साँप को दूध पिलाना मुहावरा ही सही है! जी, हाँ! मुहावरे और कहावतें अज्ञानता की भी प्रतीक होती हैं। इसलिए उन्हें आप्त-वाक्य मानकर जो लोग बार-बार अपनी किसी बात को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें 'सांप को दूध पिलाना' मुहावरे पर ठीक से विचार करना चाहिए। क्योंकि क्या आप जानते हैं कि साँप दूध नहीं पीते और जबर्दस्ती उन्हें दूध पिलाने से उनकी मौत भी हो जाती है? सांप वे रेंगने वाले जीव हैं जो दूध, शाक-सब्जी नहीं खाते, न ही वे कोई शाकाहारी देवी-देवता हैं। साँप मांसाहारी होते हैं और जमीन पर चलने वाले दूसरे जीवों जैसे चूहा, मेढक, छिपकली व अन्य कीड़े-मकोड़ें खाकर जीवन-यापन करते हैं। उन्हीं की खोज में कभी-कभी वे मनुष्यों, नेवलों आदि के संपर्क में आने के कारण आकर अपनी जान भी गँवा बैठते हैं। हमारा देश धर्मप्राण देश माना जाता है। इस कारण जीवन के हर क्षेत्र में यहाँ धर्म की पैठ है। कभी-कभी तो धर्म के नाम पर लोग अधर्म भी कर जाते हैं। इन्हीं में से एक अधर्म हैं साँप को दूध पिलाना और दूसरा अधर्म है साँप को अपना दुश्मन मानकर उसकी जान के पीछे पड़ जाना। दरअसल,
CONSCIOUSNESS!..NOT JUST DEGREE OR CERTIFICATE! शिक्षा का असली मतलब है -सीखना! सबसे सीखना!!.. शिक्षा भी सामाजिक-चेतना का एक हिस्सा है. बिना सामाजिक-चेतना के विकास के शैक्षिक-चेतना का विकास संभव नहीं!...इसलिए समाज में एक सही शैक्षिक-चेतना का विकास हो। सबको शिक्षा मिले, रोटी-रोज़गार मिले, इसके लिए जरूरी है कि ज्ञान और तर्क आधारित सामाजिक-चेतना का विकास हो. समाज के सभी वर्ग- छात्र-नौजवान, मजदूर-किसान इससे लाभान्वित हों, शैक्षिक-चेतना ब्लॉग इसका प्रयास करेगा.