किसानों की घर-वापसी
-- अशोक प्रकाश
वे कहीं नहीं जा रहे शासको,
तुम्हारी परीक्षा ले रहे हैं
तुम्हें लोकतांत्रिक होने का
एक और मौका दे रहे हैं...
मुग़ालते में मत रहना
जुमलेबाजी और मत करना!
ये देश असल में किसानों का है
मजदूरों मेहनतकशों नौजवानों का है
देश में जुमलेबाज नहीं रहेंगे
काम चलेगा
किसान मजदूर नौजवान बिना आखिर
देश क्या रहेगा?
जनद्रोही होने से डरना
फिर विश्वासघात मत करना!
तुम्हें पता है वे झूठ नहीं बोलते
नमकहराम पूंजीपतियों की तरह
मनुष्य को मुनाफ़े के तराजू पर
नहीं तौलते...
किसान आंदोलन के मोर्चों पर
शहीद हुए किसानों को याद रखना
किसानों के दिलों में-
'तुम्हीं सचमुच देशद्रोही हो'
पैदा करने से बचना!
हाँ, वे कहीं नहीं जा रहे शासको,
हजारों साल से इस धरती को
शस्य-श्यामला उन्होंने ही बनाया है
देश की सारी प्रगति
उनके ही खून-पसीने की माया है...
तुम्हारे मित्र और तुम्हारे मित्रों के मित्र
मुनाफ़ाखोर हैं, धूर्त हैं, लुटेरे हैं
हो सके तो समझना
किसान मजदूर नौजवान ही
देश के पहले हक़दार हैं,
उनकी आँखों में ज़्यादा मत खटकना!
★★★★★★
Very nice poem.
ReplyDeleteबहुत ही सटीकता से आज के किसानों और मज़दूर वर्ग के दुश्मनों पर अपने शब्दों से वार किया है गुरु जी।🙏
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