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ऐसे ही होती है शुरुआत

                        एक नई शुरुआत:               मजदूरों, बेरोजगारों और किसानों ने                            दिखाई एकजुटता प्रेस विज्ञप्ति | 24 अगस्त 2023 ऐतिहासिक अखिल भारतीय मजदूर किसान संयुक्त सम्मेलन दिल्ली में आयोजित नई दिल्ली, 24 अगस्त 2023 - एकता और संकल्प के ऐतिहासिक प्रदर्शन में, आज नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय मजदूर किसान संयुक्त सम्मेलन आयोजित किया गया। यह सम्मेलन संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच, जो देश भर के किसानों और मजदूरों का प्रतिनिधित्व करता है, द्वारा बुलाया गया था। सम्मेलन की शुरुआत 2014 के बाद से केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई आक्रामक कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों द्वारा उत्पन्न खतरनाक स्थिति को संबोधित करते हुए हुई। इन मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के परिणामस्वरूप राष्ट्र की अर्थव्यवस्था, एकता और अखंडता के लिए विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं। सम्मेलन ने केंद्र सरकार की कॉर्पोरेट-समर्थक और किसान-विरोधी नीतियों के कारण भारत में कृषि संकट पर प्रकाश डाला, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में

किसान आंदोलन भी राजनीति है क्या?

  किसान आंदोलन भी राजनीति का शिकार                      हो रहा है क्या?..      सवाल लाज़िमी है!..सवाल उठ रहा है, सवाल उठेगा भी! जब जीवन के हर पहलू को राजनीति संचालित कर रही है तो किसान आंदोलन राजनीति से अछूता कैसे रह सकता है? तो क्या किसान आंदोलन राजनीति का शिकार होगा? या यूँ कहें क्या किसान आंदोलन भी अन्ततः एक राजनीतिक स्वरूप लेगा? ऐसे सवाल आमजनता के मन में उठना स्वाभाविक है। न तो अपने किसान संगठन के आगे 'अराजनीतिक' लगाने वाले इस सवाल से बच सकते हैं और न ही किसान आंदोलन के सहारे राजनीति करने वाले ही। वे भी इससे नहीं बच सकते जो 'किसान राजनीति' कहकर किसान आंदोलन को संसदीय राजनीति से अलग कहते हैं। तो यह विचार करना जरूरी है कि आख़िर 'राजनीति' है क्या? क्या विधायक-सांसद बनना-बनाना ही राजनीति है या जनता से उगाहे जाते पैसों को वारा-न्यारा करने की नीति है 'राजनीति'?... पंजाब का चुनावी सबक:         वैसे तो किसान आंदोलन से जुड़े कई नेता पहले चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा या एसकेएम ने पंजाब चुनाव से पहले तक संसदीय राजनीति से दूर रहने के ही संकेत द

संयुक्त किसान मोर्चा (पंजाब) नहीं लड़ेगा चुनाव!

                        चुनावों से नहीं, आंदोलन से ही                     बदलेगी किसानों की तक़दीर ★ संयुक्त किसान मोर्चा नहीं लड़ेगा पंजाब विधानसभा चुनाव, एक दर्जन के लगभग बड़े संगठनों ने जनसंघर्ष जारी रखने का किया ऐलान। ★ चुनावो के लिए कोई भी व्यक्ति या संगठन SKM या 32 संगठनों का नाम प्रयोग न करें।       संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने स्पष्ट किया है कि वे पंजाब विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे है।  यह जानकारी मोर्चा की 9 सदस्यीय समन्वय समिति के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल व डॉ.दर्शनपाल ने दी। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा जो देश भर में 400 से अधिक विभिन्न वैचारिक संगठनों का एक मंच है जो केवल किसानों के मुद्दों पर बना है। न तो चुनाव के बहिष्कार का कोई आह्वान नहीं है और न ही चुनाव लड़ने की कोई समझ बनी है।  उन्होंने कहा कि इसे लोगों ने सरकार से अपना अधिकार दिलाने के लिए बनाया है और तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के बाद संघर्ष को स्थगित कर दिया गया है, शेष मांगों पर 15 जनवरी को होने वाली बैठक में निर्णय लिया जाएगा.          पंजाब में 32 संगठनों के बारे में उन्होंने कहा कि इस विधानसभा चु

