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एक कविता खेतों की

              ★ खेतों के क़ातिल ★



पूरी मिठास पूरे स्वाद के साथ
आएगा
सच, यह जहर आपकी ज़िंदगी
निगल जाएगा।

आप? आप खुद को भी पहचान
नहीं पाएँगे
वे आपको आप नहीं हैं कोई और हैं
बता जाएँगे।

वे क़ातिल हैं खेतों के, फसलों के
खलिहानों के
उन्हें पता हैं सारे राज निकल
ते 
गेहूँ के दानों के।

वे तुम्हारी ताकत न सिर्फ़ गेहूं से
निचोड़ेंगे
वे तुम्हें रोटी खाने लायक भी नहीं
छोड़ेंगे।

वे ला रहे हैं ऐसे कानून जो अंग्रेज भी
न ला पाए थे
लूटा था अंग्रेजों ने जरूर पर खेत न
कब्ज़ा पाए थे। 

अब जो हुक्मरान हैं वे अंग्रेजों से भी
भले आगे हैं
इन्हें नहीं पता किसान मजदूर बेरोजगार
अब जागे हैं।

ये कम्पनीराज जो देशी भी है विदेशी भी,
खदेड़ा जाएगा
इनका दलाल कोई भी किसी चोले में हो,
न बच पाएगा।
                   ★★★★★★

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