Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2021

एक और लड़ाई पहाड़ बचाने की

और लड़ाई जारी है:                कब रुकेंगी इस तरह की                 जन-संपदा की लूट? धजवा पहाड़ बचाने के लिये संघर्षरत ग्रामीणों को समर्थन देने 1 जनवरी को भूख हड़ताल पर बैठेंगे कई राजनीतिक दल व जन संगठन  पानी के स्रोत पहाड़, पर्यावरण व अध्यात्मिक स्थल धजवा पहाड़ को बचाने की लड़ाई अब विस्तार पा रही है. पांडू के कुटमू- बरवाही से निकल राजधानी तक पहुंच गई है, लेकिन सरकार व जिला प्रशासन की ओर से संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल  नहीं की गई है, उल्टे दमन के बल पर संघर्ष को समाप्त करने का प्रयास किया गया है. धजवा पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति ने 19 दिसम्बर से क्रमिक भूख हड़ताल आरम्भ कर दिया है.  मौखिक आश्वासन के बल पर आंदोलन को समाप्त कराने में नकामी हासिल होने पर दमन का सहारा लेने से प्रशासन की जहाँ पोल खुली, वहीं जनता की एकजुटता मजबूत हुई है. इसी मजबूती को सुदृढ़ करने व आंदोलन को धार देने के कई राजनीतिक दल, जनसंगठन, सामाजिक संगठन के नेता व कार्यकर्ता आंदोलन स्थल पर भूख हड़ताल करने 1 जनवरी को धजवा पहाड़ पर जा रहे हैं. सनद हो कि धजवा पहाड़ को निगलने के लिए पत्थर माफियाओं द्वारा किए गये क

संयुक्त किसान मोर्चा (पंजाब) नहीं लड़ेगा चुनाव!

                        चुनावों से नहीं, आंदोलन से ही                     बदलेगी किसानों की तक़दीर ★ संयुक्त किसान मोर्चा नहीं लड़ेगा पंजाब विधानसभा चुनाव, एक दर्जन के लगभग बड़े संगठनों ने जनसंघर्ष जारी रखने का किया ऐलान। ★ चुनावो के लिए कोई भी व्यक्ति या संगठन SKM या 32 संगठनों का नाम प्रयोग न करें।       संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने स्पष्ट किया है कि वे पंजाब विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे है।  यह जानकारी मोर्चा की 9 सदस्यीय समन्वय समिति के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल व डॉ.दर्शनपाल ने दी। उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा जो देश भर में 400 से अधिक विभिन्न वैचारिक संगठनों का एक मंच है जो केवल किसानों के मुद्दों पर बना है। न तो चुनाव के बहिष्कार का कोई आह्वान नहीं है और न ही चुनाव लड़ने की कोई समझ बनी है।  उन्होंने कहा कि इसे लोगों ने सरकार से अपना अधिकार दिलाने के लिए बनाया है और तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के बाद संघर्ष को स्थगित कर दिया गया है, शेष मांगों पर 15 जनवरी को होने वाली बैठक में निर्णय लिया जाएगा.          पंजाब में 32 संगठनों के बारे में उन्होंने कहा कि इस विधानसभा चु

The vote politics of the rulers and Farmers' Movement

         continue the Farmers' struggle & D on't waste time on Vote Politics                     Photo courtesy: www.groundxero.in Bharti Kisan Union ( BKU  EKTA UGRAHAN ) issues  a clarion call to continue the struggle on the burning issues of Farmers. Reacting to the issue of some farmers unions of Punjab on their decision to contest the coming elections, Bharti Kisan Union ( BKU  EKTA UGRAHAN ) stated that struggling farmer unions instead of getting entangled in the vote politics of the rulers the farmer unions should concentrate on the farmers issues.  State President Joginder Singh Ugrahan and the General Secretary Sukhdev Singh Kokri Kala of the organisation said that the farmers ‘ struggle against the farm laws has also proved that the rights and interests of farmers cannot be saved and ensured by sitting in the Parliament or Assemblies rather the same can be achieved only by struggle in the open at mass and community level. The leaders said that still only three fa

अगला मन्दिर आपके मोहल्ले में...

