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तीखे होते जा रहे हैं किसान आंदोलन और शासकों के अंतर्विरोध

                    सत्ता और किसान:             समय बलवान!                 जैसे-जैसे किसान आंदोलन लम्बा खिंचता जा रहा है, शासकों और किसान आंदोलन के बीच अंतर्विरोध भी तीखे होते जा रहे हैं। सत्ता समर्थक शक्तियाँ पहले से कहीं ज़्यादा सक्रिय होकर किसानों की न केवल बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं बल्कि उनके नेताओं पर हमले करने की कोशिशें भी कर रही हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति से यह बात स्पष्ट होती है कि किसान आंदोलन को कुचलने की कोशिशें अब हिंसक रूप अख्तियार कर रही हैं। टिकरी बॉर्डर में किसानों के शिविर पर कुछ बदमाशों द्वारा किए गए हमले, जिसमें एक युवक गुरविंदर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गया, इसका एक उदाहरण है। इसकी निंदा करते हुए एसकेएम ने कहा है कि हमलावरों का संभावित निशाना किसान नेता रुलदू सिंह मनसा थे जो उस कैंप में रहते थे। मोर्चा ने मांग की है कि पुलिस हत्या की मंशा व प्रयास का मामला दर्ज कर हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार करे। दूसरी तरफ पंजाब के विभिन्न स्थानों पर दर्जनों स्थायी मोर्चों के लगातार विरोध प्रदर्शन के 300 दिन पूरे होने पर पंजाब के होशियारपुर के मुकेरियां में बड

इस संसद में सिर्फ़ महिलाएँ ही क्यों रहेंगी?

                            सिर्फ़ महिलाओं की                किसान संसद   लगातार चल रहे शांतिपूर्ण किसान आंदोलन के अब आठ  महीने पूरे हो रहे हैं। इस  ऐतिहासिक आंदोलन में लाखों किसान शामिल हुए हैं और इस किसान आंदोलन ने देश में ही नहीं बल्कि पूरी  दुनिया में किसानों की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। यही नहीं  किसानों के संघर्ष ने भारतीय लोकतंत्र को भी मजबूत किया है। इसी लोकतांत्रिक दृष्टि की प्रतीक बनने वाली है केेेवल महिला किसानों द्वारा संचालित होने  महिला किसान संसद!       इन आठ महीनों में भारत के लगभग सभी राज्यों के लाखों किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। विरोध शांतिपूर्ण रहा है और हमारे अन्नदाताओं ने सदियों पुराने लोकाचार को दर्शाया है। कठिनाइयों का सामना करने के लिए किसानों की दृढ़ता और अटलता, भविष्य प्रति उनकी आशा, उनके संकल्प को दर्शाता है। इस अवधि के दौरान किसानों ने खराब मौसम और दमनकारी सरकार का बहादुरी से सामना किया। एक चुनी हुई सरकार ने - जो मुख्य रूप से किसानों के वोटों पर सत्ता में आई थी - उनके साथ विश्वासघात किया, और किसानों को अपनी आवाज और मांगों को सच्चे, धैर्यपूर्वक और शांतिपूर

किसान संसद ने पारित किए ये प्रस्ताव

                              22 और 23 जुलाई को                             किसान संसद द्वारा              पारित संकल्प एवं प्रस्ताव हिन्दी: 1. यह स्पष्ट करने के बाद कि एपीएमसी बाईपास अधिनियम के प्रावधानों को किसानों के हितों की कीमत पर कृषि व्यवसाय कंपनियों और व्यापारियों के पक्ष में तैयार किया गया है, मौजूदा विनियमन (रेगुलेशन) और निगरानी तंत्र को खत्म करके, और बड़े कॉर्पोरेट द्वारा कृषि बाजारों के प्रभुत्व को बढ़ावा देगा; 2. जून 2020 से जनवरी 2021 तक एपीएमसी बाईपास अधिनियम के संचालन के प्रतिकूल अनुभव को संज्ञान में लेने के बाद, जहां अपंजीकृत व्यापारियों द्वारा भुगतान न करने और धोखाधड़ी के कारण किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ, जहां अधिकांश एपीएमसी मंडियों में व्यापारियों और कंपनियों द्वारा खरीद में आधी हो गई है, और जहां बड़ी संख्या में एपीएमसी मंडियों को भारी नुकसान हुआ है जिससे वे बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं; 3. यह निष्कर्ष पर आने के बाद कि एपीएमसी बाईपास अधिनियम के कारण, अधिकांश मंडियां धीरे धीरे समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि कॉरपोरेट और व्यापारी अधिनियम द्वारा बनाए गए अनियम

