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सोई हुई जातियाँ पहले जागेंगी

                      https://youtu.be/kzwBYuHjR1Y                      सोयी हुई जातियां पहले जागेंगी !                                                   प्रस्तुति : गुरचरन सिंह मुंशी प्रेमचंद के नाम का जिक्र तो काफी होता है प्रगतिशील लेखक मंच से दलित समस्याओं को उठाने के लिए, लेकिन महाप्राण निराला जैसे 'कान्यकुब्ज ब्राह्मण' ने भी ऐसा कुछ कहा या लिखा होगा, यह तो मेरे लिए भी एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं था। यह दूसरी बात है कि लगभग एक सदी बाद भी कुछ अपवादों को छोड़ कर हालात न केवल जस के तस बने हुए हैं बल्कि और भी बिगड़े हैं ! लेकिन सिर्फ बाबा साहेब ही नहीं कुछ और भी संवेदनशील व जिम्मेदार लोग इस दिशा में सोच रहे थे, सक्रिय थे, सबूत है इस बात का कि कोई भी सामाजिक आंदोलन किसी एक खास तबके की बपौती नहीं हो सकता ! पांच अंगुलियां जब आपस में मिलती हैं, मुट्ठी तभी बनती है ! इसलिए #महाप्राण_सूर्यकांत_त्रिपाठी_निराला जैसा कद्दावर भविष्यद्रष्टा कवि जब 1930 में भी जब कुछ ऐसा कह जाता है जिसे कहने में हम आज भी डर जाते हैं संविधान की अनेक गारंटियों के बावजूद तो हैरानी तो होगी ही !  पेश