Skip to main content

गोरखनाथ का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पद

 


                        https://youtu.be/8v9W0acjctQ

गोरखनाथ की रचनाएं

'गोरखनाथ का पद- ' मनसा मेरी व्यौपार बांधौ...'

                              पद का तात्पर्य एवं                 

                        व्याख्या:

यह कविता नाथ सम्प्रदाय के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवि गुरु गोरखनाथ के प्रसिद्ध पदों में से एक है। इस पद को डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल द्वारा 'पद' शीर्षक रचना में स्थान दिया गया है। कविता में गुरु गोरखनाथ ने अपनी साधना-पद्धति का पक्ष-पोषण करते हुए मन की इच्छाओं को साधनारत होने के लिए कहा है। इसमें वे अपने मन को ही संबोधित करते हुए उसे योग साधना में लीन होने तथा प्रकारांतर से समस्त मनुष्यों को सांसारिक मायाजाल से दूर रहने का उपदेश देते हैं।

              इस कविता में कई पारिभाषिक शब्द हैं। पवन, पुरिष- पुरुष, इला-इड़ा, प्यंगुला-पिङ्गला, सुषमन-सुषुम्ना, कंवल, हंस, पनिहारी, रवि, गङ्गा, सस-शशि, चंद-चन्द्रमा, सुर-सूर्य, गगन आदि शब्द नाथ और योगियों के सम्प्रदाय में अपने प्रचलित अर्थों से अलग एक विशिष्ट पारिभाषिक अर्थ प्रकट करते हैं। पवन है तो साँस या प्राणवायु ही किंतु यहाँ प्राणायाम के साधक से तात्पर्य है। पुरुष का तात्पर्य योगी विशेष यानी साधक है। इला अर्थात् इड़ा नामक मेरुदंड के बाई तरफ चलने वाली विशिष्ट नाड़ी है तथा पिङ्गला दाईं तरफ चलने वाली नाड़ी है। सुषुम्ना इड़ा-पिङ्गला दोनों नाड़ियों के मध्य स्थित प्राणवायु को ऊर्ध्वमुखी करने वाली विशिष्ट नाड़ी है। इसी के माध्यम से कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होती है जो योगियों की साधना का एक लक्ष्य होता है। इस सुषुम्ना नाड़ी को वज्रा, चित्रिणी और ब्रह्मनाड़ी का समन्वित रूप माना जाता है।  कंवल या कमल कोई वास्तविक फूल न होकर चरम साधनावस्था का आनन्दमय प्रतीक है। हंस पक्षी नहीं, योगानुभूति करने वाला विशिष्ट योगी है। पनिहारी कोई वास्तविक पानी भरने वाली स्त्री न होकर नौ सौ नदियों- नाड़ियों का तंत्र है। रवि और शशि इड़ा-पिङ्गला के लिए भी कहा जाता है। गगन वह आकाश है जो कहीं ब्रह्माण्ड में नहीं, मनुष्य के शरीर में ही स्थित सहस्रार चक्र है। इसका स्थान मस्तक के मध्य भाग या शून्य चक्र में माना जाता है। इसे ही कैलाश या गगनमण्डल भी कहा गया है। कुल मिलाकर इस पद में नाथ संप्रदाय के योगियों की विशिष्ट साधना-पद्धति का पारिभाषिक और प्रतीकात्मक शब्दों में निरूपण किया गया है।

            अब कविता के शब्दों से इसके मर्म को समझिए। कवि अपने मन की इच्छाओं को समझाता है- कि 'हे मेरी मन की अनंत इच्छाओं, अब तुम अपने व्यापारों- क्रिया कलापों को बाँधो। देखो, अब यहाँ पवन- प्राण उपन्न हो चुका है। वही असली पुरुष है जो समस्त क्रियाओं को करेगा। प्राणायाम से योगी अब जग चुका है। अब योगी का प्राण-पवन ही इस काया-शरीर रूपी नगर (पाटण) में जाएगा।' योगियों के अनुसार मनुष्य प्राण-पवन के माध्यम से 21600 बार (इकबीस सहंस षटसां आदू) साँस लेता है। इसलिए अब पवन रूपी पुरुष ही जप की मालाएँ फिरायेगा अर्थात् स्वाभाविक रूप से प्राणायाम करेगा। तात्पर्य यह है कि उसे किसी और जप या माला की जरूरत नहीं क्योंकि इड़ा और पिङ्गला नाड़ियाँ सुषुम्ना नाड़ी के साथ रात-दिन इसी काया की प्रणाली में प्रवाहित होती- चलती रहती हैं।

