेकर न जाने कितने क्रूरतम कारनामे इतिहास में दर्ज़ हैं। अपनी सत्ताओं को बनाने और बचाने के लिए शासकों ने कितनी तरह की यातनाएं विरोधियों को दी है, मानव सभ्यता के विकास का रक्तरंजित इतिहास उसका गवाह है।...         लेकिन परिणाम क्या रहा?.. बर्तोल्त ब्रेख्त याद आते हैं:  'जिन्होंने नफ़रत फैलाई, क़त्ल किए और खुद खत्म हो गए नफ़रत से याद किए जाते हैं... जिन्होंने मुहब्बत का सबक पढ़ाया और

और तेज होगा किसान आंदोलन!..

                  मशाल जल रही है,            जलती रहेगी! ★ एसकेएम ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड के संबंध में किसान आंदोलन की मांगों को पूरा करने के लिए कार्यक्रमों की एक श्रृंखला की घोषणा की - 12 अक्टूबर को पूरे भारत में प्रार्थना और श्रद्धांजलि सभाओं और मोमबत्ती मार्च के साथ शहीद किसान दिवस के रूप में चिह्नित किया जाएगा - 15 अक्टूबर को दशहरा के दिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भाजपा के स्थानीय नेताओं का पुतला दहन - 18 अक्टूबर को पूरे देश में रेल रोको - 26 अक्टूबर को लखनऊ में महापंचायत ★ एसकेएम ने नोट किया कि आशीष मिश्रा टेनी आज पूछताछ के लिए पेश हुए - एसकेएम अजय मिश्रा टेनी सहित दोषियों की गिरफ्तारी की प्रतीक्षा कर रहा है ★ एसकेएम ने अज्ञात व्यक्तियों द्वारा महाराष्ट्र के किसान नेता सुभाष काकुस्ते पर हमले की निंदा की दिनाँक 9 अक्टूबर, 2021 को नई दिल्ली में प्रेस क्लब में एक विशेष रूप से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में, कई एसकेएम नेताओं ने मीडिया को संबोधित किया और लखीमपुर खीरी किसान नरसंहार में किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए योजनाओं को साझा किया। भ

किसान संसद

                  समानांतर 'किसान संसद' के                                    निहितार्थ सवाल है कि संसद वर्षाकालीन अधिवेशन के दौरान समानांतर #किसान_संसद केवल प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन ही रह जाएगा या इसका कोई दूरगामी निहितार्थ भी है?...हमेशा की तरह सरकार इसे एक और प्रदर्शन से ज़्यादा और कुछ मानती है, ऐसा नहीं लगता। लेकिन महत्त्वपूर्ण यह है कि इससे किसान नेताओं की क्या उम्मीद है।. .. हम जानते हैं कि जंतर मंतर और संसद मार्ग कई बड़े-बड़े प्रदर्शनों का साक्षी रहा है और इसने संसद और सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की सफल कोशिशें भी है। क्या भाजपा सरकार इसको कोई अहमियत देगी? नहीं तो इस प्रतीकात्मक किसान प्रदर्शन का क्या मतलब रह जाएगा? ये ऐसे सवाल हैं जो किसान आंदोलन में रुचि रखने वाले हर आम आदमी के मन में स्वाभाविक रूप से उठते हैं।      संयुक्त किसान मोर्चा ने इसे 'भारत में नागरिकों की आवाज को मजबूत करने के लिए किसान आंदोलन द्वारा खोले जा रहे विचारशील लोकतंत्र के नए मोर्चे' की संज्ञा दी है। साथ ही इस किसान संसद से मीडिया को दूर रखने के दिल्ली पुलिस के प्रयास को 'शर्मनाक' कहत

खेती पर कम्पनियों के नियंत्रण के खिलाफ संसद मार्च

                                नये दौर में पहुँचा                     किसान आंदोलन संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन कॉर्पोरेट अधिग्रहण की चपेट में जाने की संभावनाएं दिख रही है - हम भारत में इसी के खिलाफ संघर्ष कर रहे है:                                -- संयुक्त किसान मोर्चा जैसा कि पहले ही घोषित किया जा चुका है, संयुक्त किसान मोर्चा मानसून सत्र के सभी कार्य दिवसों पर संसद के पास विरोध प्रदर्शन की अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। हर दिन 200 प्रदर्शनकारियों द्वारा इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया जाएगा और किसान यह प्रदर्शित करेंगे कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को किस तरह से चलाया जाना चाहिए। एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की। योजनाओं को व्यवस्थित, अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। 200 चयनित प्रदर्शनकारी सिंघू बॉर्डर से प्रतिदिन पहचान पत्र लेकर रवाना होंगे। एसकेएम ने यह भी कहा कि अनुशासन का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वर्तमान किसान आं

मुक्केबाज स्वीटी ने क्यों किसानों को समर्पित किया चैंपियनशिप का पदक?

