Skip to main content

कौरव गदाधारियों से घिरा अभिमन्यु है किसान!

 22 जुलाई 2021 को किसान संसद में  

                      दुर्योधनी गदाधारियों के बीच घिरा

                        अभिमन्यु है किसान


सभापति जी, 

मैं ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन की ओर से मण्डी कानून पर चर्चा को आगे बढ़ा रहा हूं। 1960 से पहले जो व्यापारी हम से फसल खरीदते थे, वे हमें भाव में भी लूटते थे और तौल में भी लूटते थे। इसलिए, हम किसानों की आवाज पर आंदोलन के चलते ये सरकारी अनाज मंडियां खोली गई थी, ये एपीएमसी मार्केट आई थी। इनसे हमें कुछ सुरक्षा मिली थी। 

मैं यह बताना चाहता हूँ कि खेती का स्वरूप या प्रकृति ही ऐसी है कि इसमें बहुत सारे जोखिम हैं। इसलिये, सरकार की ओर से किसानों को सुरक्षा की दरकार है। आसमान से बारिश यदि ज्यादा हुई, बाढ़ आई तो फसल बर्बाद हो गई। सूखा पड़ गया तो फसल नहीं हुई। कीड़े लग गए या ओलावृष्टि हो गई, तो फसल बर्बाद हो जाती है। साहूकार व बैंक किसानों को लूटते हैं। फिर, जो फसल किसान मार्केट में ले जाते हैं, वहां मार्केट की ताकतों अर्थात व्यापारियों से पाला पड़ता है। मार्केट की ये ताकतें सबसे क्रूर ताकतें होती हैं। मार्केट को लेकर इन के बीच में दो दो बार विश्व युद्ध हो चुके हैं। अपनी फसल बेचने के लिए किसानों को इन्हीं के पास जाना पड़ता है। इन की लूट खसोट से सुरक्षा या बचाव के लिए ही ये एपीएमसी मंडियां लाई गई थी। मोदी सरकार अब प्राइवेट मण्डी कानून लाई है, उससे अगर सरकारी मंडियों को खत्म कर दिया गया तो देखेंगे कि वही होगा जो महाभारत में अभिमन्यु के साथ हुआ था। चारों तरफ से दिग्गज गदाधारियों ने मिलकर अकेले छोटे से बच्चे को मार दिया था। इसी तरह छोटे-छोटे 85 प्रतिशत किसान इन काले कानूनों की पहली ही चोट में साफ हो जाएंगे। सारी खेती पर और किसानों की उपज पर पूंजीपतियों का कब्जा हो जाएगा। मोदी जी ने कहा था कि 'मैं आढ़तियों को मण्डी से बाहर निकाल कर किसानों को रक्षा कवच दे रहा हूं' और यह कि 'देश को आजादी तो सन 1947 में मिली थी, परन्तु किसानों को आजादी अब मिलेगी।' नहीं दोस्तों, ये जो बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं, ये देसी व विदेशी कम्पनियां आढ़तियों से हजारों हजार गुणा बड़ी लुटेरी हैं। तो यह आजादी या रक्षा कवच असल में मोदी जी ने इन कंपनियों को दिया है, किसानों को बेरोकटोक लूटने के लिये। तब, प्राइवेट मण्डियां बनने पर एमएसपी नहीं मिलेगी और मंडियों पर मुकम्मल देसी और विदेशी कंपनियों का कब्जा होगा। यह हमें कतई स्वीकार नहीं है। इसलिए हम लड़ रहे हैं 13 महीने से। पिछले 8 महीने से हम बॉर्डरों पर बैठे लड़ रहे हैं। 

अंतिम बात यह कहूंगा कि मोदी ऑर्डिनेंस लाया पार्लियामेंट को दरकिनार करके, पार्लियामेंट में धक्केशाही करके ये काले कानून बनाये। मोदी, उसकी पार्टी बीजेपी व आरएसएस अंबानियों और अडानियों के बिके हुये हैं। इनकी सरकार बिकी हुई है। पार्लियामेंट को सिर्फ मुखौटा के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिये, आंदोलन ही वह शक्ति है जिससे किसान मोदी के काले कारनामों से मुक्ति पा सकते हैं। इन तीनों काले कानूनों और बिजली बिल जो अभी पार्लियामेंट में कानून बनाने के लिए लाया गया है, इन सब से किसान बच सकते हैं। प्रदूषण कानून में किसानों के खिलाफ जो कठोर प्रावधान बनाये गये हैं, उससे भी किसान बच सकते हैं। तो हम अपने आंदोलन को जारी रखेंगे। जब तक ये काले कानून वापस नहीं लिए जाएंगे, हम हटने वाले नहीं है। हम मोदी सरकार की निंदा करते हैं जिस ने जंतर-मंतर को एक पिंजरे में बदल दिया है। यह भी जनतंत्र के खिलाफ है। किसान अपने लिए लड़ रहे हैं और जो भी खाना खाता है, उसके खाने को छीनने की साजिश के खिलाफ भी लड़ रहे हैं। आम जनता की रोजी - रोटी व जनतंत्र को भी बचाने के लिए लड़ रहे हैं। 

(ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड सत्यवान ने दिल्ली, जन्तर मन्तर पर किसान कूच के पहले दिन अपने उपरोक्त विचार रखे)

                             ★★★★★★★



                   

Comments

Popular posts from this blog

नागपुर जंक्शन-दो दुनिया के लोग

          नागपुर जंक्शन!..  आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर!..डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि! अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!.. यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य है। दोनों बहुत कुछ अलग।  इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है।  अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी उसे क्या मिल जाता है?..  आख़िर, प्रकृति तो एक दिन दोनों को एक ही जगह पहुँचा देती है!... आप क्या सोचते हैं? ..  

मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️

आपके पास विकल्प ही क्या है?..

                          अगर चुनाव              बेमतलब सिद्ध हो जाएं तो? सवाल पहले भी उठते रहते थे!... सवाल आज भी उठ रहे हैं!... क्या अंतर है?...या चुनाव पर पहले से उठते सवाल आज सही सिद्ध हो रहै हैं? शासकवर्ग ही अगर चुनाव को महज़  सर्टिफिकेट बनाने में अपनी भलाई समझे तो?... ईवीएम चुनाव पर पढ़िए यह विचार~ चुनाव ईवीएम से ही क्यों? बैलट पेपर से क्यों नहीं? अभी सम्पन्न विधानसभा चुनाव में अनेक अभ्यर्थियों, नुमाइंदों, मतदाताओं ने ईवीएम में धांधली गड़बड़ी की शिकायत की है, वक्तव्य दिए हैं। शिकायत एवं वक्तव्य के अनुसार जनहित में वैधानिक कारवाई किया जाना नितांत आवश्यक है।।अतः चुनाव आयोग एवं जनता के हितार्थ नियुक्त उच्च संस्थाओं ने सभी शिकायतों को संज्ञान में लेकर बारीकी से जांच कर,निराकरण करना चाहिए। कई अभ्यर्थियों ने बैटरी की चार्जिंग का तकनीकी मुद्दा उठाया हैं जो एकदम सही प्रतीत होता है। स्पष्ट है चुनाव के बाद या मतगणना की लंबी अवधि तक बैटरी का 99% चार्जिंग  यथावत रहना असंभव~ नामुमकिन है।  हमारी जानकारी के अनुसार विश्व के प्रायः सभी विकसित देशों में ईवीम से चुनाव प्रतिबंधित है,बैलेट पेपर से चुनाव