       वह ब्रह्मचारी रूपी योगी छह दल (षडसां) वाले (स्वाधिस्ठानचक्र) के बाद सोलह (षोडि) दल वाले कमल में निरन्तर निवास करता है। वहीं वह प्राण (हंस) रूपी योगी प्रवेश कर फलता-फूलता है जहाँ नौ सौ नाड़ीतंत्र रूपी नदियों में उसकी पनिहारिन रूपी आत्मा निरन्तर सिंचित होती रहती है। हे अवधू, यहीं गङ्गा रूपी इड़ा के तट पर संतुष्टि दायक मतीरा-तरबूज पैदा होता है जिसका जितना चाहो बार-बार व्यापार करो। यहीं पर अधोमुखी बहने वाली इड़ा-चन्द्रा नाड़ी को ऊर्ध्वमुखी करके रवि-पिङ्गला से चंद्रमा का मिलन कराओ। जब सूर्य और चन्द्र अर्थात् इड़ा और पिङ्गला दोनों मिलते हैं यह मायावी दुनिया अंधेरे में चली जाती अर्थात् विलुप्त हो जाती है। इस दुनिया का योगी को अहसास ही नहीं रह जाता। वह साधना में लीन हो जाता है। इस काया की रक्षा करने वाली, अहसास दिलाने वाली पाँच रक्षक ज्ञानेन्द्रियाँ - आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा भी निद्रा में पहुँच-पौढ़ जाती हैं- सो जाती हैं। इसके बाद योग साधना का अंतिम द्वार- प्राकार अर्थात् ऊँची-ऊँची दीवारों वाले महल के प्रवेश द्वार के किंवाड़े-पौलि खुल जाते हैं। 

        इस तरह भले ही योगी का शरीर कंथा-कथरी कपड़ा में दिखता है पर उसका मन ही असली योगी हो जाता है। वह मन अंततः ध्यान-योग की मुद्रा में पहुँच जाता है। गोरखनाथ कहते हैं,  इसी सत्य का मुझे गुरु (मत्स्येंद्रनाथ) ने दर्शन कराया-लखाया, अनुभव कराया है। गोरख का कहना है कि रे मन, अब तू वहीं आरूढ़ रह, चढ़ा रह! वरना यह तो चोरों की नगरी है, इंद्रिय रूपी चोर तुझे ठगने को भली-भांति,  खुलेआम घूम रहे हैं।

           गुरु गोरखनाथ ने इस तरह कई रूपकों के माध्यम से योग-साधनाओं के द्वारा मनुष्यमात्र को माया रूपी नगरी से बचने का संदेश अपने इस प्रसिद्ध पद में दिया है।

         यह वह साधना-पद्धति है जो सामान्य मनुष्य को दुरूह लगती है। इस साधना की उसकी इच्छा ही नहीं होती। इसीलिए उसका मन सामान्य सांसारिक क्रियाओं में लगा रहता है। गोरखनाथ इन सांसारिक क्रियाओं में पूजा-पाठ, जप आदि को भी मानते हैं जिसे साधारण मनुष्य आत्म-शांति या परमात्मा की आराधना के लिए करता रहता है। नाथपंथी योगी सैद्धांतिक रूप में इसे अस्वीकार करते हैं। वे योग-साधना से वास्तविक शांति- मन की शांति सम्भव मानते हैं। इस तरह यह पद आध्यात्मिक और साम्प्रदायिक चिंतन के द्वंद्व का भी एक उदाहरण है। यह द्वंद्व आध्यात्मिक चिंतन को प्रमुखता देने वाले उस दौर की झांकी भी प्रस्तुत करता है जब राजनीतिक तौर पर अनेक राजाओं-महाराजाओं, शाहों-बादशाहों के वास्तविक द्वंद्वों के बीच जन सामान्य को झकझोरा जा रहा था।

                                ★★★★★★★

               online_classes             परीक्षा की तैयारी

Comments

Popular posts from this blog

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और...