      काला कानून, कितना काला!                     किसान आंदोलन की                        परीक्षा  एवं सफलताएं                                      Boxer  Saweety Boora                                             Ph oto Courtesy: merisaheli.com  किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं सहित देश के कोने-कोने में तीन कृषि सम्बन्धी कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन और धरने जारी हैं, उसी तरह शासकों के साथ-साथ प्रकृति द्वारा भी उसकी परीक्षाएँ जारी हैं। मुसीबतों और अड़चनों के बावजूद धैर्य और दृढ़ता से किसान इनका सामना कर रहे हैं! संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के क्रम में शाहजहांपुर बॉर्डर को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा। इस तूफान के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा ने समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया है कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्

कौन दबाव में है- किसान या सरकार?..

                 संयुक्त किसान मोर्चा ने लिखा                             प्रधानमंत्री को पत्र लगता तो है कि हालात दबाव बना रहे हैं।... किसान आंदोलन पर एक दबाव है कोरोना का तो दूसरा दबाव  है मौसम का ! सरकार की बेरुखी और हठधर्मिता का दबाव किसानों पर नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन सरकार पर भी कम दबाव नहीं है। कोरोना की दुर्व्यवस्थाओं के चलते बिगड़े हालातों और किसान आंदोलन के प्रति जनता के सकारात्मक रुख से सरकार की छवि और धूमिल हो रही है। इन स्थितियों में जहाँ सरकार ने डीएपी के बढ़ाए दाम में किसानों को राहत दी है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। दूसरी तरफ 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध का भी आह्वान कर रखा है। क्या है  इसका मतलब?.. पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति का सार: ★ संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा ; किसानों से बातचीत कर मांगे माने सरकार। ★ पर्यावरणविद सूंदर लाल बहुगुणा और किसान नेता बाबा गौड़ा पाटिल के निधन पर शोक।   संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखते हुए किसानों से बातचीत करने क

किसान आंदोलन और 1857 की क्रान्ति

                 और तेज होगा किसान आंदोलन   दिनांक 10 मई,  2021 को गाजीपुर बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा ने 1857 के शहीदों को याद करते हुए शहीद मंगल पाण्डेय के तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर किसान आंदोलन के नेताओं ने 1857 की क्रांति और आज के किसान आंदोलन पर अपने उद्गार व्यक्त किए! वक्ताओं ने बताया कि अंग्रेज  भारत के जमींदारों से मिलकर किसानों से अत्यधिक लगान वसूली कर रहे थे और उन्हें जमीन से बेदखल कर रहे थे। यही इस क्रांति की मूल जड़ में था।  खेती की बर्बादी और बढ़ती भूख बेरोजगारी में अंग्रेजों के शासन की बड़ी भूमिका थी। वे अपने माल को बेचने के लिए यहां के बुनकरों, लोहारों, बढ़ाई, चर्मकार- सब को बर्बाद कर रहे थे ताकि उनका माल यहां बिक सके। देश के तमाम किसान, कारीगर, व्यापारी अंग्रेजों के राज के खिलाफ उठ खड़े हुए और कई देशभक्त रजवाड़ों ने भी उनका साथ दिया।  आज के हालात से इसकी तुलना करते हुए वक्ताओं ने बताया कि जो तीन कानून सरकार लाई है और जो एमएसपी की गारंटी सरकार नहीं देना चाहती, इससे पूरी खेती बर्बाद हो जाएगी और बड़े कारपोरेट तथा विदेशी कंपनियों के हाथों में चली

किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश

                                     ध्वस्त होंगी              किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिशें संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने एक विशेष वक्तव्य में स्पष्ट कर दिया है कि वह किसान आंदोलन में आई शहीद महिला के लिए इंसाफ की लड़ाई के साथ खड़ा है। संयुक्त किसान मोर्चा प्रतिनिधियों ने साफ कहा है कि आंदोलन में किसी महिला के साथ कोई बदसलूकी कत्तई बर्दाश्त नहीं होगी।           मीडिया और सोशल मीडिया में पिछले महीने टिकरी बॉर्डर पर बंगाल से आई एक महिला साथी के साथ बदसलूकी की घटना की खबर के बारे में संयुक्त किसान मोर्चा यह साफ कर देना चाहता है की वह अपनी शहीद महिला साथी के लिए इंसाफ की लड़ाई के साथ खड़ा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने पहले ही इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही की है और हम इंसाफ की इस लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाएंगे।  यह साथी बंगाल से 12 अप्रैल को "किसान सोशल आर्मी" नामक एक संगठन के कुछ लोगों के साथ टिकरी बॉर्डर पहुंची थी। दिल्ली के रास्ते में और दिल्ली पहुंचने के बाद उसके साथ उन लोगों ने बदसलूकी की।  एक सप्ताह बाद उस महिला को बुखार हुआ, अस्पताल में दाखिल किया गया लेकिन 3

