Skip to main content

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                     बक्सवाहा जंगल की कहानी


अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं?

लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और कोई सहारा नहीं!..

जी, छतरपुर के बक्सवाहा जंगलों में कुछ ऐसी ही बातें होती हैं। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और उनके मित्र वहाँ के निवासी कुछ ऐसी ही बातें करते हैं।सरकार और कम्पनियाँ उनकी बातें सुन रहे हैं कि नहीं, पता नहीं। पर कुछ लोग हैं जो जंगल के इस दर्द को महसूस कर रहे हैं। 'बक्सवाहा जँगल बचाओ अभियान' के सदस्य और समर्थकगण भी उन्हीं में से हैं।



'बक्सवाहा जँगल बचाओ अभियान' ने एक चिट्ठी इस संदर्भ में राष्ट्रीय हरित अधिकरण, नई दिल्ली के नाम भेजी है। किसान जागृति संगठन के मध्यप्रदेश महामंत्री डॉ. राज कुमार लोधी द्वारा प्रेषित इस चिट्ठी में बक्सवाहा जंगल के संरक्षण का अनुरोध किया गया है। अनुरोध में यह संदर्भ दिया गया है कि 'बकस्वाहा जंगल की नीलामी कर दी गई है जिसके कारण औषधीय वृक्षों सहित लगभग 230000 {दो लाख तीस हजार} हरे-भरे वृक्षों को यहाँ काटा जाएगाl' यह भी दर्द बांटा गया है कि 'एक स्वस्थ वृक्ष से प्रतिदिन 230 लीटर ऑक्सीजन मिलता है जिससे 07 लोगों को प्राणवायु प्राप्त होती है। आकलन करें तो 5,29,00,000 लीटर ऑक्सीजन प्रतिदिन हम मानवों को मिलता है जिससे प्रतिदिन कुल वृक्षों की संख्या से औसतन 75,57,142 नागरिकों को ऑक्सीजन प्राप्त हो रही है l जंगल की कटाई से सीधा असर पर्यावरण पर पड़ेगा और तापमान में काफी वृद्धि होगी। इस तापमान का संतुलन करने मे कम से कम 50 वर्ष तक लग सकता हैl....ज्ञात हो की विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला हमारा देश वर्तमान समय में covid19 के कारण विश्व ऑक्सीजन की समस्या से जूझ रहा है।...अतएव इस अनुरोध पत्र में 'बकस्वाहा जंगल की नीलामी रद्द करते हुए पर्यावरण और मानव जीवन सहित, जीव-जन्तु, पशु–पक्षी को संरक्षित करने के लिए सकारात्मक पहल' करने की सरकार से अपील की गई है।

ज्ञातव्य है कि कमाऊ सरकार द्वारा हीरा निकालने के लिए आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को यह ठेका दिया जा रहा है। कहा जा रहा है बक्सवाहा के इस जंगल में देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार है। कम्पनी ने बक्सवाहा जंगल की 382.131 हेक्टेयर जमीन मांगी है। इस जंगल में 40 हजार सागौन, साज, गूलर, पीपल, नीम, खेर, महुआ, अर्जुन, खिरिया, चिरौंजी, कोहा, बरगद आदि के अलावा अन्य औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं। अनेक तरह के पशु-पक्षियों से समृद्ध यह जंगल यहाँ के ग्रामीणों की ज़िंदगी भी है।

देखना है, ऑक्सीजन के लिए देश भर में हो रही मारामारी के बीच ऑक्सीजन के अकूत भंडार को बचाया जा सकता है या नहीं!...या फिर देश का सब कुछ मुनाफ़ा लोभियों की भेंट चढ़ जाएगा और देश के लोग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और सरकारों के प्रचारतंत्र में फंस अपनी जिंदगी गँवाते रहेंगे!

आप भी सोचें कि एक तरफ जंगल का विनाश करने की चाह रखने वाली कम्पनियाँ और सरकारें दूसरी तरफ पर्यावरण-संरक्षण के लिए जागरूकता-अभियान का नाटक क्यों करती हैं। जनता को खामोश रखने का यह प्रपंच तो नहीं है?...सोचिए, समझिए और देश के पर्यावरण की रक्षा के एक प्रहरी बकस्वाहा जंगल को बचाने की मुहिम में शामिल होइए!

                            ★★★★★★★★

Comments

  1. आपकी बात में वजन है, अब हमें अपनी विकास की अवधारणा को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। पर्यावरण की कीमत पर प्राप्त हुई किसी भी प्रकार की आर्थिक समृद्धि को विकास का जामा नहीं पहनाया जा सकता। तथाकथित रूप से प्राकृतिक आपदा कही जाने वाली घटनाओं में हुई अप्रत्याशित वृद्धि और कोविड 19 ने हमें माकूल सबक सिखाये हैं, हमें अब जाग जाना चाहिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, भारद्वाज जी!..एक-एक कर हमारे अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का मुनाफ़े की भेंट चढ़ जाना हमारी जरूरत नहीं। विकास के नाम पर पूँजीपतियों का ही विकास हो रहा है। कोरोना काल ने यह बात और सिद्ध कर दी है!

      Delete
  2. सिंगल यूज प्लास्टिक पर सरकार रोक लगा रही है। यह पर्यावरण से संबंधित है। पेड़ पौधे भी पर्यावरण का संरक्षण करते हैं। बक्सवाहा का संरक्षण करना भी सरकार का‌ दायित्व बनता है। एक तरफ सरकार वृक्षारोपण करा रही है दूसरी तरफ बक्सवाहा के वृक्षों को उजाड़ने का काम कर रही है। निः संदेह सरकार की पालिसी संदेहास्पद है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, सरकारें पजश-विपक्ष सब अपने नियंत्रण में रखना चाहती हैं। वे ही कॉरपोरेट के साथ मिलकर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर रही है, बकस्वाहा जैसे समृद्ध जंगल बर्बाद कर रही हैं, वे ही जलावन की लकड़ी लेने पर आदिवासियों-किसानों पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का आरओ लगाती हैं, पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए का वारा-न्यारा करती हैं!

      Delete
    2. This comment has been removed by the author.

      Delete
  3. निरंकुश सरकार, जो सरकार जनता की न सुनती हो, उस सरकार को बदल देना चाहिए। जनता के मुद्दों नजरअंदाज करने वालों को सत्ता से बेदखल कर देना चाहिए

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

मुर्गों ने जब बाँग देना छोड़ दिया..

                मत बनिए मुर्गा-मुर्गी! एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया।.. एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।"  मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !" सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है।  मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं वध कर दूँगा।  अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया।  मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए। अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया।  मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था। मालिक ने कहा कि कल से तुम्हें अंडे देने होंगे नहीं तो मै तेरा

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?..  आख़िर, प्रकृति तो एक दिन दोनों को

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित गाँवों के निवासियों, जिनकी आजीविका का एकमात्र साधन किसानी है, उनमें हड़कंप मच गया। एक तरफ प्राधिकरण, सरकार के अधिकारी और नेता अखबारों व अन्य संचार माध्यमों, सार्वजनिक मंचों से ग्रामीणों और शहर