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19 दिसंबर: काकोरी कांड के शहीद क्या इसीलिए शहीद हुए?..

                          काकोरी की व्यथा:             क्या कहते हैं #काकोरी के बाशिन्दे? 19 दिसंबर, 1927 को जब अंग्रेज जालिमों ने अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला खाँ तथा रोशन सिंह को फाँसी पर लटका दिया तो सोचा नहीं होगा कि एक दिन उनके राज का अंत हो जाएगा और ये शहीद जनता के प्रति समर्पण और त्याग के प्रतीक बन जाएंगे। इसके पहले 17 दिसंबर को वे अमर शहीद राजेन्द्र लाहिड़ी की जिंदगी भी फांसी के फन्दे पर लटकाकर ले चुके थे। आज इन शहीदों की शहादत को नमन करने का दिन है।  लेकिन साथ ही आज के शासकों को भी याद दिलाने का दिन है ये अमर शहीद इस बात की कल्पना भी नहीं किए होंगे जो आज ये कर रहे हैं। देश के जल, जंगल, जमीन सब ये शासक ईस्ट इंडिया कम्पनी से भी खतरनाक कम्पनियों को सौंपते जा रहे हैं। क्या यह इन शहीदों की शहादत का अपमान नहीं है?    आज शासक आम जनता से अधिक ककोरी कांड का महोत्सव मनाते हैं। वे ऐसा दिखाने का प्रयास करते हैं जैसे वे भी इस 'कांड' का समर्थन करते हैं। लेकिन उनके यह सब करने-धरने का एक ही मतलब-मक़सद है- जनता यह माने कि इन शासकों को गद्दी पर पहुँचाने के लिए ही आज़ादी के शहीद

अवतार सिंह पाश: 23 मार्च का एक और शहीद!

                 उन्हें मारा नहीं जा सकता!...                                अवतार सिंह पाश                   ( 9 सितम्बर, 1950 - 23 मार्च, 1988) 23 मार्च के एक और शहीद हैं पंजाबी क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश!...जिन शक्तियों ने आज ही के दिन 1988 में उनके शरीर को उनके क्रांतिकारी विचारों के चलते गोलियों से छलनी कर दिया, वे उस मरणासन्न साम्राज्यवादी व्यवस्था के ही पोषक थे जिन्हें इतिहास में इतिकथा बनना ही है! पाश जैसे लोग कभी नहीं मरते!   शहीद भगत सिंह   की ही तरह!!...          सबसे ख़तरनाक होता है         हमारे सपनों का मर जाना! श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है किसी जुगनू की लौ में पढ़ने लग जाना – बुरा तो है भींचकर जबड़े बस वक्‍त काट लेना – बुरा तो है सबसे ख़तरनाक नहीं होता सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना न होना तड़प का,