       बैंक जाएँ, चाहे सारी दुनिया           भक्त कहें बस मन्दिर-मन्दिर!      ऐसे ही नहीं गुलाम बना था देश!          मुद्रास्फीति 8% है, और बचत पर बैंक की ब्याज दर 4.8% याने घर मे रखने पर पैसा 8% की दर से घटेगा। बैंक में रखो तो 3.2% की दर से घटेगा (8 - 4.8 = 3.2) अब आप मजबूर हैं, बचत का पैसा शेयर मार्केट में को। No other option!  शेयर का पैसा कंपनी को जाएगा। डूब गई, तो सारा पैसा गया। 🤷‍♂️ उधर बैंक ने जो जमा आपसे ली है, वह भी लोन बनकर कम्पनी को जाएगा।  अब दिवालिया कानून जो मोदी की सरकार ने बनाया है, वो कहता है कि कम्पनी के मालिकान, कम्पनी डूबने पर सिर्फ उतने पैसे की देनदारी को मजबूर होगा, जितना कि उसकी शेयर कैपिटल है।  🤔 इसे ऐसे समझें -  मालिक की 100 करोड़ की शेयर कैपिटल है। 1000 करोड़ आपकी बचत का शेयर मार्किट से उठा लिया। 5000 करोड़ बैंक से आपके पैसे से लोन उठा लिया। लेकिन कम्पनी उसकी देनदारी 100 करोड़ ही रहेगी।  याने देशवासियों को लूटकर खा जाने की आजादी नया राष्ट्रवाद है। 😏 इसी तरह बैंक डिपाजिट गारंटी स्कीम याने बैंक डूबने की स्थिति में आपको 5 लाख वापस मिलने की गारंटी को समझिए।  5

यह संदेश आप सबके लिए है!

                        राजतिलक की करो तैयारी                         घर आ रहे हैं..                 18 लाख बैंक कर्मचारी!  😁😁 बैंको के निजीकरण से 10 लाख नौकरियां खत्म होंगी  तो उन 10 लाख लोगो को  अपने परिवार के साथ 30 लाख लोगो को  सड़कों पर आंदोलन पर होना चाहिए। BSNL से शुरू हुआ कारवां,  दिन दूनी रात चौगनी तरक़्क़ी करता हुवा  आज बैंकों तक पहुँच गया.. नम्बर सबका आएगा प्रसाद सबको मिलेगा जब तक दवाई नही तब तक ढिलाई नही। लगातार हाथ धोते रहिये। कभी नौकरी से,कभी सैलरी से, कभी पेंशन से,कभी बिजनेस से 🙄सरकार आपके साथ है😉 रामराज युग में नोट व बैंक नहीं थे, रेल व हवाई अड्डे नहीं थे,  BSNL, LIC नहीं थी, विश्वविद्यालय और न्यायालय नही थे, तो फिर इन सबके साथ रामराज कैसे स्थापित होगा ?? 😍आज बैंक वाले भी हड़ताल पर किसी को छोड़ना नहीं है  कोई बचा हो तो,  सर्च करो और सड़क पर आने दो. चायवाला बैंक बेच रहा है  अब बैंक वाले चाय बेचेंगे । #BankStrike एक बार फिर से थाली और परात लेकर तैयार रहें पता नही कब आदेश आ जाए📯📯               प्रस्तुति: मुकेश कुमार मयंक ,                   मानव सेवा दल संस्थान    

जानिए योगियों के नाथ-सम्प्रदाय को

परीक्षा की तैयारी स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र नाथ सम्प्रदाय   गोरखनाथ              नाथ-सम्प्रदाय: एक परिचय सिद्धों और योगियों की रचनाएँ        हिन्दी साहित्य  का आदिकाल वीरगाथाओं का ही नहीं;  नाथों, सिद्धों, जैनियों की 'बानी' का भी  काल है। इनमें नाथ-सम्प्रदाय का साहित्य हिन्दी की आदिकालीन काव्यधारा में विशेष महत्त्व रखता है। इसका एक प्रमुख कारण परवर्ती हिंदी साहित्य पर उसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव है। वस्तुतः नाथ साहित्य को जाने-समझे बिना हिंदी के विशेषकर संत-साहित्य को जानना-समझना आसान नहीं। 'नाथ' का तात्पर्य: 'हिंदी साहित्य कोश' के अनुसार, " 'नाथ' शब्द का प्रयोग 'रक्षक' या 'शरणदाता' के अर्थ में 'अथर्ववेद' और 'तैत्तिरीय ब्राह्मण' में मिलता है। 'महाभारत' में 'स्वामी' या 'पति' के अर्थ में इसका प्रयोग पाया जाता है। 'बोधि चर्यावतार' में बुद्ध के लिए इस शब्द का व्यवहार हुआ है। ...परवर्ती काल में योगपरक पाशुपत शैव मत का विकास नाथ सम्प्रदाय के रूप में हुआ और 'नाथ' शब्द 'शिव&#

