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Showing posts from July, 2021

और जानिए शहीद ऊधमसिंह को!

                              और  जानिए         शहीद ऊधमसिंह को!   आज आप एक ऐसी सोच-समझ के अधीन जी रहे हैं जो साम्राज्यवाद को नहीं स्वीकार करती। यह समझ साम्प्रदायिक, जातिवादी, मौकापरस्त व्यक्ति तैयार करती है। ऐसी समझ के लोग साम्राज्यवाद को या तो कुछ 'विदेशी' तत्त्वों की मनगढ़ंत विचारधारा मानते हैं या ऐसी कहानी जब उनके जैसे 'वीर' तलवार भांजते हुए प्राण न्यौछावर कर देते थे। यह कोई अनोखी या आज की समझ नहीं है। ऐसी समझ वाले समझदार अंग्रेजों के तलवाचाटू भी थे और 'प्रजा' के सिर उठाने के घोर विरोधी भी। ऐसे तलवाचाटुओं और उपनिवेशी-साम्राज्यवादियों के खिलाफ़ जिस अनूठे योद्धा ने अपनी दिलेरी से अंग्रेजों को हतप्रभ कर दिया, उसे हम शहीद ऊधमसिंह के नाम से जानते हैं। 31 जुलाई अनूठे बलिदानी ऊधमसिंह का शहादत दिवस है। इसी दिन सन् 1940 की सुबह 9 बजे ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने उन्हें फाँसी दे दी। या शहीद ऊधम सिंह के प्रिय आदर्श भगतसिंह के शब्दों में कहें तो शहीद ऊधम सिंह ने उस दिन 'मृत्यु का वरण' किया ('married death')। अंग्रेज़ साम्राज्यवादियों को शहीद ऊधम सिंह उनके प्रत

प्रेमचंद अभी भी प्रासंगिक क्यों लगते हैं?..

          प्रेमचंद का कालजयी साहित्य:                        https://youtu.be/16Ci1hB5o4k   प्रेमचंद साहित्य        आज इस इक्कीसवीं सदी के इस उथल-पुथल के दौर में,  प्रेमचंद साहित्य    की रचना की शुरुआत के लगभग सवा सौ साल बाद भी हमें लगता है कि प्रेमचंद को पढ़ना, उसका जन-जन तक पहुँचना-पहुँचाना अब और ज़्यादा जरूरी हो गया है। आज़ादी की माँग के वे कारण जिन्हें हम औपनिवेशिक दास्ताँ के रूप में जानते आए हैं, आज कहीं और ज़्यादा झकझोरने वाले हैं। आज उस दौर के ठीक उलट विदेशी कम्पनियों के लिए पलक-पाँवड़े बिछाए जा रहे हैं। विदेशों के कई-कई चक्कर काटकर कम्पनियों को लुभाया जा रहा है कि आज भारत पहले से कहीं ज़्यादा निवेश के माक़ूल है, आइए और मुनाफ़ा कमाइए! 'अब दुनिया बदल गई है' - कहकर कितना भी हम इस सच्चाई को ढांपने-तोपने की कोशिश करें किन्तु प्रेमचंद ने 'महाजनी सभ्यता' कहकर जिस गुलामी के खिलाफ जनता में चेतना विकसित की थी, वह आज भी वैसे ही बल्कि उससे भी ज़्यादा हमारी मुश्किलों के लिए जिम्मेदार है। विश्वगुरु का ढोल पीटकर भले ही इसे छुपाने की नाकाम कोशिश की जा रही हो, पर विदेशी-निवेश की लाचारी,