The vote politics of the rulers and Farmers' Movement

         continue the Farmers' struggle & D on't waste time on Vote Politics                     Photo courtesy: www.groundxero.in Bharti Kisan Union ( BKU  EKTA UGRAHAN ) issues  a clarion call to continue the struggle on the burning issues of Farmers. Reacting to the issue of some farmers unions of Punjab on their decision to contest the coming elections, Bharti Kisan Union ( BKU  EKTA UGRAHAN ) stated that struggling farmer unions instead of getting entangled in the vote politics of the rulers the farmer unions should concentrate on the farmers issues.  State President Joginder Singh Ugrahan and the General Secretary Sukhdev Singh Kokri Kala of the organisation said that the farmers ‘ struggle against the farm laws has also proved that the rights and interests of farmers cannot be saved and ensured by sitting in the Parliament or Assemblies rather the same can be achieved only by struggle in the open at mass and community level. The leaders said that still only three fa

खत्म नहीं हो रहा किसान आंदोलन: बड़े बदलाव के लिए तैयार हो रहा है!

            समझौता, स्थगन और                 आगे की रणनीति फ़िलहाल, संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली सीमाओं पर एक साल से अधिक समय से चल रहा धरना समाप्त कर घर वापसी का निर्णय ले लिया है। लेकिन इसे किसान आंदोलन की समाप्ति के रूप में न कहकर 'वर्तमान आंदोलन को फिलहाल स्थगित कर दिया गया' रूप में विज्ञापित किया गया है। वैसे भी संयुक्त किसान मोर्चा नाम से न सही, किसान आंदोलन तो चलते ही रहेंगे! ज़्यादा सम्भावना है कि स्थानीय स्तर पर लोगों को इस साल भर चले सफल धरने से मिली ऊर्जा से किसान आन्दोलनों को और गतिशील बनाने में मदद  मिलेगी। ऐतिहासिक   और सफल आंदोलन की गूंज भविष्य में भी सुनाई देती रहेगी तथा इससे जनांदोलनों और जनतंत्र को मजबूती मिलती रहेगी। संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस-विज्ञप्ति पढ़ें: भारत सरकार ने, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव के माध्यम से, संयुक्त किसान मोर्चा को एक औपचारिक पत्र भेजा, जिसमें विरोध कर रहे किसानों की कई लंबित मांगों पर सहमति व्यक्त की गई - इसके जवाब में संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली सीमाओं पर राष्ट्रीय राजमार्गों और अन्य स्थानों पर चल रहे विभिन्न मोर्चों को

सावधान, किसान फिर धोखा खा सकता है!

                                  सावधान!            शासकवर्ग बड़ा चालाक है!   किसान आंदोलन ने एक बार और जनता की अपराजेयता की तरफ इशारा किया है। हमारे देश के लोग जितना जल्दी इस इशारे का महत्त्व समझ जाएं, उतना ही हितकर! देश के शासकों को, बड़े शूर-वीर बनने और खुद को भगवान समझने वाले शासकों को भी यह बात समझ लेना चाहिए। ' जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा!' - के नारे की सच्चाई को भी उन्हें समझना और उस पर समझदारी दिखाना चाहिए। यह कोई जुमला नहीं। ऐसा इतिहास हमें बताता-सिखाता है। यह राजाओं-महाराजाओं, बादशाहों की गुलामी का दौर नहीं है, इसका भी शासकों के साथ-साथ शासितों को भी अहसास करना चाहिए। जनता अगर सचमुच  किसी निज़ाम के खिलाफ  उठ खड़ी होगी  तो शासकों की हार तय है। फौजें भले न जीत सकें, जनता देर-सबेर जीतती ही है।                 वर्तमान किसान आंदोलन का मतलब तीन किसान विरोधी कानूनों की वापसी और किसानों और समर्थक आम जनता की विजय तो है ही, कॉरपोरेट और उसकी पक्षधर सरकारों के लिए सीख भी है। इतिहास जानता है कि कम्पनीराज के नुमाइंदों ने कहने और लिखने से ज़्यादा अपने मुनाफ़े के व्यापार

An Open Letter to 'Dear Prime Minister'

       An Open Letter to PM Mr Narendra Modi,                       from Samyukt Kisan Morcha 21 November 2021: Mr. Narendra Modi, Prime minister, Government of India, New Delhi. Subject: Your message to the nation and farmers' message to you Dear Prime Minister, Crores of farmers of the country heard your address to the nation on the morning of 19th November 2021. We noted that after 11 rounds of talks, you chose the path of unilateral declaration rather than a bilateral solution; nonetheless, we are glad that you have announced the decision to withdraw all three farm laws. We welcome this announcement and hope that your government will fulfill this promise at the earliest and in full. Prime Minister, you are well aware that repeal of the three black laws is not the only demand of this movement. From the very beginning of the talks with the government, the Samyukt Kisan Morcha had raised three additional demands: 1. Minimum Support Price based on the comprehensive cost of produc

क्या हिंसा से दबा दिया जाएगा किसान आंदोलन?