फणीश्वरनाथ रेणु: सुनो कहानी रेणु की

गतिविधि :  हिन्दी साहित्य                                     'रेणु-राग'                 फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती के अवसर पर                                  राष्ट्रीय संगोष्ठी पटना, 19 दिसम्बर।  पटना विश्विद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती के अवसर पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी  'रेणु-राग' पटना कॉलेज सेमिनार हॉल में  हुई। इस संगोष्ठी में  बिहार तथा बाहर के विभिन्न विश्विद्यालयों से जुड़े साहित्यकार, आलोचक व  प्रोफ़ेसर शामिल हुए। इसके साथ साथ बड़ी संख्या में पटना विश्विद्यालय के छात्रों के अलावा  साहित्य, संस्कृति से जुड़े बुद्धिजीवी , रंगकर्मी सामाजिक कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि मौजूद थे।             संगोष्ठी का उद्घाटन रेणु के चित्र पर माल्यार्पण करने के साथ हुआ। ‛हिंदी कहानी : परम्परा, प्रयोग और रेणु’ सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकर और तद्भव पत्रिका के संपादक श्री अखिलेश ने की। इस सत्र की चर्चा की शुरुआत करते हुए दिल्ली से आये चर्चित कथाकार संजय कुंदन ने कहा- “फणीश्वर नाथ रेणु ऐसे कथाकार थे जिन्होंने प्रेमचन्द के ग्रामीण जी

एक कविता खेतों की

               ★ खेतों के क़ातिल ★ पूरी मिठास पूरे स्वाद के साथ आएगा सच, यह जहर आपकी ज़िंदगी निगल जाएगा। आप? आप खुद को भी पहचान नहीं पाएँगे वे आपको आप नहीं हैं कोई और हैं बता जाएँगे। वे क़ातिल हैं खेतों के, फसलों के खलिहानों के उन्हें पता हैं सारे राज निकल ते  गेहूँ के  दानों के। वे तुम्हारी ताकत न सिर्फ़ गेहूं से निचोड़ेंगे वे तुम्हें रोटी खाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे। वे ला रहे हैं ऐसे कानून जो अंग्रेज भी न ला पाए थे लूटा था अंग्रेजों ने जरूर पर खेत न कब्ज़ा पाए थे।  अब जो हुक्मरान हैं वे अंग्रेजों से भी भले आगे हैं इन्हें नहीं पता किसान मजदूर बेरोजगार अब जागे हैं। ये कम्पनीराज जो देशी भी है विदेशी भी, खदेड़ा जाएगा इनका दलाल कोई भी किसी चोले में हो, न बच पाएगा।                    ★★★★★★

बैंक बचाओ, देश बचाओ

              दिवालिया होने से पहले                     https://youtu.be/7t4BsE7d4wM                                                                  - अशोक प्रकाश इससे पहले कि 'भाइयों और बहनों!' से शुरू हो 'राष्ट्र के नाम' एक और संबोधन मैं खासकर राष्ट्रीकृत समस्त बैंकों, उनके कर्मचारियों और उनके ग्राहकों को कहीं छुपा देना चाहता हूँ ताकि दिवालिया घोषित होने से पहले 'राष्ट्रीय पूँजी' किसी बिटिया के विवाह और किसी बेटे के  परचून की दूकान खोलने में बाधा न बन सके! दिवालिया दुल्हन बनाकर जिसे विस्थापित किया जा रहा है लंदन, न्यूयॉर्क या स्विट्जरलैंड में  कालाधन कहकर जब तक कि उसे वापस लाने का वादा दोहराया जाए मैं खेतों में धान और गेहूँ की बालें देखना चाहता हूँ ताकि कब्ज़ा होने से पहले  खेत बता सकें दुबारा पैदा होने के कुछ गुर उन दानों को जो पसीने की गंध और मिट्टी की सुगंध से हजारों साल से उगते आए है!.. इससे पहले कि मैं न होऊँ तुम्हें बता देना चाहता हूँ उनका ठिकाना जो बीज उगाना जानते हैं हल-बैल चलाना जानते हैं ट्रैक्टर और रोबोट भी चला सकते हैं कारखाने और हथियार भी बना सकते

