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Showing posts from March, 2020

कोरोना_टाइम्स: कोरोना का आतंक और उठते सवाल

                                  #कोरोना_का_आतंक                                    और उठते सवाल कोरोना_वायरस ने पूरी दुनिया की जनता में तहलका मचा रखा है! लगभग पूरी दुनिया के शासक इस वायरस के संक्रमण को लेकर जितने गम्भीर और प्रचार-प्रसार में लीन हैं; उतना तो शायद ड्रॉप्सी, hiv, सॉर्स, इबोला, स्वाइन फ्लू आदि के समय भी नहीं थे!...ठीक भी है, अगर इसकी बीमारी का कोई इलाज ही नहीं है तो चिंता तो करना ही चाहिए! लेकिन डॉ बिस्वरूप रॉय चौधरी जैसे कुछ मनीषी ऐसे हैं जो इसके कई दूसरे पक्ष बता रहे हैं। इसके टेस्ट किट्स, वैक्सीन आदि के बिक्री अधिकार आदि को लेकर अमरीका-चीन की दोस्ती और समझौते की भी चर्चा है। दुनिया के शासकों और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे जिम्मेदार संगठनों को ऐसे उठते सवालों का जवाब जरूर देना चाहिए! हमारे देश में लॉकडाउन के बाद प्रवासी कामगारों की परेशानी का जो  मंज़र सामने आया, लॉकडाउन की घोषणाओं और कोरोना के आतंक को उन्होंने अपनी भूख और परेशानियों के सामने जिस तरह अर्थहीन समझा, उससे समस्या और भी विकराल हो गई है। स्वास्थ्य की चिंता से सम्बंधित एक अन्य पहलू भी लोगों

लॉकडाउन: वो जा रहे हैं...

                                   वो जा रहे हैं...                                                    - अशोक प्रकाश वो जा रहे हैं तुम संभालो अपनी दिल्ली तुम्हारे दिमाग में घुसा वायरस न जाने फिर कब फट पड़े!.. उन्होंने जब-जब तुम पे भरोसा किया धोखा खाया... समझते हो कि सच सिर्फ़ तुम समझते हो सच कोई फ़िल्मी हीरो नहीं है ज़नाब वह हारता भी है तुम कितना भी लिख लो कहीं भी - सत्यमेव जयते! माना कि तुम्हारा राज है सड़कें भी तुम्हारी हैं रेल भी खाना-पीना सोना-जागना सब तुम्हारे अधीन है मगर सपने- मत छेड़ो उन्हें वे जग गए तो कहीं के न रहोगे जनाबे-आली! तुम्हारा जीतना ही तुम्हारी हार है तुम नहीं मानोगे इतिहास को भी नहीं स्वीकारोगे... लेकिन हो सके तो आंखें खोलकर देख लो वे जा रहे हैं तुम्हारे सारे प्रतिबंधों तुम्हारे आकाओं के सारे उपबन्धों को तोड़कर... डरो तुम और तुम्हारे मालिकान सदियों उन्होंने डर को हराया है डराने वालों को धूल चटाया है अजेय समझे जाने वाले राजाओं-महाराजाओं को ही नहीं- एक से एक क्रूर और खूंखार जानवरों को मार गिराया है.. सावधा

संघर्षों-शहादतों की यादों का महीना

                  पेरिस कम्यून और शहीद भगत सिंह एवं उनके                          साथियों को याद करने का महीना                                                            - अशोक प्रकाश                  Picture Courtesy: marxist.com मार्च का महीना हिंदुस्तानियों के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया की शोषित-पीड़ित जनता के लिए खास महीना है! यह कार्ल मार्क्स, पेरिस कम्यून, मैक्सिम गोर्की,  शहीद भगत सिंह और उनके साथियों, अवतार सिंह पाश को याद करने का महीना है।       मार्च के ही महीने में 18 मार्च 1871 को आधुनिक दुनिया की सच्ची आज़ादी की आकांक्षा को व्यक्त करने वाली पेरिस कम्यून बनी जिसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव को भुलाकर मज़दूरों ने राजसत्ता को हराकर अपनी सरकार बनाई और जिससे दुनिया भर की पूँजीवादी ताकते घबरा उठीं!..भले ही यह कम्यून मात्र दो माह तक चल पाया और फ्रांस के चालबाज़ शासक को समझने में विफल होने के कारण पराजित हो गया! किन्तु इसके बाद इसके अनुभवों से सबक लेते हुए आगे दुनिया के अनेक देशों में क्रान्तियां हुईं और मजदूरों-किसानों की समाजवादी सरकारें बनीं!..सच है कि 'पेरिस कम्यून मजद

