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बैठोल-शास्त्र बनाम कर्म-सिद्धांत

                            बैठोल-शास्त्र   जी, हम बैठोल हैं! लेकिन कोई कुछ काम करता दिखता है तो हमें उसमें हजार कमी दिख जाती है। जैसे कि यह बन्दा यह काम कर ही क्यों रहा है जब हम नहीं कर रहे? जरूर कोई बेईमानी का काम होगा! क्योंकि सबसे ईमानदारी का काम तो कुछ न करना है। उसे कोई बड़ा मुनाफ़ा हो रहा होगा...कोई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़ा होगा। क्या पता किसी पार्टी के इशारे पर यह सब काम कर रहा हो। आखिर, इसके पास पैसा कहाँ से आता है यह सब करने, दौड़ने-धूपने का जबकि हम घर में बैठे-बैठे भी कंगाली महसूस करते हैं?...           सोचो तो, हम एकदम सही सोचते हैं! पूरी दुनिया भी तो ऐसा ही सोचती है। बिना फायदे के, मुनाफ़े के कोई कहीं कुछ काम करता है? इसलिए जरूर कोई ऐसा काम कर रहा है, जनता का-किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों को एकजुट करने, उन्हें जोड़ने के लिए चप्पलें घसीट रहा है तो कोई बहुत बड़ा फायदा, बल्कि स्वार्थ होगा! देखिए न, हम निःस्वार्थ भाव से अपने घर में बैठे हैं। यहाँ तक कि जब तक मजबूरी न हो जाए...

एक चुटकुला: प्राइवेट बनाम सरकारी काम...

  Whatsappचुटकुला:                                                                               प्राइवेट बनाम सरकारी प्राइवेट काम करने वालों को लगता है कि सरकारी कर्मचारी को तो फोकट की तन्ख्वाह मिलती है। एक वैल्डिन्ग मिस्त्री काफी दिनों से एक सरकारी कर्मचारी को तन्ख्वाह ज्यादा होने व काम कम होने के ताने दे रहा था | एक दिन सरकारी कर्मचारी का दिमाग खराब हो गया वह घर से एक टूटी बाल्टी की कड़ी डलवाने व पुराना टूटा हुआ हत्था लेकर उस मिस्त्री के पास जा पहुँचा! मिस्त्री ने 100 रू मरम्मत खर्च बताया ... कर्मचारी बोला - 150 ₹ दे दूँगा .. पर कुछ नियम ध्यान में रखना.. मिस्त्री राजी होकर बोला -बताओ बाबूजी जी..? कर्मचारी ने एक रजिस्टर निकाला और मिस्त्री से बोला - ये लो इस में रिकार्ड भरना है... 1.बाल्टी किस सन में बनी व कब टूटी (RTI) 2.बाल्टी किस कम्पनी की बनी है TATA/JSW/SA...