Skip to main content

Posts

Showing posts with the label हिन्दी साहित्य

जातिवाद दूर करने का एक अचूक नुस्खा

                 हे, हे लक्ष्मी के वाहन!  मुझे लगता है जातिवाद दूर करने का एक बढ़िया सूत्र अब तक लोगों को मालूम नहीं है। यह सूत्र मानने और अपनाने से कम से कम सभी जातियाँ एक ही संबोधन से जानी जाएँगी।...प्रायः हर धर्म-जाति के लोग कभी न कभी इसका इस्तेमाल कर खुश होते हैं। खासकर तब जब यह किसी और के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हो! फिर भी इस अखिल धरा पर किसी न किसी रूप में कभी न कभी सभी इस लोकप्रिय संबोधन से नवाज़े गए हैं।        सभी प्रकार के जातिवादी लोग (पब्लिक/राजनीति में सभी जाति के लोग खुद को जातिवादी न कहकर बाकी सबको जातिवादी कहते हैं!) अगर अपनी जाति -'उल्लू का पट्ठा' लगाने लगे तो लोगों को देश की 3000 से अधिक जातियों के नाम से जानने की एक ही जाति 'उल्लू का पट्ठा' नाम से जाना जाएगा। इससे जातिवाद के खात्मे में कुछ तो मदद मिलेगी! मतलब 2999 जातियाँ खत्म हो जाएंगी।               वैसे यह 'जाति' शब्द भी 'ज' क्रियाधातु से व्युत्पन्न हुआ है जिससे 'पैदा होना'..'इस तरह पैदा हुआ' आदि का बोध होता है। उदाहरणार्थ आदमी आदमी की ही तरह पैदा होता है, सुअर या उल्

हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखक-2

               स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य के                प्रसिद्ध इतिहास-ग्रन्थ                ★ हिन्दी साहित्य का आदिकाल (1952) -               - हजारी प्रसाद द्विवेदी ★ हिन्दी साहित्य की भूमिका       - हजारी प्रसाद द्विवेदी ★ हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास (1955)        - हजारी प्रसाद द्विवेदी   ★ आधुनिक हिन्दी कविता की मुख्य प्रवृत्तियाँ      (1951) - डॉ. नगेन्द्र ★ 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' (सम्पादित)      और     'रीतिकाव्य की भूमिका'        - डॉ. नगेंद्र ★ हिन्दी साहित्य का नवीन इतिहास         - डॉ. बच्चन सिंह (1996) ★ हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास        - डॉ. बच्चन सिंह ★ हिन्दी साहित्य का अतीत        - विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ★ हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन      - नलिन विलोचन शर्मा ★ हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929- 2009)        - राम मूर्ति त्रिपाठी ★ आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास       - कृपा शंकर शुक्ल ★ हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास       - सूर्यकांत शास्त्री ★ हिन्दी साहित्य और संवेदना का इतिहास        - डॉ. रा

परीक्षा की तैयारी के कुछ जरूरी टिप्स: हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए!

परीक्षा की तैयारी     online_classes                              कम समय में              कैसे करें परीक्षा की बेहतर तैयारी? कम समय में परीक्षा की तैयारी कैसे करें  ?   इस वर्ष से उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रथम वर्ष का पाठ्यक्रम 'सेमेस्टर-सिस्टम' के हिसाब से तैयार किया गया है। एक वर्ष में दो सेमेस्टर या सत्र होने हैं। इन दोनों ही सत्रों का पाठ्यक्रम पूरी तरह अलग होगा। ऐसे में कोरोना-काल में विश्वविद्यालय/महाविद्यालय प्रायः अध्ययन-अध्यापन के लिए 'भौतिक रूप से बन्द' होने के चलते पाठ्यक्रम की तैयारी में विद्यार्थियों को परेशानी होना स्वाभाविक है। विद्यार्थियों के लिए #ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था का प्रचार किया जा रहा है, किन्तु इसके लिए  आधारभूत व्यवस्था न होने के चलते यह सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। सारे विद्यार्थियों के पास न तो उपयुक्त मोबाइल की व्यवस्था होती है, न ही इंटरनेट की। सभी अध्यापक भी ऑनलाइन तरीके से पढ़ाने में पारंगत नहीं होते। इसके बावजूद विद्यार्थियों की मजबूरी है कि वे 'ऑनलाइन' पढ़ाई करें। इसके अलावा अभी प्रवेश के बाद पढाई की व्यवस्

