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क्या राजा नंगा है?..

                            देखो, राजा नंगा है!.. एक देश में एक राजा हुआ करता था। उसको नये-नये प्रयोग करने का शौक था। सारे प्रयोग वह अपनी प्रजा और अपने कर्मचारियों पर करता था। एक दिन उसने एक खाई खुदवाई और उसमें आग के अंगारे दहकाये। इसके बाद उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि सभी को इन अंगारो पर से गुजरना है इन अंगारों जो गुजर जाएगा, उसकी नौकरी बची रहेगी। अगर कोई अंगारो से गुजरते हुऐ मर जायेगा तो उसको पचास लाख का मुआवजा मिलेगा।  लेकिन जो अंगारो से गुजरने से मना कर देगा उसको नौकरी से निकाल दिया जाएगा।  कर्मचारियों ने मजबूर होकर राजा के आदेश को माना और दहकते हुये अंगारो से गुजरना शुरू किया। बड़ी मुश्किल से कुछ लोग पार कर पाये। मगर पर करते समय कुछ लोगों के पैर जल गये, कुछ फिसल गये तो उनके हाथ-मुँह सब जल गये। कुछ उसी आग में गिर गये जिनको घसीट कर निकाला गया।  किन्तु इनमें से तीन लोग उसी आग में भस्म हो गये जिनको आग से बचाने में लोग नाकाम रहे। इस प्रयोग के दो-चार दिन बाद जो लोग उस आग से झुलस गये थे उनकी जिन्दगी नरक बन गयी । एक-एक कर लोग दम तोड़ने लगे और दम तोड़ने का सिलसिला इतना बढ़ा की मरने वा

शिक्षक हैं तो...सिखाइए!

                                    शिक्षक हैं तो                            और सीखिए, और सिखाइए!                                                 - अशोक प्रकाश             जीवन एक संघर्ष है और इस संघर्ष को जितना ही मानव-सभ्यता के संघर्ष से जोड़कर हम देखते हैं, उतना ही यह मजेदार लगता है। हमारी तकलीफ़ भी सिर्फ़ हमारी नहीं होती। हमें यह भी पता चलता है कि इसे झेलने वाले हम कोई विरले इंसान नहीं हैं!...           तो फिर इस पर इतना हायतौबा करते हुए जीना कैसा?...          दरअसल, यह जीवन एक विराट और न ख़त्म होने वाली यात्रा की तरह है। यह यात्रा मानव-सभ्यता की विकास-यात्रा है। एक इंसान को  इस यात्रा को हमेशा ही बेहतर और सुखद बनाने की कोशिश करना चाहिए!         हम इस संसार को जितना बेहतर देख, जान, समझ सकेंगे उतना बेहतर जी सकेंगे, इसे और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकेंगे। तो इस संसार को ज़्यादा से ज़्यादा देखिए, जानिए, समझिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में साझा कीजिए!...ध्यान रखिए कि इसमें निरंतर कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ मनोरंजक, कुछ चिंतन-चेतना को बढ़ाने वाला हो!           और हाँ, विधि-विधान की

कैसा शिक्षक-दिवस?...

शिक्षक-दिवस?...क्या शिक्षक-दिवस?            प्राथमिक शिक्षा और उसके शिक्षकों की व्यथा-कथा !            पांच सितम्बर, 2019 को पूरे उत्तर प्रदेश के शिक्षक 'प्रेरणा ऐप' को दुष्प्रेरणा ऐब यानी बुरी नीयत से जबरन सेल्फी-प्रशासन लागू करने की कोशिश मानते हुए विरोध-प्रदर्शन एवं धरने पर रहे!  शिक्षकों का मानना है कि तथाकथित 'प्रेरणा' ऐप अमेरिकी सर्वर द्वारा संचालित एक ऐसा असुरक्षित ऐप है जिसका परिणाम शिक्षकों को गैर-ज़िम्मेदार, कामचोर, लापरवाह, अनुशासनहीन आदि सिद्ध करके उनका वेतन काटना, अनुपस्थित दिखाकर दंडित करना, नौकरी से बर्खास्त करना आदि होना है।  पिछले कुछ समय से शिक्षकों को फंसाने के इस तरह के हथकण्डे अपनाए जा रहे हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है शासन-प्रशासन की नज़र में समाज का जैसे सबसे बड़ा दोषी और नाकारा वर्ग शिक्षकों का ही है! लेकिन अर्थव्यवस्था की खामियों से जूझ रही सरकारों का असल मकसद शिक्षा-व्यय  में  कटौती ही प्रतीत होता है! शायद इसीलिए शिक्षकों की नौकरी मांग रहे न केवल लाखों बेरोजगार नौजवान बल्कि किसी तरह नौकरी पा गए शिक्षक भी उसे बोझ की तरह लग रहे हैं!...