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साहब का चुनाव और ठेलेऊराम की माला

                      साहब का चुनाव


तो तैयार हो जाइए कुछ और लोगों को चुनने और माला पहनाने के लिए! इस बात का कोई मतलब नहीं कि आप कई बार ऐसा कर चुके हैं। 
'बीती ताहि बिसारि दे!'--संदेश कवि का, आदेश सरकार का! अपनी जाति का चुनेंगे या धर्म का? 
कुछ गलत कहा क्या? 
सच तो है, पर होना चाहिए-'मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थू!' 
कोई बात नहीं! मीठा-मीठा खाइए, प्रभू के गुन गाइए! 

         कितने सुंदर-सुंदर अखबार के शुरुआत के पन्नों में ही विज्ञापन हैं! पता है कि आप अखबारों के शुरू के पन्नों की हेडिंग देखते हैं, फिर जम्हाई लेने लगते हैं।

तो लीजिए साहबान- 'उत्तर प्रदेश, एक्सप्रेस प्रदेश'! 

वाह!! क्या अनुप्रास है! '..प्रदेश...प्रदेश..! 

और भी लीजिए- 'सोच ईमानदार, काम दमदार'! 

अब बोलिए, क्या कमी रह गई?

आप गम्भीर आदमी हैं? तो सुनिए और गुनिए! 

'बैंकों में 26% हिस्सेदारी घटाएगी सरकार!'...

ध्यान रखिएगा पहले ही कहा जा चुका कि बैंकों के दिवालिया होने पर आपके 5 लाख सुरक्षित! 

और कितना चाहिए काम 'ईमानदार' काम? 

49% प्रतिशत पहले ही घटा चुकी है। 26 और जोड़ लीजिए तो भी 75 ही होता है! 

25% से ज़्यादा चाहिए आपको क्या साहब? नहीं..नहीं! 

क्या दूरदृष्टि है- 'काल करै सो आज कर!..' 

ऐसे ही थोड़ी कबीरदास गोरखनाथ के साथ एक ही गुफा में बैठकर तप करते थे!
और भी 'फीलगुड' करना है? 

लीजिए-लीजिए! 'छात्राओं को भी मातृत्व अवकाश!' 

एक अनुप्रास और मुलाहिजा फ़रमाइए- 'भयमुक्त समाज हमारा संकल्प, सुरक्षित नारी- इसका पहला विकल्प!'... 

ताली नहीं बजाइयेगा? अनुप्रास से बोर हो गए क्या? 

तो लीजिए- 'डिजिटल इंडिया का डिजिटल उत्तर प्रदेश!'..  'नए भारत का नया उत्तर प्रदेश!' 

बचिएगा कहाँ से बच्चू! हमारे तरकश में अभी एक से बढ़कर एक तीर हैं!

बैंक में पाँच लाख सुरक्षित समाचार भाषण पर ठेले वाले भाई ठेलेऊराम पूछने लगे- 'साहब, बिटिया की शादी के वास्ते हमने तो एक लाख बचा के रखा है। अब क्या सरकार पाँच लाख देगी?...'

भक्तवत्सल मिश्रा जी ने जवाब दिया- 'और क्या?.. पर चुनाव के बाद मिलेगा! पहले अमीरों की जेब से निकाला जाएगा!'

ठेलेऊराम खुश हुए। कितना मेहरबान हैं सरकार गरीबों पर! अमीरों की जेब से पैसा निकालकार गरीबों का कल्याण करते हैं। तभी तो ई पढ़े-लिखे लोग उनका विरोध करते हैं। अब समझ में आएगा मास्टरऊ को। सब्ज़ी के साथ धनिया-मिर्चा फ्री माँगते हैं! इन्हीं को मिलेगा कंजूसी का फल!

साहब अंतर्यामी हैं। सबकी जानते हैं। अस्सी रुपइया जेब से निकालने के लिए आठ रुपये देने का लॉलीपॉप देना और दो रुपये खाते में डालकर वाहवाही लूटना और बाकी छह की उम्मीद में झमाझम्म तालियाँ बजवाना साहब से बेहतर कौन जानता है? 

चुनिए, चुनिए, साहब को बार-बार चुनिए! आपके इस पुनीत कर्त्तव्य से ही तो सब बचे हैं, वरना क्या पता हम श्रीलंका हो जाते!                              ★★★★★★★

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