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Showing posts from November, 2020

रोज़गार की तलाश में...

                                        ऐसे बस गया                                     रसगुल्ला-नगर! रोज़गार की तलाश में लोग क्या-क्या नहीं कर जाते हैं?... जब से #पकौड़ा_रोजगार का जुमला उछला है, लोग मान गए हैं कि उनके सामने #आत्मनिर्भर होने के अलावा आजीविका का और कोई सहारा नहीं! अब इस हाई-वे के किनारे बसे रसगुल्ला नगर को ही देखिए! इसका इससे बेहतर नाम कुछ और नहीं सूझता। कोई और मिठाई नहीं, बस रसगुल्ले ही रसगुल्ले!..इन सभी दुकानों में! हाई-वे के दोनों तरफ। हाई-वे पर आते जाते लोगों/ ग्राहकों को बरबस अपनी ओर खींच लेती ये रसगुल्लों की दुकानें आजीविका चलाने का एक और नज़रिया हैं! सब के सब अपनी तरफ़ से बेहतर से बेहतर रसगुल्ले बनाने की कोशिश करते हैं ताकि आने-जाने वाले ग्राहक पक्के हो जाएं। इलाहाबाद के दक्षिण में चित्रकूट हाई-वे पर एक छोटे से कस्बे घूरपुर के पास बसे-बसते इस रसगुल्ला नगर की कहानी पुरानी नहीं है। पहले जब यहाँ हाई-वे नहीं एक साधारण सी सड़क हुआ करती थी। रेलवे क्रॉसिंग के पास एक छोटी सी गुमटी में एक सज्जन रसगुल्ले सजाते और आने जाने वालों को दोने में रखकर रसगुल्ले बेचते थे। क्रॉसिंग पर कोई

अस्सी पार पिता: तीन कविताएँ

                                                अस्सी पार पिता                     एक: पिता जब अस्सी साल के हुए लड़के से बोले- मैं अब ज़्यादा दिन नहीं रहूँगा... दो बातें गाँठ बाँध ले- पहली बात: घर में लाठी जरूर रखना जानवर जानवर ही होते हैं, उन्हें इंसान मत समझना... व्यर्थ मत मारना लेकिन वक़्त आ पड़े तो मत छोड़ना! दूसरी बात: बंदूक और लाठी में ज़्यादा फर्क़ मत समझना दोनों से जानवर ही नहीं इंसान की भी जान जा सकती है फर्क़ सिर्फ़ इस बात में है... कौन चला रहा है, कैसे चला रहा है, किसके लिए चला रहा है? किराये पर लाठी या बंदूक चलाने वाले हमेशा कमजोर होते हैं, उनकी ताक़त पर भरोसा मत करना! दो: पिता उस पेड़ जैसे ही हैं!... पेड़ अस्सी साल पुराना था उसे लगने लगा था कि किसी भी तेज अंधड़ में वह धराशायी हो जाएगा... टहनियाँ बोलीं ऐसे भी निराश मत होओ तुमने हजारों जीवनदान दिए हैं तुम्हारे बीज हजारों मील तक फैले हैं, उनमें भी तुम हो... पेड़ को लगा सचमुच, मैं और क्या कर सकता था! लोगों ने आश्चर्य से देखा- पेड़ के भीतर से निकल रहे हैं अनगिनत पेड़ हाथ हिलाती निकल रहीं हैं टहनियाँ फूट रही हैं मुस्कराती कोंपलें हरे होने लगे ह