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Showing posts from October, 2022

जातिवाद दूर करने का एक अचूक नुस्खा

                 हे, हे लक्ष्मी के वाहन!  मुझे लगता है जातिवाद दूर करने का एक बढ़िया सूत्र अब तक लोगों को मालूम नहीं है। यह सूत्र मानने और अपनाने से कम से कम सभी जातियाँ एक ही संबोधन से जानी जाएँगी।...प्रायः हर धर्म-जाति के लोग कभी न कभी इसका इस्तेमाल कर खुश होते हैं। खासकर तब जब यह किसी और के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हो! फिर भी इस अखिल धरा पर किसी न किसी रूप में कभी न कभी सभी इस लोकप्रिय संबोधन से नवाज़े गए हैं।        सभी प्रकार के जातिवादी लोग (पब्लिक/राजनीति में सभी जाति के लोग खुद को जातिवादी न कहकर बाकी सबको जातिवादी कहते हैं!) अगर अपनी जाति -'उल्लू का पट्ठा' लगाने लगे तो लोगों को देश की 3000 से अधिक जातियों के नाम से जानने की एक ही जाति 'उल्लू का पट्ठा' नाम से जाना जाएगा। इससे जातिवाद के खात्मे में कुछ तो मदद मिलेगी! मतलब 2999 जातियाँ खत्म हो जाएंगी।               वैसे यह 'जाति' शब्द भी 'ज' क्रियाधातु से व्युत्पन्न हुआ है जिससे 'पैदा होना'..'इस तरह पैदा हुआ' आदि का बोध होता है। उदाहरणार्थ आदमी आदमी की ही तरह पैदा होता है, सुअर या उल्

इस रात की सुबह कब?..

                      सिर्फ़   नाइंसाफ़ी नहीं,                 शासकों का अपराध है यह! हे युवाओं! हे  बेरोजगारो!.. सब कुछ अपने आप नहीं हो रहा है! किसी ईश्वर की माया से अपने आप नहीं घट रहा है! यह सब सुनियोजित है! तुम्हारी बेरोजगारी भी, निकाली और न भरी जातीं भर्तियाँ भी! परीक्षा के एक-दो दिन पहले मिलते प्रवेशपत्र भी। इधर का परिक्षाकेन्द्र उधर होना और उधर का परिक्षाकेन्द्र इधर होना भी! बसों और ट्रेनों में भुस की तरह घुसकर तुम्हारा जाना भी। ज़्यादा किराया वसूलना भी, मारपीट करना भी। कु छ भी नेचुरल नहीं, स्वाभाविक नहीं। करोड़ों की कमाई और मुनाफ़ा इसके पीछे है! सब शासकों द्वारा सुचिंतित और सोच-विचार कर सुनियोजित तरीके से क्रियान्वित किया गया!.. कब जागोगे?... कब समझोगे?... कब उठोगे?...                       ★★★★★