'नोटबन्दी' सा दुःस्वप्न फिर न देखना पड़े!

  ★ नोटबंदी कौ आल्हा ★                                          -- अशोक प्रकाश                               चित्र साभार: aajtak.in शीश नवाय के जनगनमन कौ धरिकै सब जनता कौ ध्यान, आल्हा गावहुँ उन बीरन कौं जोे लाइन महं तज दियौ प्रान।। आठ नवम्बर सन् सोलह कौ देस कौ पी एम गयौ पगलाय, भासन घातन ऐसो करि गयौ जनगनमन सब गयौ कुम्हलाय।। चारों तरफ तहलका मचि गयौ ऊ जापान महं रह्यौ मुस्काय, लाइन महं यां प्रान जाय रहे वा नीरो बाँसुरी बजाय।। इक-इक रुपिया मुश्किल ह्वै गयौ बड़ा नोट सब भयौ बेकार, खेती-बारी नष्ट ह्वै गई मज़दूरन घर हाहाकार।। काम-धाम सब छोड़ि-छाँड़ि के बैंकन चक्कर रह्यौ लगाय, उहां खेल सेठन कौ होइ रह्यौ भारी घात सह्यौ ना जाय।। अस्पताल का कहौं मुसीबत लोग मरैं बस भए बुखार, लगन सगाई शादी छोड़हुँ मरन काज ना मिलै उधार।। ऐसो राज न देखा कबहूँ ऐसो डाकौ सुन्यौ न भाय, अपनौ पैसो उनकौ होइ गयौ कम्पनियन रह्यौ मज़ा उड़ाय।। ●●●●

वे कहीं नहीं जा रहे, शासको!...

            किसानों की घर-वापसी                                                        -- अशोक प्रकाश वे कहीं नहीं जा रहे शासको, तुम्हारी परीक्षा ले रहे हैं तुम्हें लोकतांत्रिक होने का एक और मौका दे रहे हैं... मुग़ालते में मत रहना जुमलेबाजी और मत करना! ये देश असल में किसानों का है मजदूरों मेहनतकशों नौजवानों का है देश में जुमलेबाज नहीं रहेंगे काम चलेगा किसान मजदूर नौजवान बिना आखिर देश क्या रहेगा? जनद्रोही होने से डरना फिर विश्वासघात मत करना! तुम्हें पता है वे झूठ नहीं बोलते नमकहराम पूंजीपतियों की तरह मनुष्य को मुनाफ़े के तराजू पर नहीं तौलते... किसान आंदोलन के मोर्चों पर शहीद हुए किसानों को याद रखना किसानों के दिलों में- 'तुम्हीं सचमुच देशद्रोही हो' पैदा करने से बचना! हाँ, वे कहीं नहीं जा रहे शासको, हजारों साल से इस धरती को शस्य-श्यामला उन्होंने ही बनाया है देश की सारी प्रगति उनके ही खून-पसीने की माया है... तुम्हारे मित्र और तुम्हारे मित्रों के मित्र मुनाफ़ाखोर हैं, धूर्त हैं, लुटेरे हैं हो सके तो समझना किसान मजदूर नौजवान ही देश के पहले हक़दार हैं, उ

खत्म नहीं हो रहा किसान आंदोलन: बड़े बदलाव के लिए तैयार हो रहा है!