तीखे होते जा रहे हैं किसान आंदोलन और शासकों के अंतर्विरोध

                    सत्ता और किसान:             समय बलवान!                 जैसे-जैसे किसान आंदोलन लम्बा खिंचता जा रहा है, शासकों और किसान आंदोलन के बीच अंतर्विरोध भी तीखे होते जा रहे हैं। सत्ता समर्थक शक्तियाँ पहले से कहीं ज़्यादा सक्रिय होकर किसानों की न केवल बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं बल्कि उनके नेताओं पर हमले करने की कोशिशें भी कर रही हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति से यह बात स्पष्ट होती है कि किसान आंदोलन को कुचलने की कोशिशें अब हिंसक रूप अख्तियार कर रही हैं। टिकरी बॉर्डर में किसानों के शिविर पर कुछ बदमाशों द्वारा किए गए हमले, जिसमें एक युवक गुरविंदर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गया, इसका एक उदाहरण है। इसकी निंदा करते हुए एसकेएम ने कहा है कि हमलावरों का संभावित निशाना किसान नेता रुलदू सिंह मनसा थे जो उस कैंप में रहते थे। मोर्चा ने मांग की है कि पुलिस हत्या की मंशा व प्रयास का मामला दर्ज कर हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार करे। दूसरी तरफ पंजाब के विभिन्न स्थानों पर दर्जनों स्थायी मोर्चों के लगातार विरोध प्रदर्शन के 300 दिन पूरे होने पर पंजाब के होशियारपुर के मुकेरियां में बड

बढ़ती बेरोजगारी क्या किसान आंदोलन को और बढ़ाएगी?

                       रोजगार का संकट:               किसानी  पर दबाव बेरोजगारी अब पढ़े-लिखे नौजवानों और मजदूरों की ही समस्या नहीं रही। बड़ी संख्या में किसान भी साल में कम से कम छह महीने हाथ पर हाथ धरे बैठने के लिए मजबूर हैं। विशेषकर पहले लाकडाउन के बाद शहरों से हुए मजदूरों के पलायन ने हालात और बिगाड़ दिए। वे भी गाँवों में इसीलिए लौटे कि वहीं कुछ काम-धाम करके गुजारा कर लेंगे। पर किसानी की पहले से ही खस्ताहाल दशा ने उन्हें राहत से ज़्यादा मुसीबत दी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट बताती है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में 28.4 लाख रोजगार ख़त्म हो गए। शहरी क्षेत्रों में भी लगभग 5.6 लाख रोजगार खत्म  हुए। इसका भी असर ग्रामीण क्षेत्र के रोजगार पर पड़ा। किन्तु सरकारें कोरोड़ों बेरोजगार लोगों को सपने दिखाकर इससे निपटना चाहती हैं। अखबारों और टीवी चैनलों पर गरीब लोगों के मुस्कराते चेहरे दिखाने से रोजगार की स्थिति नहीं बेहतर हो जाती। कई-कई साल बाद होनी वाली नियुक्तियों का इस तरह प्रचार किया जाता है कि लोगों को लगे अब सारी बेरोजगारी दूर हो गई है। लेकिन खेती पर कम्पन

#यूपी में किसान आंदोलन की नई पहल

                उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड किसान आंदोलन की                                  एक नई शुरुआत                         ★ संयुक्त किसान मोर्चा ने किया मिशन  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का ऐलान ★  5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में महारैली से धमाकेदार शुरुआत होगी ★ सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत का आयोजन होगा ★ तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने और एमएसपी की गारंटी के साथ प्रदेश के मुद्दे भी उठेंगे ★ आंकड़े दिखाते हैं कि योगी सरकार का दाना-दाना खरीद का वादा महज एक जुमला था लखनऊ | तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने तथा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर चल रहा ऐतिहासिक किसान आंदोलन आज आठ माह पूरे कर चुका है। इन आठ महीनों में किसानों के आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक बना यह आंदोलन अब किसान ही नहीं देश के सभी संघर्षशील वर्गों का लोकतंत्र बचाने और देश बचाने का आंदोलन बन चुका है। इस अवसर पर आंदोलन को और तीव्र, सघन तथा असरदार बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इस राष्ट्रीय आंदोलन के अगले पड़ाव के रूप में मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शुरू करने का फैसला किया है। इस मिशन के तहत संयुक्त

इस संसद में सिर्फ़ महिलाएँ ही क्यों रहेंगी?