कौरव गदाधारियों से घिरा अभिमन्यु है किसान!

  22 जुलाई 2021 को किसान संसद में                          दुर्योधनी गदाधारियों के बीच घिरा                         अभिमन्यु है किसान सभापति जी,  मैं ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन की ओर से मण्डी कानून पर चर्चा को आगे बढ़ा रहा हूं। 1960 से पहले जो व्यापारी हम से फसल खरीदते थे, वे हमें भाव में भी लूटते थे और तौल में भी लूटते थे। इसलिए, हम किसानों की आवाज पर आंदोलन के चलते ये सरकारी अनाज मंडियां खोली गई थी, ये एपीएमसी मार्केट आई थी। इनसे हमें कुछ सुरक्षा मिली थी।  मैं यह बताना चाहता हूँ कि खेती का स्वरूप या प्रकृति ही ऐसी है कि इसमें बहुत सारे जोखिम हैं। इसलिये, सरकार की ओर से किसानों को सुरक्षा की दरकार है। आसमान से बारिश यदि ज्यादा हुई, बाढ़ आई तो फसल बर्बाद हो गई। सूखा पड़ गया तो फसल नहीं हुई। कीड़े लग गए या ओलावृष्टि हो गई, तो फसल बर्बाद हो जाती है। साहूकार व बैंक किसानों को लूटते हैं। फिर, जो फसल किसान मार्केट में ले जाते हैं, वहां मार्केट की ताकतों अर्थात व्यापारियों से पाला पड़ता है। मार्केट की ये ताकतें सबसे क्रूर ताकतें होती हैं। मार्केट को लेकर इन के बीच में दो दो बार विश्व युद्ध

किसान संसद

                  समानांतर 'किसान संसद' के                                    निहितार्थ सवाल है कि संसद वर्षाकालीन अधिवेशन के दौरान समानांतर #किसान_संसद केवल प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन ही रह जाएगा या इसका कोई दूरगामी निहितार्थ भी है?...हमेशा की तरह सरकार इसे एक और प्रदर्शन से ज़्यादा और कुछ मानती है, ऐसा नहीं लगता। लेकिन महत्त्वपूर्ण यह है कि इससे किसान नेताओं की क्या उम्मीद है।. .. हम जानते हैं कि जंतर मंतर और संसद मार्ग कई बड़े-बड़े प्रदर्शनों का साक्षी रहा है और इसने संसद और सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की सफल कोशिशें भी है। क्या भाजपा सरकार इसको कोई अहमियत देगी? नहीं तो इस प्रतीकात्मक किसान प्रदर्शन का क्या मतलब रह जाएगा? ये ऐसे सवाल हैं जो किसान आंदोलन में रुचि रखने वाले हर आम आदमी के मन में स्वाभाविक रूप से उठते हैं।      संयुक्त किसान मोर्चा ने इसे 'भारत में नागरिकों की आवाज को मजबूत करने के लिए किसान आंदोलन द्वारा खोले जा रहे विचारशील लोकतंत्र के नए मोर्चे' की संज्ञा दी है। साथ ही इस किसान संसद से मीडिया को दूर रखने के दिल्ली पुलिस के प्रयास को 'शर्मनाक' कहत