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नरक की कहानियाँ: ~ इक मुट्ठी आसमां

                 इक मुट्ठी आसमां

            चाँद छुपता क्यों नहीं?

          ट्रेन के बाहर मौसम बड़ा खुशगवार था। खिड़की से पूनम का चाँद यात्रियों के साथ-साथ चलता नज़र आ रहा था। चलते हुए चाँद का खिड़की के पास बैठा एक यात्री वीडियो बनाने लगा। दिल्ली से गाड़ी चले आधा घण्टा हो चुका था और आरक्षित डिब्बे के यात्री जबरन घुस आए डेली पैसेंजरों से एडजस्ट कर चुके थे। कुछ यात्री अभी भी खडे थे किंतु अधिकांश डिब्बे में पहले से बैठे यात्रियों से सटकर इधर-उधर की बातों में मशगूल हो रहे थे। एक पहले से बैठा यात्री अभी एक जबरन घुसे यात्री से उलझा रहा था। इन दोनों को झगड़ते देख अब तक खामोश बैठा एक यात्री बोल उठा- 'अरे यार, आप दोनों चुप हो जाओ, बेकार में तू-तू मैं-मैं करने से क्या फ़ायदा?... आखिर जाना सबको है। भाई साहब रेवाड़ी उतर जाएँगे, तब लेट जाना आप अपनी सीट पर!..'

          यह सुनकर आरक्षित बर्थ का आदमी मुँह बनाते हुए चुप हो गया। उलझ रहे डेली पैसेंजर ने भी थोड़ा खिसकते हुए उसे और जगह दे दी। दो बर्थों पर तीन महिलाएं भी डेली पैसेंजर के रूप में बैठीं थीं और ऐसा लगता था तीनों किसी दुकान में काम करतीं हों! तभी एक लगभग सत्तर साल का साँवला सा छरहरा आदमी आया और दो औरतों के बीच बैठने लगा। आशंका के विपरीत दोनों ने उसे बीच में ही जगह दे दी। थोड़ी देर में वे तीनों ऐसे बतियाने लगे जैसे वे पहले के ही अरचित-परिचित हों!

        खिड़की के बाहर चाँद देखते हुए एक महिला ने दूसरी से कहा- 'आजकल कुछ पहनकर निकलना खतरे से खाली नहीं!...खिड़की से कब कोई छिनैत झपट्टा मार दे पता नहीं!'

         दूसरी ने पहली की हाँ में हाँ मिलाया- 'एक दिन मेरे सामने ही मोबाइल में मशगूल एक आदमी से एक चोर ऐसे मोबाइल छीन ले गया जैसे उसी ने चोर को अपना मोबाइल दे दिया हो!..'

         तीसरी महिला ने भी समर्थन करते हुए एक दूसरे पक्ष का उद्घाटन किया- 'तुम लोगों ने एक वाइरल वीडियो देखा कि नहीं कि कैसे एक आदमी ने झपट्टा मारने की कोशिश करते एक चोर का हाथ पकड़कर ट्रेन की खिड़की से पंद्रह किलोमीटर तक उसे लटकाए रखा! चोर चिल्लाता रहा मगर बन्दे ने हाथ न छोड़ा।...'

         दो झगड़ते यात्रियों को चुप कराने वाले यात्री ने मसले पर अपनी राय कुछ इस तरह रखी- 'मेरी पत्नी तो इसीलिए कभी कोई गहना पहनती ही नहीं!..'

         "पहनती तो सब हैं लेकिन आजकल नकली गहने पहन कर निकलने लगे हैं लोग!...छिनैती-फिनैती से कोई गम नहीं!" यात्री महिला ने कहा।

         अभी-अभी आए दो महिलाओं के बीच बैठे आदमी ने बहस छेड़ी- "गहना तो स्त्रियों का श्रृंगार है!...कम से कम बिछुआ तो पहनती होंगी आपकी मैडम जी?.."

         "पता नहीं, मैं कभी किसी गहने पर ध्यान नहीं देता! गहना मुझे फालतू चीज लगती है!.." गहना को बेकार बताने वाले यात्री ने कहा।

         "आपको पहनने के लिए कौन कह रहा है। बात तो आपकी मैडम के गहने पहनने की है!..."  सत्तर साला आदमी के बगल बैठी महिला ने कुछ-कुछ मजाकिया अंदाज में कहा। 

         " सच बताऊँ मैडमजी तो महिलाओं का गहना पहनना मुझे गुलामी लगता है!.. लोग कहते हैं गहना पहनकर महिलाएं सुन्दर लगती हैं। अगर ऐसा है तो महिलाओं से ज़्यादा पुरुषों को गहना पहनना चाहिए। काली-सफेद मूँछ-दाढ़ी वाले पुरुष इससे शायद कुछ ज़्यादा सुन्दर लगने लगे।

         यह बात सुनकर डिब्बे में बैठे यात्रियों का ठहाका गूँज उठा। झगड़ रहे दोनों यात्री भी एक-दूसरे की ओर देख मुस्कराने लगे।

         "ऐसा नहीं है भाई! गहना तो महिलाओं की खूबसूरती बढ़ाने वाला उनका श्रृंगार है!.. उन पर ही फबता है!.."

         "मेरे विचार से गहना खूबसूरती बढ़ाने वाला हो न हो बड़े होने का दिखावा जरूर है। जिनके पास जितना पैसा होता है, उनकी औरतें उतना ही ज़्यादा गहनों से लद-फद कर निकलती हैं!" 

         आदमी की यह बात ज़्यादातर औरतों को अच्छी नहीं लगी। आदमियों को भी अच्छी नहीं लगी, उनके चेहरे देखकर लग रहा । एक ने गेट के पास खड़े एक दुबले-पतले युवक की ओर इशारा कर कहा- "उधर देखिए, उस लड़के ने भी कान के ऊपरी हिस्से में बाली पहन रखी है!.."      (आगे..)

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