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क्या है छायावाद और उसकी कविता?

                छायावाद, प्रमुख कवि           और काव्य-रचनाएँ ★ 'छायावाद' शब्द का पहली बार प्रयोग सन 1920 में मुकुटधर पांडेय द्वारा जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'श्री शारदा' में प्रकाशित उनके लेख 'हिन्दी में छायावाद' में किया गया। ★ रामचन्द्र शुक्ल छायावाद का प्रवर्तक कवि मुकुटधर पांडेय और मैथिलीशरण गुप्त को मानते हैं। ★ आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी ने  छायावाद का प्रवर्तन सुमित्रानंदन पंत की कृति 'उच्छ्वास' (1920) से माना है। ★ इलाचंद्र जोशी ने जयशंकर प्रसाद को छायावाद का प्रवर्तक माना है। ★ प्रभाकर माचवे व विनय मोहन शर्मा माखनलाल चतुर्वेदी को छायावाद का प्रवर्तक मानते हैं। ★ रामचन्द्र शुक्ल: " छायावाद का चलन द्विवेदी-काल की रूखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।.." ★ सुमित्रानंदन पंत ने छायावाद को 'अलंकृत संगीत' कहा है। ★ महादेवी वर्मा छायावाद को 'केवल सूक्ष्मगत सौंदर्य सत्ता का राग' कहा है। ★ डॉ. राम कुमार वर्मा के अनुसार- 'परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की परमात्मा म

सोई हुई जातियाँ पहले जागेंगी

                      https://youtu.be/kzwBYuHjR1Y                      सोयी हुई जातियां पहले जागेंगी !                                                   प्रस्तुति : गुरचरन सिंह मुंशी प्रेमचंद के नाम का जिक्र तो काफी होता है प्रगतिशील लेखक मंच से दलित समस्याओं को उठाने के लिए, लेकिन महाप्राण निराला जैसे 'कान्यकुब्ज ब्राह्मण' ने भी ऐसा कुछ कहा या लिखा होगा, यह तो मेरे लिए भी एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं था। यह दूसरी बात है कि लगभग एक सदी बाद भी कुछ अपवादों को छोड़ कर हालात न केवल जस के तस बने हुए हैं बल्कि और भी बिगड़े हैं ! लेकिन सिर्फ बाबा साहेब ही नहीं कुछ और भी संवेदनशील व जिम्मेदार लोग इस दिशा में सोच रहे थे, सक्रिय थे, सबूत है इस बात का कि कोई भी सामाजिक आंदोलन किसी एक खास तबके की बपौती नहीं हो सकता ! पांच अंगुलियां जब आपस में मिलती हैं, मुट्ठी तभी बनती है ! इसलिए #महाप्राण_सूर्यकांत_त्रिपाठी_निराला जैसा कद्दावर भविष्यद्रष्टा कवि जब 1930 में भी जब कुछ ऐसा कह जाता है जिसे कहने में हम आज भी डर जाते हैं संविधान की अनेक गारंटियों के बावजूद तो हैरानी तो होगी ही !  पेश