पुरानी पेंशन बहाली तय करेगी कि केंद्र सरकार प्रजातांत्रिक है या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कब्जे में!... प्रस्तुति: विजय कुमार बन्धु 90 के दशक में उदारीकरण का दौर भारत मे आरंभ हुआ। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में पैर पसारने के लिए लालायित होने लगी। वे देश में अपने हित साधने के लिए लिए केंद्र सरकार के ऊपर दबाव बनाने लगे और कामयाब भी हुए। उदारीकरण के दौर का पहला बड़ा शिकार केंद्र और राज्य के लगभग 50 लाख शासकीय कर्मचारी हुए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने दबाव समुह के माध्यमो से केंद्र सरकार के कान भर दिए की शासकीय कर्मचारियों को दी जानेवाली पेंशन/पारिवारिक पेंशन से सरकार पर बोझ बढ़ा रहा है। इसे हमें सौंप दिया जाए साथ ही इससे होने वाले लाभ केन्द्र सरकार को अतिरंजित वर्णन कर बता भी दिये। इसके स्थान पर न्यू पेंशन स्कीम की अवधारणा को रखा एवम बढ़ा-चढ़ाकर बता दिया कि भावी कर्मचारियों इससे क्या-क्या लाभ होंगे। उदारीकरण के जनक प्रधानमंत्री
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.