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तब, जब तुम नहीं थे!

                  अंधेरा ही रोशनी है! लगभग पाँच हजार साल पहले की बात है!...शायद उससे भी पहले की! तब, सब जगह जंगल ही जंगल हुआ करता था! घना जंगल, वैसा ही जैसा अबूझमाड़!..या उससे भी घना, उससे भी ज़्यादा अबूझ! शायद अमेज़न के अभेद्य जंगलों की तरह..! या शायद उससे भी ज़्यादा अभेद्य! जंगल के बीच से नदियाँ बहते हुए निकलती थीं~ कल-कल निनादिनी नदियाँ!..भयावह नदियाँ!..तरह-तरह के विस्मयकारी प्राणियों वाली नदियाँ! पूरा जंगल संगीतमय होता था। पक्षी ही नहीं, तरह-तरह की वनस्पतियाँ, पेड़-पौधे, कीट-पतंगे तरह की ध्वनियां निकालते, सब कुछ मिलकर संगीत बन जाता! जीवन का संगीत! पक्षी, पशु इस प्राकृतिक अभयारण्य में निर्भय विचरण किया करते थे। चारागाह की कमी होने का सवाल ही नहीं था। पक्षियों, पशुओं और मनुष्यों के लिए जंगल न जाने कितने प्रकार के खाद्य, चूस्य, पेय रस प्रदान करता था। एक से बढ़कर एक स्वाद!   संसार के सर्वोत्तम चरागाह में, जंगल में मंगल ही मंगल था! सब कुछ धीरे-धीरे प्राकृतिक रूप से चलता था, यही संसार था। मनुष्यों का भी, पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं, चित्र-विचित्र वनस्पतियों- पौधों, फूलों, फलों का भी!...हरा-भरा थ

नरक की कहानियाँ: ~ इक मुट्ठी आसमां

                   इक मुट्ठी आसमां             चाँद छुपता क्यों नहीं?           ट्रेन के बाहर मौसम बड़ा खुशगवार था। खिड़की से पूनम का चाँद यात्रियों के साथ-साथ चलता नज़र आ रहा था। चलते हुए चाँद का खिड़की के पास बैठा एक यात्री वीडियो बनाने लगा। दिल्ली से गाड़ी चले आधा घण्टा हो चुका था और आरक्षित डिब्बे के यात्री जबरन घुस आए डेली पैसेंजरों से एडजस्ट कर चुके थे। कुछ यात्री अभी भी खडे थे किंतु अधिकांश डिब्बे में पहले से बैठे यात्रियों से सटकर इधर-उधर की बातों में मशगूल हो रहे थे। एक पहले से बैठा यात्री अभी एक जबरन घुसे यात्री से उलझा रहा था। इन दोनों को झगड़ते देख अब तक खामोश बैठा एक यात्री बोल उठा- 'अरे यार, आप दोनों चुप हो जाओ, बेकार में तू-तू मैं-मैं करने से क्या फ़ायदा?... आखिर जाना सबको है। भाई साहब रेवाड़ी उतर जाएँगे, तब लेट जाना आप अपनी सीट पर!..'           यह सुनकर आरक्षित बर्थ का आदमी मुँह बनाते हुए चुप हो गया। उलझ रहे डेली पैसेंजर ने भी थोड़ा खिसकते हुए उसे और जगह दे दी। दो बर्थों पर तीन महिलाएं भी डेली पैसेंजर के रूप में बैठीं थीं और ऐसा लगता था तीनों किसी दुकान में काम करतीं हों

नरक की कहानियाँ: 3~ महात्मा के कारनामें!

