अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में
भूमि-अधिग्रहण
~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़
शुरुआत:
पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।
सब्ज़बाग़:
इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित गाँवों के निवासियों, जिनकी आजीविका का एकमात्र साधन किसानी है, उनमें हड़कंप मच गया। एक तरफ प्राधिकरण, सरकार के अधिकारी और नेता अखबारों व अन्य संचार माध्यमों, सार्वजनिक मंचों से ग्रामीणों और शहर के निवासियों को 'ग्रेटर अलीगढ़ योजना' के विकास के सब्ज़बाग दिखाने में जुट गए तो दूसरी तरफ प्रभावित गाँवों के किसान और अन्य ग्रामीण उनकी खेती और घरबार कैसे बचे, इस उधेड़बुन में लग गए। अधिकारियों और विशेषकर भाजपा के नेताओं द्वारा अयोध्या के बाद इसे ऐसी दूसरी स्वर्णिम योजना के रूप में प्रचारित किया जाने लगा जिसे रामराज्यमय बनाना था। योजना के प्रचारों के अनुसार 'ग्रेटर अलीगढ़' नामक इस 'नए शहर' में इसके बीचो-बीच श्रीराम की भव्य ऊँची मूर्ति, रामभक्ति को समर्पित 10 हजार आवासीय प्लाट, इसके 32 सेक्टरों में द्रोणगिरि सिटी, रामनगरी आवासीय सेक्टर, सीतामढ़ी आवासीय सेक्टर, रामसेतु लेक सिटी, संगम एरिया, जनकपुरी कामर्शियल सेंटर, किष्किंधा स्पोर्ट्स सिटी, अशोक बाटिका बाटेनिकल गार्डन, पंचवटी एजुसिटी, दंडकारण्य एजुसिटी, पंचवटी फनसिटी आदि धार्मिक-आस्था और कॉरपोरेटी-विश्वास को जीवंत किया जाना है।
विरोध:
स्वाभाविक तौर पर जिन किसानों और ग्रामीणों के किसानी-जीवन की कीमत पर यह स्वर्ग प्रचारित हो रहा था, उसमें उन्हें अपने नरक के लक्षण दिखाई दे रहे थे। वे इसके प्रतिरोध और प्रतिकार में संगठित होने लगे। किसान रक्षा दल, ग्रेटर अलीगढ़ योजना प्रभावित किसान मोर्चा जैसे संगठन बने जिन्हें अलीगढ़ संयुक्त किसान मोर्चा ने समर्थन और सहयोग देना शुरू किया। लगातार प्रभावित गाँवों में किसानों की बैठकों के बाद अलीगढ़ के जिलाधिकारी कार्यालय के समीप राजा महेंद्र प्रताप सिंह पार्क में संयुक्त सभा की गई। सभा में भारी संख्या में ग्रामीणों ने शिरकत की। सैकड़ों किसानों ने कई बार 'मेरा खेत, मेरा मेवाड़', 'खेती हमारी रोजी-रोटी', 'हम बैनामा, नहीं करेंगे', ' ग्रेटर अलीगढ़ के नाम पर हमारी सिंचित बहु-फसली उपजाऊ जमीन उजाड़ना बंद करो!', 'जान देंगे, जमीन नहीं देंगे', 'कौन बनाता हिंदुस्तान, भारत का मजदूर-किसान' आदि तख्तियाँ और बैनर लेकर विरोध स्वरूप धरना-प्रदर्शन किया, ज्ञापन दिया।
लेकिन जिस तरह की भावनाएं, सब्ज़बाग, क्षोभ और आक्रोश शासकों-नेताओं और आमजनता~ किसानों-मजदूरों में प्रकट हो जाता है, वैसा कुछ औपनिवेशिक-शिक्षा से संपुष्ट सुचिंतित योजनाकारों के लिखितों और कथितों में नहीं होता। वहाँ महीन-मार मारी जाती है जिसका सामना करना अशिक्षित-अर्धशिक्षित बनाए रखी गई खासकर ग्रामीण आबादी के लिए आसान नहीं होता! यहाँ भी यही हुआ, यही हो रहा है!...
