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प्राथमिक शिक्षा: नीतिकारों की नीयत

                            राष्ट्रीय  शिक्षा नीति:                 नीयत में खोट                        - वी.के. शर्मा हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा से लेकर स्नातकोत्तर शिक्षा तक की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा खासकर उत्तरी भारत की शिक्षा चाहे वाह प्राइमरी पाठशाला हो अथवा स्नातकोत्तर, बदहाल स्थिति में हैं। सरकारी शिक्षण संस्थान हो अथवा पब्लिक या निजी शिक्षण संस्थान, दोनों ही जगहों पर अलग-अलग तरीके से शिक्षा का बंटाधार किया किया जा रहा है। सरकारी प्रारंभिक पाठशाला हो अथवा सरकारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, शिक्षा का स्तर गिर रहा है।  https://www.rmpualigarh.com/fupucta-candidates/           प्राथमिक विद्यालयों ने मिड-डे मील मिलता है, जबकि शिक्षक मात्र एक और किसी-किसी स्कूल में 2 शिक्षक अथवा एक प्रधानाध्यापक और एक शिक्षामित्र तथा एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या खाना बनाने वाली दाई होते हैं! यानी कुल मिलाकर महज तीन व्यक्तियों का स्टाफ होता है और 30 से 35 छात्र होते हैं। सच तो यह है कि डेढ़ सौ से 300 छात्रों को रजिस्टर्ड कर लिया जाता है और उनके लिए मिड-डे मील तथा पाठ