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Showing posts with the label जंगल

कल किसका नम्बर है?...

               'कब तलक लुटते रहेंगे?..'         जी, कल किसका नम्बर है?...आप नहीं जानते?...लेकिन सरकार जानती है, कॉरपोरेट जानता है! इस धरती पर वे अपना अधिकार समझने लगे हैं~ दुनिया के सबसे कामचोर लोग!..बड़े-बड़े शहरों के महलों में रहने वाले लोग! वे खेती की, जंगल की जमीन तय कर रहे हैं कि वह किसकी है!...नहीं, वे तय कर रहे हैं कि यह उनकी नहीं जो सदियों से यहाँ रहते आए हैं बल्कि यह उनकी है जो यहाँ कभी नहीं रहे, कभी नहीं रहेंगे! ये शहरिल्ला लोग सिर्फ़ जल, जंगल, जमीन का सत्त्व चूसना, उसका दोहन कर मुनाफ़ा कूटना जानते हैं। पुलिस-फ़ौज के बल पर ये लोग ऐसे हर व्यक्ति के खिलाफ़ हैं जो आदिवासियों, अपनी धरती पर सदियों से रहते आए समुदायों की बेदख़ली और प्राकृतिक क्षेत्रों को बरबाद करने वालों की चोरी और सीनाजोरी के विरुद्ध जन-जागृति पैदा करता है। कॉमरेड माधुरी भी उन्हीं में से एक हैं। पढ़िए और जानिए हक़ीक़त ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) की विज्ञप्ति के माध्यम से~ हम पुर ज़ोर तरीके से जे.ए.डी.एस JADS नेता माधुरी  पर हमले की निंदा करते है! ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFW

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और कोई सहारा नहीं!.. जी, छतरपुर के बक्सवाहा जंगलों में कुछ ऐस