शहीद-दिवस: 23 march

                          आज 23 मार्च है!...   शहीद भगतसिंह-राजगुरु-सुखदेव की फाँसी की तारीख पहले 24 मार्च निश्चित की गई थी। किन्तु उन्हें 23 मार्च को ही फाँसी दे दी गई! अगर ऐसा होता तो हो सकता है हम शहीद भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव का शहादत-दिवस हम 23 मार्च की जगह 24 मार्च को मना रहे होते!... हो सकता है 1931 में कांग्रेस का वह अधिवेशन कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया होता!... हो सकता है इन शहीदों को भी 'कालापानी' की सजा हो जाती और वे 1947 के बाद भी सक्रिय होते!... हो सकता है जमीन के 'राष्ट्रीयकरण' ताकि उस पर सामूहिक-खेती हो सके...और कारखानों का राष्ट्रीयकरण ताकि मज़दूरों को कम से कम नियमित और निश्चित मज़दूरी मिल सके-सभी मज़दूरों को पेंशन,बोनस,फंड मिल सके...आदि शहीदों की देश की जनता के लिए की जाने वाली ये साधारण सी मांगें 1947 के बाद पूरी हो गई होतीं!... हो सकता है उनके सपनों का भारत भले न बन पाता, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईशाई-ब्राह्मण-दलित-सवर्ण-पिछड़े का भेद न कर सरकारें सबकी आजीविका-रोजगार...आवास...कपडे-लत्ते की सामान्य सी व्यवस्था कर दी होतीं!... हो सकता है जाति

फिर कोरोना की मार: आम आदमी लाचार

                                कोरोना की मार : चौपट_बाज़ार                       https://youtu.be/38silJo8LNo                     एक बार फिर कोरोना की काली छाया दिलोदिमाग पर  छा गया है। बेरोजगारी की मार झेल रहे मजदूरों की दशा सबसे बुरी है। लेकिन बाजार पर भी यह मार कम नहीं है। एक तरफ़ कालाबाजारी करने वाले सक्रिय हैं जिससे उपभोक्ताओं का हाल बुरा है तो दूसरी तरफ ईमानदार दुकानदारों की दशा खराब है। लगातार दुकानें बंद रहने के आदेशों के चलते चोरी-छुपे दुकान खोलने वाले एकतरफ कोरोना से आतंकित हैं, दूसरी तरफ दुकान खुली होने पर पकड़े जाने का डर!...सबसे मुश्किल में छोटे दुकानदार और रेहड़ी-पटरी वाले हैं। थोड़ी देर के लिए खुलने वाले लॉकडाउन में किसी को ग्राहक मिले, किसी को नहीं!..आ म आदमी की ज़िंदगी में वैसे भी कहाँ कम मुश्किलें हैं!...उस पर यदि कोई अनहोनी मुसीबत आ जाए और उसकी रोज़ी-रोटी चलना मुश्किल हो जाए तो सिर पर पहाड़ ही आ टूटता है!... #कोरोना कहर बनकर रोज कमाने-खाने वाले दिहाड़ी मज़दूरों पर ही नहीं टूट पड़ा है, छोटा-मोटा रोजगार-धंधा करके अपना परिवार पालने वाले ठेली-रेहड़ी वालों, सब्ज़ी

5 मई जन्म-दिवस: कार्ल मार्क्स और मार्क्सवाद

मार्क्स जन्म-दिवस, 5 मई:                          कार्ल मार्क्स और         मार्क्सवाद की दुनिया को देन                                                      दुनिया के सामाजिक-आर्थिक जीवन को अब तक के इतिहास में सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कार्ल हेनरिख मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को जर्मनी के ट्रेवेश (प्रशा) नगर में हुआ था। उनका परिवार यहूदी धर्म को मानने वाला था। बाद में सन 1824 में इस परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। आर्थिक अभावों से गुजरते हुए मार्क्स ने वर्ग-विषमता और वर्ग-संघर्ष के सूत्र विकसित कर शोषित-पीड़ित दुनिया की आम जनता की मुक्ति का वैज्ञानिक रास्ता दिया। यह दिखाया कि न तो दुनिया हमेशा ऐसी ही रही है, न आगे भी ऐसी ही रहने वाली है। मनुष्य ने अपने संघर्षों से इस दुनिया को यदि बेहतर से बेहतर बनाया है तो अपनी ज़िंदगी के लिए भी मुक्ति के द्वार खोले हैं। जिस तरह डार्विन ने जैव प्रकृति में विकास के नियम का पता लगाया था, वैसे ही मानव-इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का पता लगाया था। इस नियम ने ऐतिहासिक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का जो सूत्र सर्वहारा के हाथ में थमाया उससे युगों