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ऐय्याशियों का महल खड़ा करने वाले किस नेता को जिताएंगे आप?

                        किसको लड़ाना, हराना,                     जिताना चाहते हैं?    जहाँ देखो, जिधर देखो...जय,जय,जय! इस बाबा की जय, उस बाबा की जय! इस भगवान की जय, उस भगवान की जय! तो तुम भगवान को जिताने के लिए 'जयकारे' लगाते हो? जयकारे नहीं लगाए तुमने तो हार जाएंगे क्या भगवानजी?... और अब भगवान का जयकारा लगाते-लगाते चुनावों में जय-जय होने लगी? ये नेतालोग भगवान हैं क्या? जरा इन नेताओं के आचरण देखो भाइयों-बहनों, किन्हें भगवान बना रहे हो??...लोकतंत्र का बेड़ा ग़र्क़ करके अपनी ऐय्याशी के महल खड़े करने वाले नेताओं का जयकारा लगाते आप लोगों को जरा भी शर्म नहीं आती?... फिर क्या मतलब है इस जय का? यही तो न कि कोई जीते, कोई हारे?.. तो इसके लिए तो संघर्ष या युद्ध भी होगा ही न?.. किसको लड़ाना, हराना या जिताना चाह रहे हैं...युद्ध में झोंकना चाह रहे हैं? वो कौन है जिसके हारने से तुम डर रहे हो और जीतने की कामना कर रहे हो? वो कौन है जो युद्ध कर रहा है, लड़ाई के मैदान में है और तुम्हें उसका उत्साहवर्धन करना है? क्या किसी मैदान में कोई खेल हो रहा है, तुम वहाँ हो और सोच रहे हो कि तुम्हारे उत्साहवर्धन से

सरकारी नहीं, दिहाड़ी नौकर चाहिए!..

पालतू तीतर          सरकारी नौकर नहीं चाहिए!   जी हुज़ूर, सरकार बहादुर को सिर्फ़ दिहाड़ी नौकर चाहिए! ताकि हुज़ूरे-आला जब तक और जैसे चाहें उसका खून-पसीना पिएं और जब चाहें लात मारकर निकाल दें। बुरा लगता है ऐसा सुन-सोचकर? पर क्या यह सही नहीं है कि सामंतों की तरह पूँजीपति और उनकी कम्पनियाँ ऐसा ही करती हैं? और जब कोई सरकार ऐसा ही चाहे तब उसको क्या कहें? नाम से क्या फर्क़ पड़ता है- दिहाड़ी कहिए या ठेका मजदूर अथवा संविदा कर्मचारी! सोचने पर विश्वास करने का मन नहीं करता!... आख़िर हम संविधान के आधार पर चलने वाले देश के लोग हैं! पर असलियत हमारे हर मुगालते पर मुक्का मारती है। उसी तरह जैसे घूस या भ्रष्टाचार कहीं लिखित नहीं है लेकिन छोटे-बड़े हर ऑफिस में सर्वशक्तिमान की तरह विराजमान है। नेता, मंत्री, अधिकारी और हाँ, कर्मचारी भी किसी भी नियम से 'दो नम्बरी' काम के लिए नहीं हैं पर जिस भी आदमी को काम कराना हो, असलियत पता लग जाएगी। और अब यह सब इतना आम हो गया है कि 'ईमानदार' शब्द ही मजाक लगने लगा है। वैसे ही जैसे किसी को कहा कि वह सीधा है, गऊ है तो इसका मतलब यही माना जाता है कि यह किसी काम का नहीं!.

हे प्रभु, हम सब रामभरोसे!..

                         रे मन, तू रह रामभरोसे !                                   साभार: अमर उजाला, 18 मई, 2021 सचमुच, मुझे कष्ट  है!..जब देखो तब रामभरोसे! कहने वालों को 'रामभरोस' पर कोई शंका है क्या? हमारे इलाक़े में तो लोग इस शब्द पर इतना भरोसा करते हैं कि कई तो अपने बाल-बच्चों का नाम ही रामभरोस या रामभरोसे रख देते हैं। फिर किसी असफलता के बाद 'सब कुछ रामभरोसे..' कहने का क्या मतलब? दरअसल, पूरा देश अपरंच पूरा विश्व किंवा अखिल ब्रह्माण्ड रामभरोसे है तो किसी असफलता पर रामभरोसे कहना भरोसा पर भरोसा न जताने जैसा है! लोग गरीब हैं तो रामभरोसे कह दिया, लोग बीमार हैं तो रामभरोसे कह दिया! लोगों की नौकरी नहीं लगी, तनख्वाह नहीं मिली, लोगों की पेंशन बंद हुई, कम्पनी ने छह महीने बाद छंटनी कर दी, नोटबन्दी हुई, नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद मजदूर ट्रेन-बस रोक दिए जाने के चलते  पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर सड़कों पर चले; लोगों ने कहना शुरू दिया- 'भइया, अब तो सब कुछ रामभरोसे ही है!' क्यों भाई, क्यों? तुमने पहले से ही रामभरोसे नहीं थे क्या? अब सरकार को कोस रहे हो! भरोसा तूने किया, तोह