हिंदी स्नातक पाठ्यक्रम: सेमेस्टर सिस्टम की विडम्बनाएँ

स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र                    हिन्दी साहित्य:         नए पाठ्यक्रम की विडम्बनाएँ पूरे देश में  नई शिक्षा नीति  लागू करने की घोषणा के साथ विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम तय करने में साहित्य सम्बन्धी पाठ्यक्रम तय करना सम्भवतः सबसे दुरूह रहा होगा। कारण, साहित्य का अध्ययन सामाजिक चेतना की माँग पर आधारित होना चाहिए, न कि मात्र नौकरी मिलने/पाने की सम्भावनाओं पर आधारित। साहित्य कोई तकनीकी ज्ञान नहीं है, न उसे ऐसा समझा और विद्यार्थियों को परोसा जाना चाहिए। परन्तु बढ़ती बेरोजगारी से निपटने की आकांक्षा ने साहित्य को भी इसमें घसीट लिया है। इसलिए  साहित्य का पाठ्यक्रम भी सामाजिक चेतना का विकास  पर आधारित न होकर  बाज़ार की माँग के अनुरूप बनाया गया। लगता है पाठ्यक्रम मनीषियों ने जैसे यह मान लिया है कि सामाजिक चेतना विकसित करने का काम राजनीतिक पार्टियों का है।           उदाहरण स्वरूप उत्तरप्रदेश के हिंदी विषय का स्नातक प्रथम वर्ष का पाठ्यक्रम देखें तो लगता है कि इसमें हिंदी साहित्य की अपेक्षा  हिंदी का तकनीकी ज्ञान ही महत्वपूर्ण माना गया है। विडम्बना यह है कि स्नातक स्तर पर ही

जानिए योगियों के नाथ-सम्प्रदाय को

परीक्षा की तैयारी स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र नाथ सम्प्रदाय   गोरखनाथ              नाथ-सम्प्रदाय: एक परिचय सिद्धों और योगियों की रचनाएँ        हिन्दी साहित्य  का आदिकाल वीरगाथाओं का ही नहीं;  नाथों, सिद्धों, जैनियों की 'बानी' का भी  काल है। इनमें नाथ-सम्प्रदाय का साहित्य हिन्दी की आदिकालीन काव्यधारा में विशेष महत्त्व रखता है। इसका एक प्रमुख कारण परवर्ती हिंदी साहित्य पर उसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव है। वस्तुतः नाथ साहित्य को जाने-समझे बिना हिंदी के विशेषकर संत-साहित्य को जानना-समझना आसान नहीं। 'नाथ' का तात्पर्य: 'हिंदी साहित्य कोश' के अनुसार, " 'नाथ' शब्द का प्रयोग 'रक्षक' या 'शरणदाता' के अर्थ में 'अथर्ववेद' और 'तैत्तिरीय ब्राह्मण' में मिलता है। 'महाभारत' में 'स्वामी' या 'पति' के अर्थ में इसका प्रयोग पाया जाता है। 'बोधि चर्यावतार' में बुद्ध के लिए इस शब्द का व्यवहार हुआ है। ...परवर्ती काल में योगपरक पाशुपत शैव मत का विकास नाथ सम्प्रदाय के रूप में हुआ और 'नाथ' शब्द 'शिव&#

फणीश्वरनाथ रेणु: सुनो कहानी रेणु की

गतिविधि :  हिन्दी साहित्य                                     'रेणु-राग'                 फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती के अवसर पर                                  राष्ट्रीय संगोष्ठी पटना, 19 दिसम्बर।  पटना विश्विद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती के अवसर पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी  'रेणु-राग' पटना कॉलेज सेमिनार हॉल में  हुई। इस संगोष्ठी में  बिहार तथा बाहर के विभिन्न विश्विद्यालयों से जुड़े साहित्यकार, आलोचक व  प्रोफ़ेसर शामिल हुए। इसके साथ साथ बड़ी संख्या में पटना विश्विद्यालय के छात्रों के अलावा  साहित्य, संस्कृति से जुड़े बुद्धिजीवी , रंगकर्मी सामाजिक कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि मौजूद थे।             संगोष्ठी का उद्घाटन रेणु के चित्र पर माल्यार्पण करने के साथ हुआ। ‛हिंदी कहानी : परम्परा, प्रयोग और रेणु’ सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकर और तद्भव पत्रिका के संपादक श्री अखिलेश ने की। इस सत्र की चर्चा की शुरुआत करते हुए दिल्ली से आये चर्चित कथाकार संजय कुंदन ने कहा- “फणीश्वर नाथ रेणु ऐसे कथाकार थे जिन्होंने प्रेमचन्द के ग्रामीण जी

