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आपके पास विकल्प ही क्या है?..

                          अगर चुनाव              बेमतलब सिद्ध हो जाएं तो? सवाल पहले भी उठते रहते थे!... सवाल आज भी उठ रहे हैं!... क्या अंतर है?...या चुनाव पर पहले से उठते सवाल आज सही सिद्ध हो रहै हैं? शासकवर्ग ही अगर चुनाव को महज़  सर्टिफिकेट बनाने में अपनी भलाई समझे तो?... ईवीएम चुनाव पर पढ़िए यह विचार~ चुनाव ईवीएम से ही क्यों? बैलट पेपर से क्यों नहीं? अभी सम्पन्न विधानसभा चुनाव में अनेक अभ्यर्थियों, नुमाइंदों, मतदाताओं ने ईवीएम में धांधली गड़बड़ी की शिकायत की है, वक्तव्य दिए हैं। शिकायत एवं वक्तव्य के अनुसार जनहित में वैधानिक कारवाई किया जाना नितांत आवश्यक है।।अतः चुनाव आयोग एवं जनता के हितार्थ नियुक्त उच्च संस्थाओं ने सभी शिकायतों को संज्ञान में लेकर बारीकी से जांच कर,निराकरण करना चाहिए। कई अभ्यर्थियों ने बैटरी की चार्जिंग का तकनीकी मुद्दा उठाया हैं जो एकदम सही प्रतीत होता है। स्पष्ट है चुनाव के बाद या मतगणना की लंबी अवधि तक बैटरी का 99% चार्जिंग  यथावत रहना असंभव~ नामुमकिन है।  हमारी जानकारी के अनुसार विश्व के प्रायः सभी विकसित देशों में ईवीम से चुनाव प्रतिबंधित है,बैलेट पेपर से चुनाव

हुज़ूर, आपके नीचे से जमीन खिसक रही है!..

              उत्तरप्रदेश: जीत कि हार?.. #कर्नाटक में हार से तिलमिलाए भाजपा-भक्त अब मोदी-मोदी का नारा न लगा उत्तरप्रदेश-उत्तरप्रदेश कह रहे हैं। वे योगी के बुलडोज़र-राज को तो रामराज्य का आदर्श मान ही रहे हैं, अपने 'अगले प्रधानमंत्री' को अभी भी करिश्माई कह रहे हैं। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों को वे इसके उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं। यह सही है कि सपा, कांग्रेस, बसपा, रालोद सहित सभी राजनीतिक दल महापौर या मेयर की 17 में से एक भी सीट नहीं जीत पाए। यह सीबीआई, ईडी, बुलडोज़र का खौफ़ हो  अथवा जनता के जातिवाद या मूढ़ता के प्रति उनका अटूट भरोसा, बाकी राजनीतिक दलों ने कोई विशेष कोशिश भी नहीं की। शहरों के मेयर पद-लोलुप पूंजीपतियों का गणित भी इन राजनीतिक दलों की अपेक्षा 'चुप बैठो' की रणनीति को अपने लिए बेहतर मानता रहा है। इसलिए विपक्ष के कुछ महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों को छोड़ महापौर के चुनाव को इन दलों ने गम्भीरता से नहीं लड़ा। वैसे भी उन्हें पता था कि राज्य में भाजपा सरकार के रहते अन्य किसी दल के मेयर को काम करना बहुत मुश्किल होता है, वह उनके 'मन-मुताबिक' काम नहीं कर पाता।

साहब का चुनाव और ठेलेऊराम की माला

                       साहब का चुनाव तो तैयार हो जाइए कुछ और लोगों को चुनने और माला पहनाने के लिए! इस बात का कोई मतलब नहीं कि आप कई बार ऐसा कर चुके हैं।  'बीती ताहि बिसारि दे!'--संदेश कवि का, आदेश सरकार का! अपनी जाति का चुनेंगे या धर्म का?  कुछ गलत कहा क्या?  सच तो है, पर होना चाहिए-'मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थू!'  कोई बात नहीं! मीठा-मीठा खाइए, प्रभू के गुन गाइए!           कितने सुंदर-सुंदर अखबार के शुरुआत के पन्नों में  ही विज्ञापन हैं! पता है कि आप अखबारों के शुरू के पन्नों की हेडिंग देखते हैं, फिर जम्हाई लेने लगते हैं। तो लीजिए साहबान- 'उत्तर प्रदेश, एक्सप्रेस प्रदेश'!  वाह!! क्या अनुप्रास है! '..प्रदेश...प्रदेश..!  और भी लीजिए- 'सोच ईमानदार, काम दमदार'!  अब बोलिए, क्या कमी रह गई? आप गम्भीर आदमी हैं? तो सुनिए और गुनिए!  'बैंकों में 26% हिस्सेदारी घटाएगी सरकार!'... ध्यान रखिएगा पहले ही कहा जा चुका कि बैंकों के दिवालिया होने पर आपके 5 लाख सुरक्षित!  और कितना चाहिए काम 'ईमानदार' काम?  49% प्रतिशत पहले ही घटा चुकी है। 26 और जोड़ लीजिए त