Skip to main content

Posts

Showing posts with the label किसानों का दर्द

इस संसद में सिर्फ़ महिलाएँ ही क्यों रहेंगी?

                            सिर्फ़ महिलाओं की                किसान संसद   लगातार चल रहे शांतिपूर्ण किसान आंदोलन के अब आठ  महीने पूरे हो रहे हैं। इस  ऐतिहासिक आंदोलन में लाखों किसान शामिल हुए हैं और इस किसान आंदोलन ने देश में ही नहीं बल्कि पूरी  दुनिया में किसानों की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। यही नहीं  किसानों के संघर्ष ने भारतीय लोकतंत्र को भी मजबूत किया है। इसी लोकतांत्रिक दृष्टि की प्रतीक बनने वाली है केेेवल महिला किसानों द्वारा संचालित होने  महिला किसान संसद!       इन आठ महीनों में भारत के लगभग सभी राज्यों के लाखों किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। विरोध शांतिपूर्ण रहा है और हमारे अन्नदाताओं ने सदियों पुराने लोकाचार को दर्शाया है। कठिनाइयों का सामना करने के लिए किसानों की दृढ़ता और अटलता, भविष्य प्रति उनकी आशा, उनके संकल्प को दर्शाता है। इस अवधि के दौरान किसानों ने खराब मौसम और दमनकारी सरकार का बहादुरी से सामना किया। एक चुनी हुई सरकार ने - जो मुख्य रूप से किसानों के वोटों पर सत्ता में आई थी - उनके साथ विश्वासघात किया, और किसानों को अपनी आवाज और मांगों को सच्चे, धैर्यपूर्वक और शांतिपूर

कौरव गदाधारियों से घिरा अभिमन्यु है किसान!

  22 जुलाई 2021 को किसान संसद में                          दुर्योधनी गदाधारियों के बीच घिरा                         अभिमन्यु है किसान सभापति जी,  मैं ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन की ओर से मण्डी कानून पर चर्चा को आगे बढ़ा रहा हूं। 1960 से पहले जो व्यापारी हम से फसल खरीदते थे, वे हमें भाव में भी लूटते थे और तौल में भी लूटते थे। इसलिए, हम किसानों की आवाज पर आंदोलन के चलते ये सरकारी अनाज मंडियां खोली गई थी, ये एपीएमसी मार्केट आई थी। इनसे हमें कुछ सुरक्षा मिली थी।  मैं यह बताना चाहता हूँ कि खेती का स्वरूप या प्रकृति ही ऐसी है कि इसमें बहुत सारे जोखिम हैं। इसलिये, सरकार की ओर से किसानों को सुरक्षा की दरकार है। आसमान से बारिश यदि ज्यादा हुई, बाढ़ आई तो फसल बर्बाद हो गई। सूखा पड़ गया तो फसल नहीं हुई। कीड़े लग गए या ओलावृष्टि हो गई, तो फसल बर्बाद हो जाती है। साहूकार व बैंक किसानों को लूटते हैं। फिर, जो फसल किसान मार्केट में ले जाते हैं, वहां मार्केट की ताकतों अर्थात व्यापारियों से पाला पड़ता है। मार्केट की ये ताकतें सबसे क्रूर ताकतें होती हैं। मार्केट को लेकर इन के बीच में दो दो बार विश्व युद्ध

IDEA या किसानों की ज़िंदगी का समझौता?

                            क्यों कर रही सरकार              किसानों की ज़िंदगी से खिलवाड़? संयुक्त किसान मोर्चा ने आगाह किया है कि भारत सरकार को अपनी योजनाओं की भारी खामियों को अनदेखी करके, और बगैर पूर्ण परामर्श और उचित लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के कृषि में अपनी आईडिया डिजिटलीकरण (IDEA Digitisation) योजना में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। सरकार को विभिन्न कंपनियों के साथ वर्तमान समझौता ज्ञापनों को वापस लेना चाहिए। भाजपा-आरएसएस सरकार किसान आंदोलन की जायज मांगों को पूरा करने के बजाय साफ तौर से अहंकार के खेल में लिप्त है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि सरकार तीन काले कानूनों को निरस्त नहीं करे और सभी किसानों के लिए एमएसपी की गारंटी के लिए एक कानून न लाए। यह स्पष्ट है कि भाजपा के अपने नेता या तो कानूनों के बारे में चिंतित हैं या किसान आंदोलन के परिणामस्वरूप पार्टी के भविष्य के बारे में चिंतित हैं। हरियाणा के पूर्व मंत्री संपत सिंह ने हरियाणा भाजपा अध्यक्ष ओपी धनखड़ को पत्र लिखकर और पत्र को सार्वजनिक कर भाजपा हरियाणा राज्य कार्यकारिणी समिति में अपने  पद को ठुकरा दिया। इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से किसान आं

किसानों-बेरोजगारों का धरना-योग बनाम सरकारी-चमत्कारी योग-दिवस!!

