Skip to main content

Posts

Showing posts with the label सन्त

आधुनिक भक्तिकाव्य से अधिक जनपक्षधर है 'संतकाव्य!

online_classes      परीक्षा की तैयारी                निर्गुण ज्ञानाश्रयी संत काव्य:                         प्रमुख कवि एवं प्रवृत्तियां कालक्रम की दृष्टि से  हिंदी साहित्य के भक्तिकाल का प्रारम्भ  निर्गुण काव्य धारा से होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में इस काव्य धारा को ‘निर्गुण ज्ञानाश्रयी धारा’ नाम दिया। डा. रामकुमार वर्मा ने इसे ‘सन्त काव्य परम्परा’ कहा तो आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी ने इसे ‘निर्गुण भक्ति साहित्य’ का नाम दिया। इसे ज्ञानाश्रयी काव्यधारा भी कहा गया। इस काव्यधारा के सबसे चर्चित कवि के रूप में कबीर विख्यात हैं। भक्तों-संतों के नाम के आगे 'दास' लगाने की परम्परा के चलते वे 'कबीरदास' नाम से भी जाने जाते हैं। ★★ शब्द 'सन्त':             सामान्यतः सदाचार के लक्षणों से युक्त मन की शांति का पाठ पढ़ाने वाले व्यक्ति को 'सन्त' कहा जाता है। ऐसा संत व्यक्ति स्वयं की जगह सामाजिक कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयासरत माना जाता है। आत्मोन्नति द्वारा मनुष्य सदाचारी हो सकता है, ऐसा संतों का मानना था। डा.