सिर्फ़ नाइंसाफ़ी नहीं,
शासकों का अपराध है यह!
हे युवाओं!
हे बेरोजगारो!..
सब कुछ अपने आप नहीं हो रहा है!
किसी ईश्वर की माया से अपने आप नहीं घट रहा है!
यह सब सुनियोजित है!
तुम्हारी बेरोजगारी भी, निकाली और न भरी जातीं भर्तियाँ भी!
परीक्षा के एक-दो दिन पहले मिलते प्रवेशपत्र भी।
इधर का परिक्षाकेन्द्र उधर होना और उधर का परिक्षाकेन्द्र इधर होना भी!
बसों और ट्रेनों में भुस की तरह घुसकर तुम्हारा जाना भी।
ज़्यादा किराया वसूलना भी, मारपीट करना भी।
कुछ भी नेचुरल नहीं, स्वाभाविक नहीं।
करोड़ों की कमाई और मुनाफ़ा इसके पीछे है!
सब शासकों द्वारा सुचिंतित और सोच-विचार कर सुनियोजित तरीके से क्रियान्वित किया गया!..
कब जागोगे?...
कब समझोगे?...
कब उठोगे?...
★★★★★
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