                            हिंसा और बदले की कार्रवाई से                     किसान आंदोलन को             खत्म करने की कोशिश यह कोई नई बात नहीं है, न ही अजूबी है। शासकवर्ग जनता के आंदोलनों को ख़त्म करने, बदनाम करने, लाठियाँ-गोलियाँ  बरसाने की कोशिशें अंग्रेजों के जमाने से और उससे भी पहले से करता रहा है। सुई की नोक बराबर भी जमीन की मांग न स्वीकार करने, महाभारत रचने, प्रतिभाशाली धनुर्धरों का अंगूठा काट लेने, विरोधियों के सिर हाथियों से कुचलवा देने अथवा जिंदा ही दीवार में चिनवा देने आदि-आदि बर्बर काण्डों की कहानियों से हम परिचित हैं। बहादुर शाह जफर के बेटों के सिर काटकर तस्तरी में पेश करने, जलियांवाला बाग काण्ड से लेकर न जाने कितने क्रूरतम कारनामे इतिहास में दर्ज़ हैं। अपनी सत्ताओं को बनाने और बचाने के लिए शासकों ने कितनी तरह की यातनाएं विरोधियों को दी है, मानव सभ्यता के विकास का रक्तरंजित इतिहास उसका गवाह है।...         लेकिन परिणाम क्या रहा?.. बर्तोल्त ब्रेख्त याद आते हैं:  'जिन्होंने नफ़रत फैलाई, क़त्ल किए और खुद खत्म हो गए नफ़रत से याद किए जाते हैं... जिन्होंने मुहब्बत का सबक पढ़ाया और

बचने की कोशिश में वे और बेनकाब हो रहे हैं!..

                          जन गोलबन्दी              और बढ़ रही है! ठीक है, तुम्हारा राज है! तुम शेरअली बन रहे हो। पर तुम ऐसा सोचने वाले पहले लोग नहीं हो। तुमसे पहले जिन्होंने भी हिटलरी ख़्वाब पाले, मिट्टी में मिल गए ! सुधर जाओ, नहीं तो जनता सुधार देगी। कानून और संविधान से ऊपर मत समझो अपने गिरोह को!...       जी, राजसत्ता के मद में चूर हुक्मरानों के लिए जनता की यही चेतावनी उनके, बढ़ते किसान आंदोलन के इरादों से प्रकट हो रही है।   पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस-विज्ञप्ति! ★ पूरे भारत में शहीद किसान दिवस मनाया जाएगा - लखीमपुर खीरी के शहीदों की अंतिम अरदास कल (12 अक्टूबर) तिकोनिया में होगी - एसकेएम ने पूरे देश में  प्रार्थना और श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित करने की अपील की - दिन को यादगार बनाने के  लिए कल शाम मोमबत्ती मार्च निकाला जाएगा ★ एसकेएम ने अजय मिश्रा टेनी के केंद्रीय मंत्रिपरिषद में बने रहने और उनकी गिरफ्तारी न होने पर निराशा व्यक्त की - एसकेएम ने कहा। लखीमपुर खीरी किसान नरसंहार में उनकी भूमिका स्पष्ट है और पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा अब तक की कार्रवाई नहीं किया जाना शर्मनाक है - यह तथ्य क

क्या घिर गई है सरकार?..

  तुम नहीं,    जनता ही अपराजेय है!                   इलाहाबाद संयुक्त किसान मोर्चा पंचायत जी हाँ, किसान आंदोलन के प्रति दिनो-दिन बढ़ता समर्थन यही कह रहा।कोई भी सत्ता कभी अपराजेय नहीं रही, चाहे खुद को जितना भी ताकतवर समझती रही हो। मंत्रीपुत्र ने तो यही सोचा रहा होगा कि सब कुछ दुर्घटना बनाकर साफ बच निकलेगा। मंत्रीजी तो अभी भी यही जुगत भिड़ा रहे होंगे। लेकिन आज नहीं तो कल 'सत्यमेव जयते!' होगा ही। पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा का नया बयान-  ★ एसकेएम ने भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि 11 अक्टूबर की समय सीमा समाप्त हो रही है - लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड में सभी दोषियों की गिरफ्तारी के अलावा अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी अभी भी लंबित है - अजय मिश्रा टेनी के केंद्र सरकार में मंत्री पद पर बने रहने के कारण न्याय के साथ स्पष्ट रूप से समझौता हो रहा है: एसकेएम ★ हरियाणा और चंडीगढ़ पुलिस किसानों के खिलाफ मामले दर्ज करने के लिए तत्पर है - हालांकि, जहां किसान न्याय मांग रहे हैं, विभिन्न राज्यों में पुलिस विभाग धीमी गति से चल रही है - ऐसे दोहरे मानदंड स्वीकार्य नहीं