            समझौता, स्थगन और                 आगे की रणनीति फ़िलहाल, संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली सीमाओं पर एक साल से अधिक समय से चल रहा धरना समाप्त कर घर वापसी का निर्णय ले लिया है। लेकिन इसे किसान आंदोलन की समाप्ति के रूप में न कहकर 'वर्तमान आंदोलन को फिलहाल स्थगित कर दिया गया' रूप में विज्ञापित किया गया है। वैसे भी संयुक्त किसान मोर्चा नाम से न सही, किसान आंदोलन तो चलते ही रहेंगे! ज़्यादा सम्भावना है कि स्थानीय स्तर पर लोगों को इस साल भर चले सफल धरने से मिली ऊर्जा से किसान आन्दोलनों को और गतिशील बनाने में मदद  मिलेगी। ऐतिहासिक   और सफल आंदोलन की गूंज भविष्य में भी सुनाई देती रहेगी तथा इससे जनांदोलनों और जनतंत्र को मजबूती मिलती रहेगी। संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस-विज्ञप्ति पढ़ें: भारत सरकार ने, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव के माध्यम से, संयुक्त किसान मोर्चा को एक औपचारिक पत्र भेजा, जिसमें विरोध कर रहे किसानों की कई लंबित मांगों पर सहमति व्यक्त की गई - इसके जवाब में संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली सीमाओं पर राष्ट्रीय राजमार्गों और अन्य स्थानों पर चल रहे विभिन्न मोर्चों को

ये किसकी जीत ये किसकी हार?..

              तंत्रलोक के किस्से यार                           --  अशोक प्रकाश तंत्रलोक के किस्से यार ये किसकी जीत ये किसकी हार! इक हौली में चार पियक्कड़ अक्कड़ बक्कड़ लाल बुझक्कड़ तय है वादा तय है रोना तय है खोना तय है सोना तय है किस पर पड़नी मार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! रामसिंह के रमरजवा नौकर किसके पेट पे किसकी ठोकर चार हजार में कर मज़दूरी रामसिंह कहें ये मजबूरी किसके सइकिल किसके कार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! खेती-बाड़ी मुश्किल काम न दिन आराम न रात आराम खाद-बीज-पानी के चक्कर राधा-कृष्ण बने घनचक्कर उमर हो गई सत्तर पार... ये किसकी जीत ये किसकी हार! बड़का लड़का पड़ा बीमार नौकरी-चाकरी कुछ न यार छोटकी की पहले परवाह कैसे होगा इसका ब्याह? क्षीण पड़ रही जीवन-धार... ये किसकी जीत ये किसकी हार!               ★★★★★

सावधान, किसान फिर धोखा खा सकता है!

                                  सावधान!            शासकवर्ग बड़ा चालाक है!   किसान आंदोलन ने एक बार और जनता की अपराजेयता की तरफ इशारा किया है। हमारे देश के लोग जितना जल्दी इस इशारे का महत्त्व समझ जाएं, उतना ही हितकर! देश के शासकों को, बड़े शूर-वीर बनने और खुद को भगवान समझने वाले शासकों को भी यह बात समझ लेना चाहिए। ' जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा!' - के नारे की सच्चाई को भी उन्हें समझना और उस पर समझदारी दिखाना चाहिए। यह कोई जुमला नहीं। ऐसा इतिहास हमें बताता-सिखाता है। यह राजाओं-महाराजाओं, बादशाहों की गुलामी का दौर नहीं है, इसका भी शासकों के साथ-साथ शासितों को भी अहसास करना चाहिए। जनता अगर सचमुच  किसी निज़ाम के खिलाफ  उठ खड़ी होगी  तो शासकों की हार तय है। फौजें भले न जीत सकें, जनता देर-सबेर जीतती ही है।                 वर्तमान किसान आंदोलन का मतलब तीन किसान विरोधी कानूनों की वापसी और किसानों और समर्थक आम जनता की विजय तो है ही, कॉरपोरेट और उसकी पक्षधर सरकारों के लिए सीख भी है। इतिहास जानता है कि कम्पनीराज के नुमाइंदों ने कहने और लिखने से ज़्यादा अपने मुनाफ़े के व्यापार

हुज़ूर, आप किसकी तरफ खड़े हैं- किसानों की या सरकार की?