                            सिर्फ़ महिलाओं की                किसान संसद   लगातार चल रहे शांतिपूर्ण किसान आंदोलन के अब आठ  महीने पूरे हो रहे हैं। इस  ऐतिहासिक आंदोलन में लाखों किसान शामिल हुए हैं और इस किसान आंदोलन ने देश में ही नहीं बल्कि पूरी  दुनिया में किसानों की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। यही नहीं  किसानों के संघर्ष ने भारतीय लोकतंत्र को भी मजबूत किया है। इसी लोकतांत्रिक दृष्टि की प्रतीक बनने वाली है केेेवल महिला किसानों द्वारा संचालित होने  महिला किसान संसद!       इन आठ महीनों में भारत के लगभग सभी राज्यों के लाखों किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। विरोध शांतिपूर्ण रहा है और हमारे अन्नदाताओं ने सदियों पुराने लोकाचार को दर्शाया है। कठिनाइयों का सामना करने के लिए किसानों की दृढ़ता और अटलता, भविष्य प्रति उनकी आशा, उनके संकल्प को दर्शाता है। इस अवधि के दौरान किसानों ने खराब मौसम और दमनकारी सरकार का बहादुरी से सामना किया। एक चुनी हुई सरकार ने - जो मुख्य रूप से किसानों के वोटों पर सत्ता में आई थी - उनके साथ विश्वासघात किया, और किसानों को अपनी आवाज और मांगों को सच्चे, धैर्यपूर्वक और शांतिपूर

किसान संसद ने पारित किए ये प्रस्ताव

                              22 और 23 जुलाई को                             किसान संसद द्वारा              पारित संकल्प एवं प्रस्ताव हिन्दी: 1. यह स्पष्ट करने के बाद कि एपीएमसी बाईपास अधिनियम के प्रावधानों को किसानों के हितों की कीमत पर कृषि व्यवसाय कंपनियों और व्यापारियों के पक्ष में तैयार किया गया है, मौजूदा विनियमन (रेगुलेशन) और निगरानी तंत्र को खत्म करके, और बड़े कॉर्पोरेट द्वारा कृषि बाजारों के प्रभुत्व को बढ़ावा देगा; 2. जून 2020 से जनवरी 2021 तक एपीएमसी बाईपास अधिनियम के संचालन के प्रतिकूल अनुभव को संज्ञान में लेने के बाद, जहां अपंजीकृत व्यापारियों द्वारा भुगतान न करने और धोखाधड़ी के कारण किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ, जहां अधिकांश एपीएमसी मंडियों में व्यापारियों और कंपनियों द्वारा खरीद में आधी हो गई है, और जहां बड़ी संख्या में एपीएमसी मंडियों को भारी नुकसान हुआ है जिससे वे बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं; 3. यह निष्कर्ष पर आने के बाद कि एपीएमसी बाईपास अधिनियम के कारण, अधिकांश मंडियां धीरे धीरे समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि कॉरपोरेट और व्यापारी अधिनियम द्वारा बनाए गए अनियम

कौरव गदाधारियों से घिरा अभिमन्यु है किसान!

  22 जुलाई 2021 को किसान संसद में                          दुर्योधनी गदाधारियों के बीच घिरा                         अभिमन्यु है किसान सभापति जी,  मैं ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन की ओर से मण्डी कानून पर चर्चा को आगे बढ़ा रहा हूं। 1960 से पहले जो व्यापारी हम से फसल खरीदते थे, वे हमें भाव में भी लूटते थे और तौल में भी लूटते थे। इसलिए, हम किसानों की आवाज पर आंदोलन के चलते ये सरकारी अनाज मंडियां खोली गई थी, ये एपीएमसी मार्केट आई थी। इनसे हमें कुछ सुरक्षा मिली थी।  मैं यह बताना चाहता हूँ कि खेती का स्वरूप या प्रकृति ही ऐसी है कि इसमें बहुत सारे जोखिम हैं। इसलिये, सरकार की ओर से किसानों को सुरक्षा की दरकार है। आसमान से बारिश यदि ज्यादा हुई, बाढ़ आई तो फसल बर्बाद हो गई। सूखा पड़ गया तो फसल नहीं हुई। कीड़े लग गए या ओलावृष्टि हो गई, तो फसल बर्बाद हो जाती है। साहूकार व बैंक किसानों को लूटते हैं। फिर, जो फसल किसान मार्केट में ले जाते हैं, वहां मार्केट की ताकतों अर्थात व्यापारियों से पाला पड़ता है। मार्केट की ये ताकतें सबसे क्रूर ताकतें होती हैं। मार्केट को लेकर इन के बीच में दो दो बार विश्व युद्ध

