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Showing posts from July, 2022

नरक की कहानियाँ: 3~ महात्मा के कारनामें!

नरक की  कहानियाँ :  दो:                      महात्मा नहीं परमात्मा!. .                     (कॉमा अपने आप लगा लीजिए) 【 पिछले अंश में  आपने महात्माजी का संक्षिप्त परिचय पाया था। आपने जाना था कि महात्माजी कोई साधारण आदमी नहीं हैं। उनके बारे में तरह-तरह की धारणाएँ हैं~ कि वे पहुँचे हुए आदमी हैं, धूर्त हैं, सीआईए के एजेंट हैं...आदि-आदि। लेकिन तब सब चौकन्ने हो गए जब महात्माजी ने कहा कि  "सावधान कर रहा हूँ, बैंक में रखा अपना सारा पैसा निकाल लो! बैंक में रखा पैसा अब सुरक्षित नहीं रह गया है!. ." अब आगे.. 】 ~~~          "क्यों?..क्यों महात्माजी? हम तो बैंक में पैसा सुरक्षित रखने के लिए ही डालते हैं और आप कह रहे हैं कि वहाँ पैसा रखना सुरक्षित नहीं रह गया है!"..                                                                         मुझे दो दिन पहले रग्घूचचा की बात ध्यान हो आई। उन्होंने कहा था कि महात्मा पर कभी विश्वास न करना, पूरा रँगा सियार है। चोरों से मिला हुआ है और इसका असली काम ठगी है। महात्मई भेस धारन किए घूमता है लेकिन लोगों को लुटवाता हैं। लुटेरे इसे कमीसन देते हैं!.

तो महात्माजी से परिचित नहीं हैं आप?

स्वर्ग की कहानियाँ :   एक:                 महात्माजी : परिचय         मतलब, आप भी जान लीजिए! महात्माजी कभी झूठ नहीं बोलते!.... यह अलग बात है कि आम लोग उनकी भाषा नहीं समझते और अर्थ का अनर्थ करते हैं। महात्माजी के प्रवचनों को सुनने और समझने वाले प्रायः तीन प्रकार के लोग हैं। पहले नम्बर पर वे लोग हैं जो उनका मंतव्य समझ नहीं पाते और उनकी सत्यवादिता को मिथ्या-प्रलाप मान लेते हैं। ऐसे लोगों को आप उनका विरोधी या उनसे जलने वाला मान सकते हैं। दूसरी तरह के वे लोग हैं जो उनके मुखारविन्द से निकले वचनों का सही-सही अर्थ जानते हैं और इसे भविष्यवाणी मानकर सावधान हो जाते हैं। ऐसे लोग महात्माजी को कबीरदास के समकक्ष मानते हैं और कहते हैं- 'कबीरदासजी की उल्टी बानी, बरसै कम्बल भीजै पानी।' लेकिन सबसे समझदार तीसरी तरह के लोग हैं जो एक न एक दिन खुद भी महात्माजी जैसा बनने का सपना पालते हैं। उन्हें जन सामान्य भक्त कहता है लेकिन अपने करतबों से ऐसे लोगों ने दिखा दिया है कि वे भक्त नहीं बल्कि महात्माजी के सहभागी हैं। अक्सर ऐसे लोग फ़ायदे में ही रहते देखे जाते हैं। लेकिन इस तीसरे वर्ग में एक उपवर्ग भी ह

क्या आप साँप को दूध पिला रहे हैं?

                           साँप को दूध पिलाना               मुहावरा ही सही है! जी, हाँ! मुहावरे और कहावतें अज्ञानता की भी प्रतीक होती हैं। इसलिए उन्हें आप्त-वाक्य मानकर जो लोग बार-बार अपनी किसी बात को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें 'सांप को दूध पिलाना' मुहावरे पर ठीक से विचार करना चाहिए। क्योंकि क्या आप जानते हैं कि साँप दूध नहीं पीते और जबर्दस्ती उन्हें दूध पिलाने से उनकी मौत भी हो जाती है? सांप वे रेंगने वाले जीव हैं जो दूध, शाक-सब्जी नहीं खाते, न ही वे कोई शाकाहारी देवी-देवता हैं। साँप मांसाहारी होते हैं और जमीन पर चलने वाले दूसरे जीवों जैसे चूहा, मेढक, छिपकली व अन्य कीड़े-मकोड़ें खाकर जीवन-यापन करते हैं। उन्हीं की खोज में कभी-कभी वे मनुष्यों, नेवलों आदि के संपर्क में आने के कारण आकर अपनी जान भी गँवा बैठते हैं। हमारा देश धर्मप्राण देश माना जाता है। इस कारण जीवन के हर क्षेत्र में यहाँ धर्म की पैठ है। कभी-कभी तो धर्म के नाम पर लोग अधर्म भी कर जाते हैं। इन्हीं में से एक अधर्म हैं साँप को दूध पिलाना और दूसरा अधर्म है साँप को अपना दुश्मन मानकर उसकी जान के पीछे पड़ जाना। दरअसल,