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तब, जब तुम नहीं थे!

                  अंधेरा ही रोशनी है! लगभग पाँच हजार साल पहले की बात है!...शायद उससे भी पहले की! तब, सब जगह जंगल ही जंगल हुआ करता था! घना जंगल, वैसा ही जैसा अबूझमाड़!..या उससे भी घना, उससे भी ज़्यादा अबूझ! शायद अमेज़न के अभेद्य जंगलों की तरह..! या शायद उससे भी ज़्यादा अभेद्य! जंगल के बीच से नदियाँ बहते हुए निकलती थीं~ कल-कल निनादिनी नदियाँ!..भयावह नदियाँ!..तरह-तरह के विस्मयकारी प्राणियों वाली नदियाँ! पूरा जंगल संगीतमय होता था। पक्षी ही नहीं, तरह-तरह की वनस्पतियाँ, पेड़-पौधे, कीट-पतंगे तरह की ध्वनियां निकालते, सब कुछ मिलकर संगीत बन जाता! जीवन का संगीत! पक्षी, पशु इस प्राकृतिक अभयारण्य में निर्भय विचरण किया करते थे। चारागाह की कमी होने का सवाल ही नहीं था। पक्षियों, पशुओं और मनुष्यों के लिए जंगल न जाने कितने प्रकार के खाद्य, चूस्य, पेय रस प्रदान करता था। एक से बढ़कर एक स्वाद!   संसार के सर्वोत्तम चरागाह में, जंगल में मंगल ही मंगल था! सब कुछ धीरे-धीरे प्राकृतिक रूप से चलता था, यही संसार था। मनुष्यों का भी, पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं, चित्र-विचित्र वनस्पतियों- पौधों, फूलों, फलों का भी!...हरा-भरा थ