किसान संसद

                  समानांतर 'किसान संसद' के                                    निहितार्थ सवाल है कि संसद वर्षाकालीन अधिवेशन के दौरान समानांतर #किसान_संसद केवल प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन ही रह जाएगा या इसका कोई दूरगामी निहितार्थ भी है?...हमेशा की तरह सरकार इसे एक और प्रदर्शन से ज़्यादा और कुछ मानती है, ऐसा नहीं लगता। लेकिन महत्त्वपूर्ण यह है कि इससे किसान नेताओं की क्या उम्मीद है।. .. हम जानते हैं कि जंतर मंतर और संसद मार्ग कई बड़े-बड़े प्रदर्शनों का साक्षी रहा है और इसने संसद और सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की सफल कोशिशें भी है। क्या भाजपा सरकार इसको कोई अहमियत देगी? नहीं तो इस प्रतीकात्मक किसान प्रदर्शन का क्या मतलब रह जाएगा? ये ऐसे सवाल हैं जो किसान आंदोलन में रुचि रखने वाले हर आम आदमी के मन में स्वाभाविक रूप से उठते हैं।      संयुक्त किसान मोर्चा ने इसे 'भारत में नागरिकों की आवाज को मजबूत करने के लिए किसान आंदोलन द्वारा खोले जा रहे विचारशील लोकतंत्र के नए मोर्चे' की संज्ञा दी है। साथ ही इस किसान संसद से मीडिया को दूर रखने के दिल्ली पुलिस के प्रयास को 'शर्मनाक' कहत

बेरोजगार किसान आंदोलन से क्यों जुड़ रहे हैं?

बेरोजगारी और किसान आंदोलन                       ख़त्म होते रोजगार के अवसर और            किसान आंदोलन की उम्मीदें आजादी के बाद डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों और असली आज़ादी के लिए शहीद भगत सिंह जैसे नौजवानों की कुर्बानियों के चलते जो कुछ रोटी-रोजगार के साधन हमें हासिल भी हुए थे, आज एक-एक कर छीन लिए जा रहे हैं। देशी-विदेशी कम्पनियों के मुनाफों की चिंता करने वाली सरकारें निजीकरण के नाम पर न केवल पहले से हासिल नौकरियां और रोजगार खत्म कर रही हैं जिससे आरक्षित वर्गों के आरक्षण अपने आप खत्म हो रहे हैं, बल्कि व्यापक जनता की आजीविका के साधन खेती योग्य जमीनों, पहले से स्थापित सार्वजनिक उद्यमों, सरकारी संस्थानों को भी खत्म कर पूँजीपतियों और विदेशी कंपनियों के हवाले कर रही हैं। बैंक, बीमा, परिवहन, रेलवे, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय सहित तमाम सार्वजनिक उपक्रम पूरी बेशर्मी के साथ प्राइवेट हाथों में सौंपने का ही नतीजा है कि शिक्षित-अशिक्षित सभी प्रकार के नौजवान-मजदूर-किसान बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।             बेरोजगारी आज समाज के सभी मेहनतकश वर्गों की एक मुख्य और विकराल समस्या है। पढ़े-लिखे लोगों

खेती पर कम्पनियों के नियंत्रण के खिलाफ संसद मार्च

                                नये दौर में पहुँचा                     किसान आंदोलन संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन कॉर्पोरेट अधिग्रहण की चपेट में जाने की संभावनाएं दिख रही है - हम भारत में इसी के खिलाफ संघर्ष कर रहे है:                                -- संयुक्त किसान मोर्चा जैसा कि पहले ही घोषित किया जा चुका है, संयुक्त किसान मोर्चा मानसून सत्र के सभी कार्य दिवसों पर संसद के पास विरोध प्रदर्शन की अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। हर दिन 200 प्रदर्शनकारियों द्वारा इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया जाएगा और किसान यह प्रदर्शित करेंगे कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को किस तरह से चलाया जाना चाहिए। एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की। योजनाओं को व्यवस्थित, अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। 200 चयनित प्रदर्शनकारी सिंघू बॉर्डर से प्रतिदिन पहचान पत्र लेकर रवाना होंगे। एसकेएम ने यह भी कहा कि अनुशासन का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वर्तमान किसान आं