किसान आंदोलन के बदलते तेवर

                                       किसान आंदोलन की                     बढ़ती मुसीबतें                  पश्चिमी उत्तरप्रदेश और विशेषकर जाट-बेल्ट में लोकप्रिय राष्ट्रीय लोक दल- आर.एल.डी. का आधार परंपरागत रूप से किसान रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेता महेंद्र सिंह टिकैत इस क्षेत्र की ऐसी शख्सियत रहे हैं जिनके महत्त्व को नकारना न तो राजनीतिक दलों और न किसान आंदोलन के लिए ही संभव रहा है। इसका कारण यह भी है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसान आंदोलन इन्हें प्रतीक के तौर पर मानता रहा है। आज भले ही किसान आंदोलन ने घोषित तौर पर राजनीतिक दलों से दूरी बना रखी है किन्तु आर.एल.डी. जैसी पार्टियों का मिला समर्थन उसका मददगार भी सिद्ध हुआ है। ऐसे में आर.एल.डी. प्रमुख एवं पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री चौधरी अजीत सिंह का निधन किसान आंदोलन के लिए भी एक झटका माना जा रहा है, भले ही उनके उत्तराधिकारी चौधरी जयंत भी किसान आंदोलन को समर्थन देते रहे हैं। स्वाभाविक रूप में किसान आंदोलन ने चौधरी अजीत सिंह की मृत्यु पर हार्दिक श्रद्धांजलि दी है।           प्रस्तु

What is the biggest threat to peasants?..

        Farmers are facing multi-fold problems:                              Corona is just one! Indian people are facing many fold problems these days. Corona is one of them. Although it seems the biggest threat to people, yet they are facing other problems which threaten their life even more . One of these problems is anti-peasant new laws. Farmers are protesting against these three laws for more than four months on the borders of India's capital Delhi and are demanding to withdraw these farm bills. Under these circumstances five Indian States witnessed elections along with local body or Panchayat elections in its most populous state Uttar Pradesh. Ruling BJP at Centre had taken these elections very seriously, particularly West Bengal province was taken as its prestige. BJP lost WB, Tamilanadu and Kerala which is considered its big loss. Sanyukt Kisan Morcha or Joint Peasants' Front terms it defeat against anti-peasants policies of Central Government and demand immediate with

चुनाव परिणामों से किसानों को क्या मिला?

किसान आंदोलन                                चुनाव परिणाम:                       किसान-आंदोलन की नैतिक जीत   सिंघु बॉर्डर पर चुनाव परिणाम पर खुशी मनाते किसान भले ही किसान आंदोलन हाल में हुए विधान सभा चुनावों में भाजपा की हार को अपनी नैतिक जीत मान रहा है; किन्तु सच यह है कि इन चुनावों से भाजपा को नुकसान की जगह फायदा हुआ है। उसका सबसे बड़ा फ़ायदा उसकी सीटों में बढ़ोत्तरी के अलावा ईवीएम-चुनाव के पक्ष में बना माहौल है। अब उत्तरप्रदेश के चुनाव ही असल में यह स्पष्ट करेंगे कि भाजपा का चुनावी जनाधार वाकई घटा है या नहीं! पढ़ें संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी पूरी प्रेस-विज्ञप्ति: संयुक्त किसान मोर्चा ने राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ जनादेश का स्वागत किया, जिसके आज परिणाम सामने आए। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में, यह स्पष्ट है कि जनता ने भाजपा की विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति को खारिज कर दिया है। ऐसे गंभीर संकट के समय में जब देश अपने स्वास्थ्य सेवा संबंधी बुनियादी ढाँचे के मामले में आपदा का सामना कर रहा है, अनेक योजनाओ के अभाव के कारण बहुत से निर्दोष नागरिक इस सरकार की घोर उपेक्षा के

प्रवासी मजदूर और किसान आंदोलन:

किसान आंदोलन             क्या प्रवासी मजदूरों के साथ आने से        और तेज होगा  किसान आंदोलन?           हालांकि पिछले साल की अभूतपूर्व और निर्मम प्रवासी मजदूर पलायन की घटना की पुनरावृत्ति शायद ही इस साल हो!...क्योंकि शासकवर्ग भी यह जानता है और प्रवासी मजदूर भी कि ऐसा होना किसी भी प्रकार की अनहोनी घटना को आमंत्रण दे सकता है। यद्यपि पूंजीवाद अपने मुनाफे के लिए किसी भी हद तक क्रूर हो सकता है, पिछली सदी के दो विश्वयुद्ध इसीलिए लड़े गए थे, किन्तु इनके संचालक यह भी समझते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि सिक्के का पहलू हमेशा उनकी तरफ ही बना रहे। दो विश्वयुद्धों का परिणाम भी उन्हें अच्छी तरह पता होगा। इन युध्दों के बाद एक समय ऐसा लगने लगा था कि जैसे दुनिया से पूंजीवाद का हमेशा के लिए खात्मा हो जाएगा। इन युध्दों के खिलाफ उठ खड़ी हुई जनता की वैश्विक गोलबंदी का ही परिणाम था लंबे समय से बनाए रखे गए उपनिवेश आज़ाद होने लगे। भले ही औपनिवेशिक शासकों ने स्थानीय शासकों से मिलकर मुनाफे को बनाए रखने के समझौते किए और इसी का परिणाम है कि वैश्विक पूँजीवाद या साम्राज्यवाद आज भी जिंदा है। दुनिया भर की जनता को इन समझौतों