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हिन्दी काव्य के आधार: विद्यापति, गोरखनाथ, अमीर खुसरो, कबीर एवं जायसी

                              हिन्दी काव्य  कोरोना-काल के चलते विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में भौतिक रूप से कम कक्षाएं चल पाने के चलते विद्यार्थियों के सामने पाठ्यक्रम पूरा करने की चुनौती तो है ही। साथ ही परीक्षा-उत्तीर्ण करने से ज़्यादा बड़ी चुनौती पूरे पाठ्यक्रम को आत्मसात करने की  है। क्योंकि पता नहीं कि परीक्षाएँ ओएमआर सीट पर वस्तुनिष्ठ हों या विस्तृत-उत्तरीय? विद्यार्थी इस चुनौती का सामना कैसे करें, इसके लिए यहाँ कुछ तरीके बताए जा रहे हैं। इसके पहले के लेख में विद्यार्थियों को समय-सारिणी बनाकर अध्ययन करने की आवश्यकता बताई गई थी। जो विद्यार्थी ऐसा कर रहे होंगे उन्हें इसके लाभ का अनुभव जरूर मिल रहा होगा। यहाँ  आदिकालीन हिन्दी के तीन कवियों- विद्यापति, गोरखनाथ एवं अमीर खुसरो तथा निर्गुण भक्ति काव्य के दो कवियों- कबीर एवं मलिक मोहम्मद जायसी के महत्त्वपूर्ण एवं स्मरणीय बिंदुओं को रेखांकित करने का प्रयास किया जा रहा है। वस्तुतः ये ही हिन्दी विशाल हिन्दी काव्यधारा के आधार कवि हैं जिनकी भावभूमियों पर ...

गोरखनाथ का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पद

     नाथ सम्प्रदाय                          https://youtu.be/8v9W0acjctQ गोरखनाथ की रचनाएं ' गोरखनाथ का पद- ' मनसा मेरी व्यौपार बांधौ...'                                 पद का तात्पर्य एवं                                           व्याख्या: यह कविता नाथ सम्प्रदाय के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवि गुरु गोरखनाथ के प्रसिद्ध पदों में से एक है। इस पद को डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल द्वारा 'पद ' शीर्षक रचना में स्थान दिया गया है। कविता में  गुरु गोरखनाथ ने अपनी साधना-पद्धति का पक्ष-पोषण करते हुए मन की इच्छाओं को साधनारत होने के लिए कहा है। इसमें वे अपने मन को ही संबोधित करते हुए उसे योग साधना में लीन होने तथा  प्रकारांतर से समस्त मनुष्यों को  सांसारिक मायाजाल से दूर रहने का उपदेश देते हैं।         ...

नाथ-सम्प्रदाय और गुरु गोरखनाथ का साहित्य

स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र परीक्षा की तैयारी नाथ सम्प्रदाय   गोरखनाथ         हिंदी साहित्य में नाथ सम्प्रदाय और             गोरखनाथ  का योगदान                                                     चित्र साभार: exoticindiaart.com 'ग्यान सरीखा गुरु न मिल्या...' (ज्ञान के समान कोई और गुरु नहीं मिलता...)                                  -- गोरखनाथ नाथ साहित्य को प्रायः आदिकालीन  हिन्दी साहित्य  की पूर्व-पीठिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।  रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल को 'आदिकाल' की अपेक्षा 'वीरगाथा काल' कहना कदाचित इसीलिए उचित समझा क्योंकि वे सिद्धों-नाथों की रचनाओं को 'साम्प्रदायिक' रचनाएं समझत...

जानिए योगियों के नाथ-सम्प्रदाय को

नाथ सम्प्रदाय  और  गुरु  गोरखनाथ              नाथ-सम्प्रदाय: एक परिचय   अगर सिद्धों, नाथों, योगियों की वाणी और उनके क्रिया-कर्मों पर आप ध्यान दें तो वे पूरी तरह भौतिकवाद को महत्त्व देने वाले, पारलौकिक जगत को नकारने वाले प्रतीत होते हैं। वे ऐसे इहलौकिक कवि/विचारक हैं कि मूर्तिपूजा और पाखंड उनके सामने नतमस्तक दिखाई देता है। ये सारे कवि ललकारते हुए अपनी बात को सही 'सिद्ध' करते हैं, शरीर के भीतर ही आत्मा-,परमात्मा का अस्तित्व मानते हैं। इस तरह वे आज के तथाकथित 'हिन्दू' या 'सनातन' विचार के ख़िलाफ़ खड़े होते दिखाई देते हैं जिसे आज पुरजोर लगाकर प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल वे सही मायनों गौतम बुद्ध के अनुयायी हैं जिन्होंने 'सनातन' नहीं, 'परिवर्तन' को परम सत्य माना। दुर्भाग्य से आज गोरखनाथ के तथाकथित शिष्यगण उनके विचारों के उलट काम करने वाले, धार्मिक पाखंडों को बढ़ावा देने वाले हैं।            जानिए ऐसे नाथपंथी महान साहित्यिक विभूतियों का अवदान और विचार कीजिए उनके योग-जोग पर जो विरले ही कहीं दिखता...