असल मुद्दा और मुद्दई:
पूरे देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में जिस तरह उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण के अंतरराष्ट्रीय तिकड़म और कॉरपोरेटी-मायाजाल में विशेषकर प्राकृतिक संसाधनों~ कृषिभूमि, खान-खदान, जल, जंगल को हथियाने के लिए हमला बोला गया है, उसी का एक उदाहरण 'ग्रेटर अलीगढ़ योजना' के नाम पर अलीगढ़ की ग्रामीण आबादी पर बोला गया महीन-मार वाला यह हमला भी है। इसके पहले अलीगढ़ में यमुना एक्सप्रेस-वे के लिए ले ली गई जमीन को बचाने की कोशिश के लिए मशहूर 'टप्पल किसान आंदोलन' हुआ था। इसके हिंसक हो जाने के चलते चार लोगों की जान चली गई थी। बाद में निकट ही भट्ठा पारसौल की घटनाएं हुईं। इन तथा ऐसी देश भर में अनेक घटनाओं के बाद बनाया गया 'भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013' किसानों और ग्रामीणों को कुछ राहत देता है। लेकिन प्रांतीय सरकारें और उनके अधीन प्राधिकरण/निकाय इसकी तोड़ निकालने की जुगत बनाकर ग्रामीण-जनता को ठगी-सी महसूस करने के लिए विवश कर देते हैं। अलीगढ़ में भी किसानी की बेशकीमती जमीन हथियाने के लिए ऐसा ही किया जा रहा है।
अंतर्विरोध और सवाल:
(1) सबसे पहले 'भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013' (2013 का अधिनियम संख्यांक 30, 26 सितम्बर, 2013) को प्रकाशित गज़ट में इस अधिनियम की पूरी शब्दावली को देखें:
"उद्योगीकरण, अनिवार्य अवसंरचनात्मक सुविधाओं के विकास और नगरीकरण के लिए भू-स्वामियों तथा अन्य प्रभावित कुटुम्बों को कम से कम बाधा पहुंचाए बिना भूमि-अर्जन के लिए मानवीय, सहभागी, सूचनाबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया, संविधान के अधीन स्थापित स्थानीय स्वशासी संस्थाओं और ग्राम सभाओं के परामर्श से, सुनिश्चित करने तथा उन प्रभावित कुटुम्बों को, जिनकी भूमि का अर्जन किया गया है या अर्जन किए जाने की प्रस्थापना है या जो ऐसे अर्जन से प्रभावित हुए हैं, न्यायोचित और ऋजु प्रतिकर देने और ऐसे प्रभावित व्यक्तियों के लिए, उनके पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनिवार्य भूमि अर्जन का समुच्चय परिणाम ऐसा होना चाहिए कि प्रभावित व्यक्ति ऐसे विकास में भागीदार बनें जिससे अर्जन के बाद की उनकी सामाजिक और आर्थिक प्रास्थिति में सुधार हो सके, तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का पर्याप्त उपबन्ध करने के लिए अधिनियम"
लेकिन, दरअसल~
★ ग्रेटर अलीगढ़ योजना' के नाम से बसाई जाने वाली इस सिटी से ग्रामीण आबादी का कोई 'मानवीय' सरोकार नहीं सिद्ध होता, वे अपने खेत-खलिहान खोकर परकटे पक्षी की तरह होने को मजबूर होंगे। खेती-किसानी की जिस संस्कृति में यह आबादी रची-बसी है, उसके लिए दिखाए जा रहे हवाई सब्ज़बाग का कोई मतलब नहीं।
★ इस योजना के लिए 'ग्राम सभाओं' की कोई बैठक नहीं हुई जिसमें ग्रामीण अपना 'परामर्श' दे सकते।
(2) भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 के अध्याय-1 के अनुच्छेद (2-1) के प्रावधानों के अनुसार ग्रेटर अलीगढ़ योजना का उद्देश्य न तो 'पब्लिक सेक्टर उपक्रमों के लिए' और न ही 'लोक प्रयोजन के लिए' की परिधि में आता है। 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप' विकसित करने का घोषित उद्देश्य गाँवों और ग्रामीण आबादी को उजाड़कर सिद्ध होता भी हो तो वह नया शहर बसाने के तथाकथित 'लोक हित' से ज़्यादा 'ग्रामीणों का अहित' करता है।
(3) भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 की धारा-2 (2) के उपबन्धों के तहत कुटुम्बों/हित-धारकों की पूर्व-सहमति के बिना प्राधिकरण द्वारा भूमि क्रय/अर्जन करने का कोई प्रावधान नहीं है किंतु इस योजना में उनकी असहमति/आपत्ति पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। प्रश्नगत योजना के तहत 850 परिवारों की लगभग 335 हेक्टेयर जमीन लेने की घोषणा हुई है। इन 850 परिवारों में से 612 परिवारों द्वारा लिखित में असहमति/आपत्ति दर्ज कराई गई। इसके बावजूद येनकेन प्रकार से जिसमें गाँव में जाकर ग्रामीणों को धमकाना, ललचाना, दबाव बनाना आदि भी शामिल है, जमीन हथिया लेने की कोशिशें जारी हैं। ऐसे में इस धारा के तहत कम से कम 70/80 प्रतिशत परिवारों की 'पूर्व-सहमति' का सवाल ही नहीं है।