Yog माने पेट भरने का जोग!                               किसान-बेरोजगार का हठयोग योग से किसी को न तो वैर है, न किसी को इस पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानना चाहिए। वह बाबा रामदेव हों या गली मोहल्ले में आजकल योग की दुकान खोले अन्य बाबा और उनके चेले-चपाटे! योग जीवन की एक सामान्य शारीरिक क्रिया है, कार्य करने के क्रम में होने या किया जाने वाला व्यायाम है। इसकी किसी मेहनतकश को नहीं, खाए-अघाए लोगों को ही विशेष जरूरत पड़ती है। तो क्या योग का अति प्रचार भी जनता के अन्य जरूरी मसलों से ध्यान हटाने का माध्यम है?...या स्वास्थ्य/लोक कल्याण कार्यक्रमों से पूरी तरह पल्ला झाड़कर वही तथाकथित 'आत्मनिर्भर बनो' योजना?...ताकि लोग व्यवस्था पर सवाल न उठा योग न कर सकने की अपनी नियति पर ही अफ़सोस कर चुप रह जाएं?... शायद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग का ढोल पीटने के पीछे भी उस 'नई विश्व व्यवस्था' का आदेश है जिसमें पूरी दुनिया को एक डंडे से हाँकने की व्यवस्था की जा रही है!..        योगदिवस पूरे धूमधाम से मनाया गया। कितना सरकारी (जनता का) पैसा इसके प्रचार-प्रसार पर लगा, इसका हिसाब शायद ही कभी कोई दे। किसानों

कितना समर्थन मिला कालादिवस को?..

काला कानून, कितना काला!                             किसान आंदोलन में                             उत्साह                                 काला-दिवस' सुदूर दक्षिण तक 'काला-दिवस' को मिले देश भर के भारी समर्थन से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाए जा रहे किसान आंदोलन में अत्यधिक उत्साह का संचार हुआ है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विरोध प्रदर्शन को जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक और पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक व्यापक समर्थन मिलने और आंदोलन को गाँवों-कस्बों तक पहुँचने की खबरें आईं। किसानों ने काले झंडे दिखाते, पुतले फूँकते अपने फोटो और वीडियो वायरल किए। इससे यह संदेश गया है कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने की सरकार की सभी साजिशें नाकाम सिद्ध हो रही है। विविध कार्यक्रमों से यह स्पष्ट हुआ कि अपनी मांगों को पूरा करने में किसानों का पक्ष मजबूत हो रहा है। किसान मांगों को पूरा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सयुंक्त किसान मोर्चो सभी देशवासियों को कल के सफल कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करता है। यह आंदोलन अब भारत भर में व्यापक स्थानों पर फैल रहा है। चाहे वह उत्तर पूर्व भारत में हो, या

बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और किसानों का 'काला दिवस'

              बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और                           किसानों का 'काला दिवस' संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के छह महीने पूरे होने के बाद भी शासकों द्वारा उनकी माँगे न माने जाने पर 26 मई को एक तरफ 'काला दिवस' मनाने का फ़ैसला किया है, दूसरी तरफ इसी दिन बुद्ध पूर्णिमा पड़ने के कारण 'बुद्ध पूर्णिमा' भी मनाने का आह्वान किया है। क्या इसके पीछे कोई रणनीति है या यह सिर्फ़ एक औपचारिकता के तौर पर ही कहा गया है?... क्या आंदोलन का गौतम बुद्ध के विचारों से कोई तालमेल भी है। अपरंच, क्या बौद्ध धम्म का किसी आंदोलन से कोई रिश्ता हो सकता है या यह भी मात्र एक धर्म है, धार्मिक सम्प्रदाय है? इन सवालों का बेहतरीन जवाब महापण्डित कहे जाने वाले और सच्चे बुद्धानुयायी राहुल सांकृत्यायन का जीवन और किसान आंदोलन में उनकी भूमिका को जानने-समझने से मिलता है। राहुल न केवल तत्कालीन किसान आंदोलन का साथ देते हैं बल्कि अमवारी के किसान आंदोलन का नेतृत्व भी करते हैं।  'किसानों, सावधान!' शीर्षक एक लेख में राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं, "किसानों की कठिनाइयां और कष्ट काल्पनिक नहीं है

क्यों चलता रहेगा किसान आंदोलन?..

           किसानों की तकलीफों से निकला है                        किसान आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सिंघु बॉर्डर पर एक सभा में कहा कि किसानों के दर्द से निकला है यह किसान आंदोलन और जब तक किसानों की किसानों की माँगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक चलेगा! सिंघु बॉर्डर पर किसानों को संबोधित करते हुए नेताओ ने कहा कि इस आंदोलन में किसानों को किसान न कहकर उन्हें अन्य पहचान से जोड़ा गया व उनकी शिक्षा पर भी सवाल किया गया। किसान नेताओं ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि यहां आंदोलन कर रहे किसान को किसान की ही पहचान से जाना जाए और किसानों को यह कानून पूरी तरह समझ आ गए है, इसीलिए यह आंदोलन इतना मजबूत है। मोर्चा ने बताया कि 10 मई को सिंघु व टिकरी बॉर्डर पर किसानों के बड़े काफिले आये। कई जगह पर किसानों का स्वागत किया गया। ट्रेक्टर, कारों व अन्य वाहनों में आये इन किसानों ने मोर्चे को बड़ा करते हुए पहले की तरह टेंट और ट्रॉली में रहने का इंतज़ाम कर लिया है। किसानों का धरना लंबा होता जा रहा है। दिल्ली मोर्चो पर लंबी कतारों में किसानों के टेंट, ट्रॉली व अन्य वाहन पिछले 5 महीने से खड़े है। किसानों के क