वे फिर हारेंगे!... - अशोक प्रकाश ऐसा लगता है जैसे हम किसी दूसरी दुनिया में आ गए हों!..लगता है जैसे यह हमारी वह दुनिया नहीं जिस पर एक मनुष्य के रूप में हमें सुकून महसूस होता था!... लगता था कि ये हवा, ये फूल और उनकी खुशबू, ये नदियां, पहाड़, बाग-बगीचे, आसमान और चांद, ये मिट्टी और उसकी सुगन्ध...पूरी की पूरी क़ायनात पर हमारा भी हक़ है!... न जाने कितने समय से यह धरती हमें अपने आगोश में छुपाए रही है, सहारा देती रही है, तभी तो हमारा अस्तित्व बचा है अभी तक इस पर!...और अब? लगता है जैसे हम गए!... लेकिन नहीं!...शायद यह हमारा भ्रम है, भ्रम था। एक पल भी संघर्षों के बिना हम इस धरती पर टिके नहीं रह सकते थे। धरती तो एक जीवनदायिनी शक्ति रही है हमारे अस्तित्व की। ...जीने का एक सहारा, एक संसाधन! वह अपने आप न तो हमें जीवन दे सकती थी, न ले सकती थी! इस धरती और हमारे बीच के द्वंद्वात्मकता सम्बन्ध ही हैं जिन्होंने हमें बनाया-बढाया, इस धरती को भी और सुंदर बनाया। हम मनुष्य ही हैं जिन्होंने अपनी जरूरतों
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.