            संयुक्त किसान मोर्चा  :                  आगे क्या? अप्रत्याशित रूप से संयुक्त किसान मोर्चा का पटाक्षेप होता दिख रहा है! क्या किसान आंदोलन भी थम जाएगा? सरकार और एसकेएम के 'पंच परमेश्वर' की जुगलबंदी ने एकाएक यह सवाल बहुत बड़ा बना दिया है। बहुत से लोग बहुत कुछ कह रहे हैं- सरकार के सामने किसान आंदोलन की यह जीत बहुत बड़ी है। मोदी सरकार की यह हार है। एमएसपी को अगर सारी कृषि-उपजों पर अनिवार्य कर दिया गया तो बाज़ार तबाह हो जाएगा। अगर कानूनी बन गई तो विश्व व्यापार संगठन के नियमों का यह उल्लंघन होगा। इसका हमें नुकसान उठाना पड़ेगा। आदि-आदि। यह भी कि किसान आंदोलन में शहीद हुए किसान देश की सीमा पर नहीं शहीद हुए, उनकी तुलना शहीदों से क्यो की जाए!...जितने मुँह, जैसी सोच वैसी बातें! खासतौर पर सरकार के पक्षधर और आरएसएस से जुड़े ऐसे न जाने कितने सवाल उठाकर किसान आंदोलन को 'कुछ किसानों का' आंदोलन सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कुछ सवाल और भी खड़े हो रहे हैं! जिस तरह आनन-फानन में संयुक्त किसान मोर्चा के मुखर नेताओं के आगे कुछ विशिष्ट नेता आ गए और किसान आंदोलन का पटाक्षेप करने

अनदेखी पड़ेगी महँगी

                  किसान आंदोलन की अनदेखी                                  पड़ेगी महँगी   कोई समझे या न समझे! कोई माने या न माने! देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दुनिया की जनता की दुश्मन नम्बर एक सिद्ध हो रही हैं। पूँजी के बल पर ज्ञान-विज्ञान पर कब्ज़ा कर अपने मुनाफ़े के लिए वे मानव-जीवन के साथ लगातार खिलवाड़ कर रही हैं। #भोपाल_गैस_त्रासदी उनके इसी मानवद्रोही खेल का नतीज़ा थी। अपने देश में ही लाखों पेड़ों का काटा जाना, बक्सवाहा जैसे प्राकृतिक वातावरण को अक्षुण्ण रखने वाले जंगलों को नष्ट किया जाना, शहरों से लेकर गाँवों तक तक रासायनिक तत्त्वों और खतरनाक विकिरण के माध्यम से जन-जीवन को दाँव पर लगाना- सब पूंजीपतियों और उनकी सर्वग्रासी कम्पनियों की करतूतों के चलते हो रहा है। भोपाल गैस काण्ड के हत्याओं के दोषियों को सरकारों ने बचा लिया। अपनी कुर्सी के लिए नेताओं की ऐसी करतूतें देशद्रोह क्यों नहीं कही जानी चाहिए?             संयुक्त किसान मोर्चा ने भोपाल गैस काण्ड को याद करते हुए कम्पनीराज के पक्ष में खड़ी वर्तमान भाजपा सरकार को यह याद दिलाया है कि किसान आंदोलन को मिल रहे व्यापक जन समर्थन की अनदे

बहाना न बनाए सरकार...

                जारी है किसान आंदोलन,                      जारी रहेगा! ★ विरोध कर रहे किसानों की लंबित मांगों के संबंध में स्वीकृति के किसी भी औपचारिक वार्ता के बिना भारत सरकार उन्हें मोर्चों पर बने रहने के लिए मजबूर कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि उनके पास विरोध कर रहे किसानों की मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं है - किसान सकारात्मक कार्रवाई और उनकी जायज़ मांगों को पूरा किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ★ भाजपा-जजपा नेताओं का बहिष्कार जारी है - उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला गांव में प्रवेश न कर सके, इसके लिए जींद (हरियाणा) के उचाना के धरौली खेड़ा गांव में बड़ी संख्या में किसान जमा हुए ★ जहाँ सरकार कह रही है कि उसके पास प्रदर्शनकारी किसानों की मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है, एसकेएम याद दिलाता है कि पिछले साल औपचारिक वार्ता के दौरान शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकार के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर मौन धारण किया था - आंदोलन के पास सभी आंदोलन के वीर शहीदों का रिकॉर्ड हैं और शहीदों के परिजनों के पुनर्वास की मांग पूरी करने के लिए सरकार का इंतजार रहा है:संयुक्त किसान मोर्चा