बैंक बचाओ, देश बचाओ

              दिवालिया होने से पहले                     https://youtu.be/7t4BsE7d4wM                                                                  - अशोक प्रकाश इससे पहले कि 'भाइयों और बहनों!' से शुरू हो 'राष्ट्र के नाम' एक और संबोधन मैं खासकर राष्ट्रीकृत समस्त बैंकों, उनके कर्मचारियों और उनके ग्राहकों को कहीं छुपा देना चाहता हूँ ताकि दिवालिया घोषित होने से पहले 'राष्ट्रीय पूँजी' किसी बिटिया के विवाह और किसी बेटे के  परचून की दूकान खोलने में बाधा न बन सके! दिवालिया दुल्हन बनाकर जिसे विस्थापित किया जा रहा है लंदन, न्यूयॉर्क या स्विट्जरलैंड में  कालाधन कहकर जब तक कि उसे वापस लाने का वादा दोहराया जाए मैं खेतों में धान और गेहूँ की बालें देखना चाहता हूँ ताकि कब्ज़ा होने से पहले  खेत बता सकें दुबारा पैदा होने के कुछ गुर उन दानों को जो पसीने की गंध और मिट्टी की सुगंध से हजारों साल से उगते आए है!.. इससे पहले कि मैं न होऊँ तुम्हें बता देना चाहता हूँ उनका ठिकाना जो बीज उगाना जानते हैं हल-बैल चलाना जानते हैं ट्रैक्टर और रोबोट भी चला सकते हैं कारखाने और हथियार भी बना सकते

ये किसकी जीत ये किसकी हार?..

              तंत्रलोक के किस्से यार                           --  अशोक प्रकाश तंत्रलोक के किस्से यार ये किसकी जीत ये किसकी हार! इक हौली में चार पियक्कड़ अक्कड़ बक्कड़ लाल बुझक्कड़ तय है वादा तय है रोना तय है खोना तय है सोना तय है किस पर पड़नी मार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! रामसिंह के रमरजवा नौकर किसके पेट पे किसकी ठोकर चार हजार में कर मज़दूरी रामसिंह कहें ये मजबूरी किसके सइकिल किसके कार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! खेती-बाड़ी मुश्किल काम न दिन आराम न रात आराम खाद-बीज-पानी के चक्कर राधा-कृष्ण बने घनचक्कर उमर हो गई सत्तर पार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! बड़का लड़का पड़ा बीमार नौकरी-चाकरी कुछ न यार छोटकी की पहले परवाह कैसे होगा इसका ब्याह? क्षीण पड़ रही जीवन-धार... ये किसकी जीत ये किसकी हार!               ★★★★★

हम बैठोल हैं!...

                                  बैठोल-शास्त्र   जी, हम बैठोल हैं! लेकिन कोई कुछ काम करता दिखता है तो हमें उसमें हजार कमी दिख जाती है। जैसे कि यह बन्दा यह काम कर ही क्यों रहा है जब हम नहीं कर रहे? जरूर कोई बेईमानी का काम होगा! क्योंकि सबसे ईमानदारी का काम तो कुछ न करना है। उसे कोई बड़ा मुनाफ़ा हो रहा होगा...कोई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़ा होगा। क्या पता किसी पार्टी के इशारे पर यह सब काम कर रहा हो। आखिर, इसके पास पैसा कहाँ से आता है यह सब करने, दौड़ने-धूपने का जबकि हम घर में बैठे-बैठे भी कंगाली महसूस करते हैं?...           सोचो तो, हम एकदम सही सोचते हैं! पूरी दुनिया भी तो ऐसा ही सोचती है। बिना फायदे के, मुनाफ़े के कोई कहीं कुछ काम करता है? इसलिए जरूर कोई ऐसा काम कर रहा है, जनता का-किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों को एकजुट करने, उन्हें जोड़ने के लिए चप्पलें घसीट रहा है तो कोई बहुत बड़ा फायदा, बल्कि स्वार्थ होगा! देखिए न, हम निःस्वार्थ भाव से अपने घर में बैठे हैं। यहाँ तक कि जब तक मजबूरी न हो जाए, घर में झगड़े की नौबत न आ जाए, घर के बाहर पाँव रखना भी गवारा नहीं करते! आखिर दुनिया मायाजाल ह