(4) भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 के अध्याय-1 के अनुच्छेद-3 के प्रावधान (ग -2) के अनुसार कृषि-श्रमिकों, ग्रामीण मजदूरों, भूमिहीनों के पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के लिए ग्रेटर अलीगढ़ योजना में कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं है।
(5) भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 के अध्याय-3 (खाद्य सुरक्षा के रक्षोपाय के लिए विशेष उपबन्ध) के अनुच्छेद 10(1) के अनुसार 'इस अधिनियम के अधीन सिंचित बहु-फसली भूमि का अर्जन नहीं किया जाएगा।' किंतु ग्रेटर अलीगढ़ योजना की भूमि सिंचित भी है और बहु-फसली भी। इस योजना की कोई अपरिहार्यता भी नहीं! क्योंकि पहले ही अलीगढ़ के विकास के नाम पर जमीनें ली जा चुकी हैं! अलीगढ़ को 'स्मार्ट-सिटी' का तोहफ़ा मज़ाक का विषय बन चुका है! दूसरे, अलीगढ़ शहर के हाई-वे से दो किलोमीटर और निर्माणाधीन जेवर अंतरराष्ट्रीय एअरपोर्ट से 40 किलोमीटर दूर यह भूमि सिंचाई के भरपूर साधनों जैसे अमरपुर रजवाहा, मडराक रजवाहा, लोधा माइनर, हरिदासपुर माइनर एवं सरकारी नलकूपों 6AG, 7AG, 8AG, 71AG, 75AG के साथ निजी नलकूपों द्वारा सिंचित क्षेत्र के रूप में आच्छादित है। यहाँ के किसानों द्वारा वर्ष में तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं। यहाँ किसान साल भर में गेहूँ, धान, मक्का, बाजरा, मूँग, उड़द, मटर, मोठ, चना, ईख आदि की खेती करते हैं। साथ ही आम, जामुन, अमरूद, बेर, बेल, नींबू आदि फलों तथा आलू, गोभी, टमाटर, बैगन, मूली, पालक आदि अनेक सब्जियों का उत्पादन भी करते हैं। इसके साथ दूध व्यवसाय के लिए पशुपालन के अलावा अन्य उपयोगी पशुओं से किसान और अन्य ग्रामीण अपनी आजीविका चलाते हैं।
(6) भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 के अध्याय-4 की धारा -26 के तहत भूमि के सर्किल रेट/बाज़ार मूल्य के निर्धारण का प्रावधान है। किंतु प्रश्नगत योजना क्षेत्र में गत कई वर्षों से सर्किल रेट ही नहीं बढ़ाया गया है। ऐसे में किसान परिवारों उनकी जमीन की समुचित कीमत मिलना संभव नहीं है।
(7) भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 के अध्याय -5 (पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन अधिनिर्णय) की धारा 41-9 के अनुसार "अनुसूचित जाति के सदस्यों की भूमियों का तत्समय प्रवृत्त विधियों और विनियमों की अवहेलना करके किया गया कोई अन्यसंक्रामण अकृत और शून्य माना जाएगा..", किंतु प्रश्नगत योजना में अनुसूचित जाति के सदस्यों को अंत्योदय आदि कार्यक्रमों में मिले पट्टों को खारिज़ कर देने की धमकी देकर उनकी भूमि को क्रय कर लेने का प्रयास जारी है। ऐसे में उनके पुनर्वासन की कोई भी प्रक्रिया निरर्थक सिद्ध होनी है।
(8) इस योजना का दुःखद पहलू यह भी है कि ग्रामीणों से जमीन 'भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013' के प्रावधानों के अनुसार 'अधिग्रहण' करने के स्थान पर उनसे 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' करने के नाम पर जमीन 'क्रय' की जा रही है। इस क्रय-प्रक्रिया पर भी किसान दलालों और प्रॉपर्टी-डीलरों की भूमिका देख किसान/ग्रामीण सशंकित हैं। विशेषकर, कमजोर तबके के लोग, महिलाएं और अनुसूचित जाति के सदस्य।
मुश्किल निवाला:
जिन लोगों को ऐसी परिस्थितियों को झेलना नहीं पड़ा है उनके लिए यह समझना मुश्किल है कि कल की चिंता में उत्तर प्रदेश के अलीगढ जिले के ये किसान किस तरह रात-दिन काट रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके बाप-दादा की न जाने कितने वर्षों से चली आ रही यह जमीन न जाने कब हमेशा के लिए छिन जाए। महीनों से अटलपुर गाँव में धरनारत किसान अब खुद को बचाने की बेबसी से घिरे पा रहे हैं। उनके लिए गले के नीचे उतरने वाला हर निवाला एक मुश्किल निवाला बनता जा रहा है। अपने लहलहाते खेतों को देखना उनके लिए जैसे हमेशा के लिए बिछड़ जाने वाले बच्चों को देखने की तरह है। इसे न अधिकारी समझ रहे, न कोई सरकार!
★★★★★★
सभी को जागरुक होना पड़ेगा । इस तरह के कार्यों से खेती योग्य भूमि का अन्त हो जायेगा ।
ReplyDeleteजी, कॉरपोरेट और उनके हितैषियों का मायाजाल बहुत बड़ा है!..
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