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तीखे होते जा रहे हैं किसान आंदोलन और शासकों के अंतर्विरोध

                   सत्ता और किसान:

           समय बलवान!               


जैसे-जैसे किसान आंदोलन लम्बा खिंचता जा रहा है, शासकों और किसान आंदोलन के बीच अंतर्विरोध भी तीखे होते जा रहे हैं। सत्ता समर्थक शक्तियाँ पहले से कहीं ज़्यादा सक्रिय होकर किसानों की न केवल बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं बल्कि उनके नेताओं पर हमले करने की कोशिशें भी कर रही हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति से यह बात स्पष्ट होती है कि किसान आंदोलन को कुचलने की कोशिशें अब हिंसक रूप अख्तियार कर रही हैं। टिकरी बॉर्डर में किसानों के शिविर पर कुछ बदमाशों द्वारा किए गए हमले, जिसमें एक युवक गुरविंदर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गया, इसका एक उदाहरण है। इसकी निंदा करते हुए एसकेएम ने कहा है कि हमलावरों का संभावित निशाना किसान नेता रुलदू सिंह मनसा थे जो उस कैंप में रहते थे। मोर्चा ने मांग की है कि पुलिस हत्या की मंशा व प्रयास का मामला दर्ज कर हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार करे।

दूसरी तरफ पंजाब के विभिन्न स्थानों पर दर्जनों स्थायी मोर्चों के लगातार विरोध प्रदर्शन के 300 दिन पूरे होने पर पंजाब के होशियारपुर के मुकेरियां में बड़ी संख्या में किसानों ने भाजपा के एक कार्यक्रम का काले झंडों के साथ विरोध किया। एक मंदिर में आयोजित इस कार्यक्रम में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा और केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश जैसे बीजेपी नेताओं को हिस्सा लेना था।  इसकी सूचना मिलते ही विभिन्न संगठनों के किसान तुरंत काले झंडे का विरोध करने के लिए एकत्र हो गए और शांतिपूर्ण ढंग से अपना विरोध प्रदर्शित किया। एसकेएम ने एक किसान नेता हरिंदर लखोवाल को एक किसान विरोधी मीडिया हाउस द्वारा खालिस्तानी समर्थक के रूप में अपमानजनक और पूरी तरह से आपत्तिजनक चित्रण की भी निंदा की है।

एसकेएम ने स्पष्ट किया कि मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की योजना कल जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार होगी। लखनऊ तक मार्च करना या शहर की घेराबंदी करना एसकेएम का एजेंडा नहीं है, और ऐसी कोई कार्रवाई एसकेएम के मिशन यूपी का हिस्सा नहीं है। श्री राकेश टिकैत ने इस बारे में कल शाम को स्वयं स्पष्ट किया, कि उनके कुछ बयान उनके व्यक्तिगत विचार थे, न कि एसकेएम के योजनाओं का हिस्सा। मीडिया से अनुरोध है कि 26 जुलाई की लखनऊ प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार एसकेएम की मिशन यूपी और उत्तराखंड योजनाओं को कवर करें।

संयुक्त किसान मोर्चा ने बढ़ती कीमतों पर सरकार को घेरते हुए कहा है कि बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के नाम पर किसानों के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार के कई दावों के विपरीत, अमेरिका के अलावा अन्य देशों से आयात किए गए मसूर/दाल पर आयात शुल्क को 10% से घटाकर 0% कर दिया गया है, और संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात के लिए 30% से 20% कर दिया गया है। इसके अलावा, कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (AIDC) जिसका उद्देश्य कृषि-बुनियादी ढांचे को विकसित करना है, को 20% से घटाकर 10% कर दिया गया है। एसकेएम ने सरकार के इस कदम की निंदा की है।

दूसरी तरफ एसकेएम ने कहा है कि केंद्रीय कृषि मंत्री द्वारा किसान संसद को 'निरर्थक' बताकर उसका उपहास किया है। उनके और भारत सरकार के इस रवैये के कारण ही, कि किसानों का विश्लेषण और स्पष्टीकरण "निरर्थक" है, किसान आंदोलन ने राजमार्गों पर 8 महीने से अधिक समय बिता दिया है, और 540 से अधिक अपने साथियों को खोया है। मंत्री जी ने विपक्षी सांसदों से यह भी कहा कि अगर उन्हें किसानों की चिंता है तो उन्हें सदन को चलने देना चाहिए। मंत्री जी ने इस बात को नज़रअंदाज़ करना चाहा कि विपक्षी सांसद ठीक वही कर रहे हैं जो किसानों ने उन्हें "पीपुल्स व्हिप" के माध्यम से करने के लिए कहा है। जब आम नागरिकों द्वारा जीवन और मृत्यु का संघर्ष लड़ा जा रहा हो, वह भी जो खुद मोदी सरकार द्वारा थोपी गया हो, तब सरकार "हमेशा की तरह व्यवसाय" की उम्मीद नहीं कर सकती है।

इस तरह एक तरफ गतिरोध जारी है, दूसरी तरफ शासकों और किसान आंदोलन के बीच अंतर्विरोध भी बढ़ रहे हैं। नतीजा भविष्य के गर्भ में है।

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