नरक की  कहानियाँ :  दो:                      महात्मा नहीं परमात्मा!. .                     (कॉमा अपने आप लगा लीजिए) 【 पिछले अंश में  आपने महात्माजी का संक्षिप्त परिचय पाया था। आपने जाना था कि महात्माजी कोई साधारण आदमी नहीं हैं। उनके बारे में तरह-तरह की धारणाएँ हैं~ कि वे पहुँचे हुए आदमी हैं, धूर्त हैं, सीआईए के एजेंट हैं...आदि-आदि। लेकिन तब सब चौकन्ने हो गए जब महात्माजी ने कहा कि  "सावधान कर रहा हूँ, बैंक में रखा अपना सारा पैसा निकाल लो! बैंक में रखा पैसा अब सुरक्षित नहीं रह गया है!. ." अब आगे.. 】 ~~~          "क्यों?..क्यों महात्माजी? हम तो बैंक में पैसा सुरक्षित रखने के लिए ही डालते हैं और आप कह रहे हैं कि वहाँ पैसा रखना सुरक्षित नहीं रह गया है!"..                                                                         मुझे दो दिन पहले रग्घूचचा की बात ध्यान हो आई। उन्होंने कहा था कि महात्मा पर कभी विश्वास न करना, पूरा रँगा सियार है। चोरों से मिला हुआ है और इसका असली काम ठगी है। महात्मई भेस धारन किए घूमता है लेकिन लोगों को लुटवाता हैं। लुटेरे इसे कमीसन देते हैं!.

तो महात्माजी से परिचित नहीं हैं आप?

स्वर्ग की कहानियाँ :   एक:                 महात्माजी : परिचय         मतलब, आप भी जान लीजिए! महात्माजी कभी झूठ नहीं बोलते!.... यह अलग बात है कि आम लोग उनकी भाषा नहीं समझते और अर्थ का अनर्थ करते हैं। महात्माजी के प्रवचनों को सुनने और समझने वाले प्रायः तीन प्रकार के लोग हैं। पहले नम्बर पर वे लोग हैं जो उनका मंतव्य समझ नहीं पाते और उनकी सत्यवादिता को मिथ्या-प्रलाप मान लेते हैं। ऐसे लोगों को आप उनका विरोधी या उनसे जलने वाला मान सकते हैं। दूसरी तरह के वे लोग हैं जो उनके मुखारविन्द से निकले वचनों का सही-सही अर्थ जानते हैं और इसे भविष्यवाणी मानकर सावधान हो जाते हैं। ऐसे लोग महात्माजी को कबीरदास के समकक्ष मानते हैं और कहते हैं- 'कबीरदासजी की उल्टी बानी, बरसै कम्बल भीजै पानी।' लेकिन सबसे समझदार तीसरी तरह के लोग हैं जो एक न एक दिन खुद भी महात्माजी जैसा बनने का सपना पालते हैं। उन्हें जन सामान्य भक्त कहता है लेकिन अपने करतबों से ऐसे लोगों ने दिखा दिया है कि वे भक्त नहीं बल्कि महात्माजी के सहभागी हैं। अक्सर ऐसे लोग फ़ायदे में ही रहते देखे जाते हैं। लेकिन इस तीसरे वर्ग में एक उपवर्ग भी ह

क्या राजा नंगा है?..

                            देखो, राजा नंगा है!.. एक देश में एक राजा हुआ करता था। उसको नये-नये प्रयोग करने का शौक था। सारे प्रयोग वह अपनी प्रजा और अपने कर्मचारियों पर करता था। एक दिन उसने एक खाई खुदवाई और उसमें आग के अंगारे दहकाये। इसके बाद उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि सभी को इन अंगारो पर से गुजरना है इन अंगारों जो गुजर जाएगा, उसकी नौकरी बची रहेगी। अगर कोई अंगारो से गुजरते हुऐ मर जायेगा तो उसको पचास लाख का मुआवजा मिलेगा।  लेकिन जो अंगारो से गुजरने से मना कर देगा उसको नौकरी से निकाल दिया जाएगा।  कर्मचारियों ने मजबूर होकर राजा के आदेश को माना और दहकते हुये अंगारो से गुजरना शुरू किया। बड़ी मुश्किल से कुछ लोग पार कर पाये। मगर पर करते समय कुछ लोगों के पैर जल गये, कुछ फिसल गये तो उनके हाथ-मुँह सब जल गये। कुछ उसी आग में गिर गये जिनको घसीट कर निकाला गया।  किन्तु इनमें से तीन लोग उसी आग में भस्म हो गये जिनको आग से बचाने में लोग नाकाम रहे। इस प्रयोग के दो-चार दिन बाद जो लोग उस आग से झुलस गये थे उनकी जिन्दगी नरक बन गयी । एक-एक कर लोग दम तोड़ने लगे और दम तोड़ने का सिलसिला इतना बढ़ा की मरने वा