और तेज होगा किसान आंदोलन!..

                  मशाल जल रही है,            जलती रहेगी! ★ एसकेएम ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड के संबंध में किसान आंदोलन की मांगों को पूरा करने के लिए कार्यक्रमों की एक श्रृंखला की घोषणा की - 12 अक्टूबर को पूरे भारत में प्रार्थना और श्रद्धांजलि सभाओं और मोमबत्ती मार्च के साथ शहीद किसान दिवस के रूप में चिह्नित किया जाएगा - 15 अक्टूबर को दशहरा के दिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भाजपा के स्थानीय नेताओं का पुतला दहन - 18 अक्टूबर को पूरे देश में रेल रोको - 26 अक्टूबर को लखनऊ में महापंचायत ★ एसकेएम ने नोट किया कि आशीष मिश्रा टेनी आज पूछताछ के लिए पेश हुए - एसकेएम अजय मिश्रा टेनी सहित दोषियों की गिरफ्तारी की प्रतीक्षा कर रहा है ★ एसकेएम ने अज्ञात व्यक्तियों द्वारा महाराष्ट्र के किसान नेता सुभाष काकुस्ते पर हमले की निंदा की दिनाँक 9 अक्टूबर, 2021 को नई दिल्ली में प्रेस क्लब में एक विशेष रूप से आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में, कई एसकेएम नेताओं ने मीडिया को संबोधित किया और लखीमपुर खीरी किसान नरसंहार में किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए योजनाओं को साझा किया। भ

#यूपी में किसान आंदोलन की नई पहल

                उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड किसान आंदोलन की                                  एक नई शुरुआत                         ★ संयुक्त किसान मोर्चा ने किया मिशन  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का ऐलान ★  5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में महारैली से धमाकेदार शुरुआत होगी ★ सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत का आयोजन होगा ★ तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने और एमएसपी की गारंटी के साथ प्रदेश के मुद्दे भी उठेंगे ★ आंकड़े दिखाते हैं कि योगी सरकार का दाना-दाना खरीद का वादा महज एक जुमला था लखनऊ | तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने तथा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर चल रहा ऐतिहासिक किसान आंदोलन आज आठ माह पूरे कर चुका है। इन आठ महीनों में किसानों के आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक बना यह आंदोलन अब किसान ही नहीं देश के सभी संघर्षशील वर्गों का लोकतंत्र बचाने और देश बचाने का आंदोलन बन चुका है। इस अवसर पर आंदोलन को और तीव्र, सघन तथा असरदार बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इस राष्ट्रीय आंदोलन के अगले पड़ाव के रूप में मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शुरू करने का फैसला किया है। इस मिशन के तहत संयुक्त

क्या मुख्यतः कम्पनीराज के खिलाफ़ है किसान आंदोलन?

                           किसान आंदोलन का                   कॉरपोरेट विरोध     संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जैसे तीन किसान विरोधी कानूनों की वापसी के लिए संघर्ष लम्बा खिंचता जा रहा है, उसके स्वरूप में भी बदलाव आता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से मजदूर संगठन भी उसके समर्थन में दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने लगे हैं। साथ ही इसे कानून वापसी की माँग से अधिक व्यापक बनाये जाने की भी कोशिश हो रही है। किसान आंदोलन इसे कॉरपोरेट या कम्पनीराज विरोधी आंदोलन के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रहा है!... ★ कॉर्पोरेटों के खिलाफ धरना जारी रहेगा: यह काले कानूनों के खिलाफ एकजुट लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लगातार चल रहा किसान आंदोलन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर जाने वाले मुख्य राजमार्गों पर पिछले आठ महीनों से जमा हुआ है।।  26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर लाखों आंदोलकारियों के पहुंचने से पहले कई राज्यों में महीनों तक कई विरोध प्रदर्शन हुए। इस लिहाज से यह आंदोलन और भी ज्यादा समय से चल रहा है।  हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार अपने जोखिम पर आंदोलनकारियों द्वारा उठाए जा रहे बुनियादी मुद्दो

