विद्यालयों में अनिवार्य गायत्री-मन्त्र
अंधविश्वास का विनाश या विकास
क्या आप 'आइए, अंधविश्वास खत्म करें! ' के दिव्य उद्घोष के साथ अंधविश्वास फैलाने का 'श्रीगणेश' कर सकते हैं?... उत्तर देने या हाँ-ना कहने के पहले कुछ देर सोचिए जरूर!
क्या उत्तर मिला?...
जी, मुझे तो इसका उत्तर 'हाँ!' मिला है। मिला ही नहीं, बाकायदे घोषणा की गई है, आदेश निकाला गया है कि अंधविश्वास से लोगों को बचाने के लिए लोगों को 'गायत्री मंत्र' का जाप करना होगा!...वह भी बच्चों को! ये कौन सी उलटबांसी है? कहते हैं कि किसी जमाने में लोग मन्त्र पढ़कर आग जला देते थे, पानी बरसा देते थे, तूफान ला देते थे!...क्या आप इस पर विश्वास करते हैं?...तब आप इस पर भी विश्वास कर सकते हैं कि गायत्री-मंत्र का जाप करने से 'अंधविश्वास' दूर होगा!मुझे अन्य किसी की ही तरह ठीक से नहीं पता कि 'व्यास' का मतलब गप्पी भी हो सकता है, किन्तु इतना पता है कि 'व्यास' का व्युत्पत्तिगत अर्थ 'विशेष तरीके से किसी बात को कहने वाला' है और हो सकता है!...'श्रीमद्भागवत महापुराण' के व्याख्याता 'व्यास' कहे ही नहीं गए थे, आज भी कहे जाते हैं और बाकायदा इस काम को सुचारू ढंग से सम्पन्न कराने के लिए 'व्यास-गद्दी' बनाकर भव्य तरीके से उस पर उन्हें बैठाया जाता है, उनकी आरती उतारी जाती है, फूलमाला पहनाई जाती है, चंदन लगाया जाता है!...यह सब किस लिए?...इसलिए कि वे किसी बात (कथा ) को विशिष्ट ढंग से कह सकते हैं। वे 'व्यासजी' हैं! और यह सच है! व्यासजी लोग कथा को इतने-इतने विशिष्ट तरीके से कहते हैं कि आपको लगता है कि कलयुग में सचमुच सतयुग या त्रेतायुग उतर आया है। वे आपको भरोसा दिला देते हैं कि जो वे कह रहे हैं- पूरी तरह सच है और सच के सिवा कुछ नहीं है!...किन्तु सच तो यह है कि वे जो कुछ कहते हैं उसे आप पहले से ही सच मान बैठे हैं। इसलिए यदि विद्यार्थियों को गायत्रीमंत्र के जरिये अंधविश्वास भगाने की बात कही जाती है तो आप उसे भी सच मानते हैं!...
तो ठीक ही तो किया गया है न हरियाणा के विद्यालयों में?...बोलो, व्यास महराज की जय! आप भी व्यास बन सकते हैं, अपनी जयकारा लगवा सकते हैं!
नाश हो ऐसी सोच का, ऐसे विचार का जो अंधविश्वास को शिक्षा कहता हो!
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