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तो क्या दुनिया गुलामी के लिए तैयार की जा रही है?..

                  हम फ़िलिस्तीन के साथ खड़े हैं!                                     चित्र साभार: फ़ेसबुक पूँजीवाद अपरंच साम्राज्यवाद को दुनिया के लिए अपरिहार्य मानने वाले दिमाग की दुनिया में कमी नहीं है! 'वीरभोग्या वसुंधरा' और 'वैश्विक गाँव' जैसे विचार न केवल वैश्वीकरण के लिए समर्थन जुटाते हैं; बल्कि उदारीकरण और निजीकरण के नाम पर साम्राज्यवाद को भी दुनिया के लिए अपरिहार्य बताते हैं। ऐसे में मानवतावाद, मानव अधिकार, समाजवाद आदि विचार अपने आप ऐसे दिमाग के दुश्मन बन जाते हैं। साथ ही दुश्मन बन जाते हैं आज़ादी, मुक्ति जैसे शब्द भी जिनके लिए मानवता की छटपटाहट कभी ख़त्म नहीं होने वाली!...              फिलिस्तीनी संघर्ष दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की  ऐसी प्रतीकात्मक त्रासदी है जिसने हार खाए पूंजीवादियों और फासिस्टों को हार न स्वीकार करने की निराशा की अभिव्यक्ति कहा जा सकता है। वे इसी बहाने दुनिया को जताना चाहते हैं कि दुनिया पर उनका ही सिक्का चलेगा। इज़राइल को उन्होंने आगे कर पूरी मानवतावादी चेतना पर गोले बरसाए हैं, फिलिस्तीन की तरह सबक सिखाने की धारणा बनाई है। संयुक्त राष्ट्र संघ का