तेजी से बढ़ रहा उत्तरप्रदेश में किसान आंदोलन

किसान आंदोलन के नए आयाम                    और तेज हो रहा किसान आंदोलन                    भाजपा के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और           प्रशासन के कार्यालयों के सामने 3 कृषि अध्यादेशों की                  प्रतियां जलाकर जताया किसानों का रोष संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर जहाँ दिल्ली की सीमाओं सहित पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में किसानों ने सांसदों, विधायकों और सरकारी दफ्तरों के सामने किसान क़ानूनों की प्रतियाँ जलाकर विरोध प्रदर्शन किया गया; वहीं उत्तर प्रदेश के कई नए इलाकों में भी किसान आंदोलन विकसित होने के उत्साहबर्द्धक संकेत मिले। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद के गाँव सुखरावली में 26 मई के किसानों के काला दिवस मनाने पर किसानों के खिलाफ झूठे पुलिस मामलों को वापस लेने की मांग करते हुए किसान गांव में ही धरने पर बैठ गए। साथ ही सांसद आवास के समक्ष कानूनों की प्रतियां जलाकर सांसद को ज्ञापन देकर काले कानूनो को वापस लेने की मांग की। किसानों ने जिलाधिकारी से भी मिलकर अपना प्रकट किया। भाकियू-टिकैत, बेरोजगार मजदूर किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान सभा, भाकियू-अम्बावता, भाकियू-स्वराज, भाकियू-म

चेतावनी दिवस के मायने

                      किसान संघर्षों के                     नए आयाम   संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 जून को सम्पूर्ण क्रांति दिवस के अवसर पर किसानों से आह्वान किया है कि वे देश भर में भाजपा सांसदों, विधायकों के आवासों एवं कार्यालयों के सामने किसान कानूनों की प्रतियाँ जलाकर यह जताएँगे कि किस तरह भाजपा किसान विरोधी है। ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष 5 जून को ही  किसान विरोधी कृषि कानून विधेयक के रुप में घोषित हुआ था। यही तिथि जयप्रकाश आन्दोलन के संपूर्ण क्रांति दिवस की भी है। इस संपूर्ण क्रांति दिवस को चेतावनी दिवस के रूप में भी मनाया जाएगा। चूँकि किसान इस दिन सीधे भाजपा के स्थानीय नेताओं को किसान विरोधी चिह्नित करने का प्रयास करेंगे, भाजपा नेताओं की कार्यशैली के जानकार यह मानते हैं कि वे इसे सहज-सामान्य रूप में संभवतः नहीं लेंगे। ऐसे में भाजपा के विशेष प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्थिति असामान्य हो सकती है। दूसरी तरफ हरियाणा के टोहाना में इकट्ठे हुए किसानों की बैठक में फैसला लिया गया कि आने वाली 7 जून को 11 बजे से 1 बजे तक हरियाणा के सभी पुलिस थानों का घेराव किया जाएगा। जजपा विधायक देवेंद्र बबली द्

किसान आंदोलन: परीक्षा का समय

किसान बेवकूफ नहीं!                                       किसान आंदोलन:            परीक्षा का समय                संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किस  आंदोलन इन दिनों दोहरी परीक्षा से गुजर रहा है। एक तरफ बारिश और तूफान के कारण सीमाओं पर भारी नुकसान हुआ है, सिंघू व टिकरी बॉर्डर पर मुख्य मंच सहित किसानों के बड़ी संख्या में टेंट क्षतिग्रस्त हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली से सटे हरियाणा में किसानों के बहिष्कार आंदोलन से चिढ़े भाजपा नेता किसानों को हिसा के लिए उकसाकर उनसे भिड़ने की नीति पर चल रहे हैं।   हरियाणा के टोहाना में विधायक देवेंद्र बबली के कार्यक्रम का किसान संगठनों द्वारा विरोध किया गया। किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसक रंग देने के उद्देश्य से विधायक ने किसानों के साथ गाली गलौच की व अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। इसके बाद किसानों ने विरोध जारी रखा तो पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करवाया गया। जिसमें हरियाणा के जुझारू किसान ज्ञान सिंह बोडी, सर्वजीत सिद्धु और बूटा सिंह फतेहपुरी को गहरे चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा इस बेरहम कार्रवाई की निंदा करता है। किस