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शिक्षक हैं तो...सिखाइए!


                                    शिक्षक हैं तो 
                        और सीखिए, और सिखाइए!

                                                - अशोक प्रकाश



           जीवन एक संघर्ष है और इस संघर्ष को जितना ही मानव-सभ्यता के संघर्ष से जोड़कर हम देखते हैं, उतना ही यह मजेदार लगता है। हमारी तकलीफ़ भी सिर्फ़ हमारी नहीं होती। हमें यह भी पता चलता है कि इसे झेलने वाले हम कोई विरले इंसान नहीं हैं!...
          तो फिर इस पर इतना हायतौबा करते हुए जीना कैसा?...

         दरअसल, यह जीवन एक विराट और न ख़त्म होने वाली यात्रा की तरह है। यह यात्रा मानव-सभ्यता की विकास-यात्रा है। एक इंसान को  इस यात्रा को हमेशा ही बेहतर और सुखद बनाने की कोशिश करना चाहिए!

        हम इस संसार को जितना बेहतर देख, जान, समझ सकेंगे उतना बेहतर जी सकेंगे, इसे और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकेंगे। तो इस संसार को ज़्यादा से ज़्यादा देखिए, जानिए, समझिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में साझा कीजिए!...ध्यान रखिए कि इसमें निरंतर कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ मनोरंजक, कुछ चिंतन-चेतना को बढ़ाने वाला हो!

          और हाँ, विधि-विधान की सीमा में रहिए लेकिन अफसरशाही, ठलुआ नेतागीरी और धनपशुओं के रंगों-रुआब को बिल्कुल तवज़्ज़ो न दीजिए!...न गलत करिए, न गलत लोगों को घास डालिए! दुनिया में अभी भी भले और मेहनती लोगों की कमी नहीं है!...लेकिन अन्याय, अत्याचार, शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ़ उठ खड़े होने वालों की कमी है!

          इसलिए आपकी जरूरत है, आपकी ईमानदारी और ईमानदारी के लिए आपके संघर्ष की जरूरत है! आप जानते हैं कि दुनिया लाख बुरी हो पर हमारे पूर्वजों के समय से बेहतर है। गुलामी की दुनिया, दासयुग, सामंतयुग से बेहतर है। राजाओं, बादशाहों की उस दुनिया से हम बेहतर दुनिया में जी रहे हैं जहाँ एक सिरफिरे राजा-बादशाह की ज़बान ही कानून होती थी, उसी के एक आदेश पर लोगों के सर कलम हो जाते थे, लोगों के सर हाथियों से कुचलवा दिए जाते थे, लोग दीवारों में चुनवा दिए जाते थे।...ऐसा नहीं कि इस तरह के या इस जैसे अत्याचार अब नहीं होते, पर होते हैं तो उनके खिलाफ़ लोग भी उठ खड़े होते हैं, निज़ाम भी बदलते हैं, अत्याचारियों को भी सजाएं होती हैं, वे भी मारे जाते हैं।

            तो अगर आप शिक्षक हैं या वेतन बिना पाए समाज को शिक्षित करने वाले, उसे सिखाने-पढ़ाने वाले व्यक्ति हैं तो इतिहास को, मानव-सभ्यता के विकास को हमेशा याद रखिए, लोगों को याद दिलाइए, उन्हें सच्चाई और न्याय के पक्ष में खड़े होने का महत्त्व बताइए, उन्हें यह अहसास दिलाइए कि अन्ततः अन्यायी-अत्याचारी ही हारे हैं, सत्य-बंधुत्व-समता-समानता के लिए संघर्ष करने वाली जनता ही जीती है। समय चाहे जितना लगा हो! आप सब भी जीतेंगे। समय चाहे जितना लगे।...
   
             दुनिया पीछे नहीं  लौटेगी!...
 
                                      ★★★★★
                            

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